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 September 28, 2013 

माता कात्यायनी पूजा

20th oct.2013, 8am to 2pm Ghatkoper E

 

माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक कामन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंतमहत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों मेंअपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहजभाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।

माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे।उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षिकात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षोंतक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप मेंजन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवीको उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यहकात्यायनी कहलाईं।

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुईथीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्लसप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी कोमहिषासुर का वध किया था।
शास्त्रों के मुताबिक जो भक्त दुर्गा मां की छठी विभूति कात्यायनी की आराधना करतेहैं मां की कृपा उन पर सैदव बनी रहती है। ऐसी मान्यता है कि कात्यायनी माता का व्रतऔर उनकी पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आने वाली बाधा दूर होती है। 
माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज कीगोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल कीअधिष्ठात्री देवी के रूप मेंभीप्रतिष्ठित हैं।

माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजीका दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईंतरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनकावाहन सिंह है।

माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेजऔर प्रभाव से युक्त हो जाता है।

नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुतशक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनकाध्यानप्रातःकालमें करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण केलिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसेकंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिनया हर दिनइसका जाप करनाचाहिए।

'या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यैनमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेराबार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो,उन्हेइस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर कीप्राप्ति होती है।

देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध केबाईसवें अध्याय में उल्लेख किया है-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥

हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे देवि!नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं। दुर्गासप्तशती में देवी के अवतरित होने का उल्लेख इस प्रकार मिलता है-

नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा। मैं नन्द गोप के घर में यशोदा के गर्भ से अवतारलूंगी। श्रीमद् भावगत में भगवती कात्यायनी के पूजन द्वारा भगवान श्री कृष्ण कोप्राप्त करने के साधन का सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है। यह व्रत पूरे मार्गशीर्ष (अगहन) के मास में होता है। भगवान श्री कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रजांगनाओं नेअपने हृदय की लालसा पूर्ण करने हेतु यमुना नदी के किनारे से घिरे हुए राधाबाग़ नामकस्थान पर श्री कात्यायनी देवी का पूजन किया।

विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र-- ॐ कात्यायनी महामायेमहायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।

माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक
,
संताप, भय
आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँकी शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।

मां कात्यायनी को पसंद है शहद

मां कात्यायनी ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर महिषासुर से युद्ध किया। महिसासुर सेयुद्ध करते हुए मां जब थक गई तब उन्होंने शहद युक्त पान खाया। शहद युक्त पान खानेसे मां कात्यायनी की थकान दूर हो गयी और महिषासुर का वध कर दिया। कात्यायनी कीसाधना एवं भक्ति करने वालों को मां की प्रसन्नता के लिएऔर मन-पसंदवर की प्राप्ति के लियेशहद युक्त पान अर्पित करना चाहिए। 

पांच प्रकार की मिठाई

मां कात्यायनी की साधना का समय गोधूली काल है। मान्यता है कि इस समय में धूप, दीप, गुग्गुल से मां की पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है। जो भक्त माता कोपांच तरह की मिठाईयों का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं में प्रसाद बांटते हैं माताउनकी आय में आने वाली बाधा को दूर करती हैं और व्यक्ति अपनी मेहनत और योग्यता केअनुसार धन अर्जित करने में सफल होता है।

देवी कात्यायनी द्वारा सुरक्षा घेरा हटाने पर रावण मारा गया

देवी पुराण में उल्लेख मिलता है कि रावण भगवान शिव के साथ ही आदि शक्ति देवीकात्यायनी का भक्त था। रावण की भक्ति के कारण देवी अपनी योगनियों के साथ लंका मेंवास करती थीं जिससे रावण अजेय हो गया था।
देवी कात्यायनी की सुरक्षा प्राप्त होने के कारण रावण देवाताओं को कष्ट पहुंचानेलगा। देवताओं ने भगवान विष्णु से रावण से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। भगवानविष्णु सोच में पड़ गये कि देवी कात्यायनी से सुरक्षा प्राप्त होने के कारण रावण कोमारना उनके लिए कठिन है। इस समस्या का हल निकालने के लिए भगवान विष्णु देवीकात्यायनी के पास गये। भगवान विष्णु ने कात्यायनी से कहा कि आपसे सुरक्षा प्राप्तहोने के कारण रावण निर्भय होकर अत्याचार कर रहा है। इसका अंत करना आवश्यक है इसलिएआप अपनी सुरक्षा हटा लीजिए। भगवान विष्णु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी ने कहाकि आप रामावतार लीजिए, इस अवतार में देवी लक्ष्मी सीता रूप में आपकी सहायता करेंगी।देवी लक्ष्मी मेरा ही स्वरूप हैं। जब रावण सीता का हरण करेगा तो वह मेरा अपमान होगाजिससे मैं अपनी सुरक्षा हटा लूंगी और आप रावण का वध करने में सफल होंगे। भगवान रामने रावण से युद्घ करने के पहले देवी कात्यायनी की आराधना की और देवी से रावण को दीगयी सुरक्षा हटाने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु को दिये गये वचन के अनुसार देवीलंका त्याग कर अपने लोक में चली गयी और भगवान राम रावण का वध करने में सफल हुए।मान्यता यह भी है कि भगवान राम ने जिस वाण से रावण का वध किया था वह वाण राम कोदेवी कात्यायनी द्वारा प्रदान किया गया था।

देवी कात्यायनी का ध्यान-

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

देवी कात्यायनी का स्तोत्र पाठ -

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

देवी कात्यायनी का कवच-

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥

माँ कत्यानी की आरती-

जै अम्बे जै जै कात्यायनी~
जै जगदाता जग की महारानी~~

बैजनाथ स्थान तुम्हारा~
वहां वरदाती नाम पुकारा~~

कई नाम है कई धाम है~
यह स्थान भी तो सुखधामहै~~

हर मंदिर में जोत तुम्हारी~
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी~~

हर जगह उत्सव होते रहते~
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Call for shivir- 91 8652439844

 September 28, 2013 

 KANAKDHARA AND KUMBHA VIVAH SHIVAH SHIVIR

RASIK RANJANI SABHA HALL, PLOT– 194A, SHANTI PATH, NEXT TO ORBIT TOWER, GARODIA NAGAR, GHATKOPER E MUMBAI

 

कनकधारा और कुम्भ विवाह शिविर

सुबहः ८.१५        कात्यायनी माता और कुंभ विवाह मे अंतर और लाभ के बारे मे गुरुदेव द्वारा जानकारी.

सुबहः ८.३५ गणेश आवाहन तथा माता का आवाहन और पूजन तैयारी.

सुबहः ९.०० माता का विशिष्ठ मंत्रो द्वारा शहद से पूजन (मन-पसंद वर की प्राप्ती के लिये या मनोकामना पूर्ती के लिये)

सुबहः १०.०० माता को विशिष्ठ मंत्रो द्वारा श्रंगार.

सुबहः १०.३० पति-पत्नी के लिये विशिष्ठ पूजन. (सुखी दांपत्य जीवन के लिये)

सुबहः ११.०० नवग्रह समिधा से माता का हवन और कुम्भ पूजा.

सुबहः ११.३० मांगलिक दोष, विवाह प्रतिबंध दोष, विवाह बाधा दोष निवारण हवन.

दोपहरः १२.०० कुम्भ विवाह (इसमे स्त्री-पुरुष कोई भी भाग ले सकता है)

कात्यायनी-दुर्गा दिक्षा

Call 91 8652439844

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इस शिविर मे क्यो भाग लेना चाहेंगे?

विवाह होने मे अडचन आ रही है तो...

उम्र बढने के साथ विवाह होने की आशा कम हो गयी हो तो..

मांगलिक योग, विवाह बाधा दोष हो तो..

पति-पत्नी मे अनबन हो तो..

विवाह टूटने की कगार पर हो तो..

मन-पसंद वर की चाह हो तो..

सुखी दांपत्य जीवन की प्राप्ती के लिये..

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 September 17, 2013 

Sarva Pitri Shraddha 2013

(19th Sept to 4th Oct. 2013)


 सर्व पित्र अमावस्या श्राद्ध

Shraddha श्राद्ध is completed for all those dead members of the family who died on Amavasya Tithi, Purnima Tithi and Chaturdashi Tithi.

If somebody is unable to carry out Shraddha on all Tithis then single Shraddha (for all) on this day will calm down all deceased souls in the family. If death anniversary of ancestors aren't recognized or forgotten then those Shraddhas can be performed on this Amavasya Tithi. That's why Amavasya Shraddha is often known as Sarvapitra Moksha Amavasya सर्व पित्र अमावस्या.

As well Mahalaya Shraddha for those who died on Purnima Tithi can also be done on Amavasya Shraddha Tithi and never on Bhadrapada Purnima. Although Bhadrapada Purnima Shraddha falls one day before Pitra Paksha but it isn't a part of Pitru Paksha. Usually Pitru Paksha starts on the next day to come of Bhadrapada Purnima Shraddha.