मातंगी मानस ध्यान या मातंगी अंतर त्राटक
माता मातंगी दस महाविद्या मे ९वी महाविद्या मानी जाती है. इन्हे स्तम्भन की देवी भी कहा जाता है. इनके अलग अलग नाम है जैसे सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, उच्छिष्ट-चांडालिनी, उच्छिष्ट-मातंगी, राज-मातंगी, कर्ण-मातंगी, चंड-मातंगी, वश्य-मातंगी, मातंगेश्वरी, ज्येष्ठ-मातंगी, सारिकांबा, रत्नांबा मातंगी, वर्ताली मातंगी.
मतंग भगवान शिव का ही नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है। सॉवला रंग तथा मस्तक पर चंद्रमा को धारण करने वाली माता मातंगी वाग्देवी का ही रूप है. ये आकर्षण व स्तंभन की स्वामिनी मानी जाती है. जो ब्यक्ति मातंगी महाविद्या की सिद्धी प्राप्त करता है, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है.
इनकी साधना बहुत ही मुश्किल होती है सामान्यतः गुरु से दिक्षा लेकर १२५००० से ५५०००० लाख मंत्र द्वारा इनकी सिद्दी प्राप्त की जाती है. इसमे करीब-करीब १०-११ महीने लग जाते है. इसलिये जो ब्यक्ति साधना नही कर सकते उन्हे मातंगी अंतर त्राटक या मातंगी मानस ध्यान करना चाहिये.
अब हम बात करेगे मातंगी मानस ध्यान के लाभ की.
- हर तरह के भय से मुक्ति मिलती है.
- वाक सिद्धी यानी वाणी सिद्धी मिलती है
- स्तम्भन करने की शक्ति मिल जाती है.
- आपके अंदर की छुपी हुयी क्षमता को निखारता है
- अभिनय क्षमता को बढाता है
- सम्मोहन मे सफलता मिलती है
- मातंगी के साधको को गूढ विज्ञान को सीखने सफलता जल्दी मिलती है
- अगर विवाहित जीवन की कठिन से कठिन समस्या का निवारण हो जाता है.
- इनकी साधना करने वाले स्त्री या पुरुष को मन-पसंद वर की प्राप्ती होती है
- गायन क्षमता को बढाता है
- संगीत रचने की क्षमता को बढाता है.
- हजारो व्यक्तियो के सामने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर सकते है
- आप अपनी कला से हजारो की भीड पर जबर्दस्त प्रभाव डाल सकते है.
- आपकी क्षमता या आपकी कला से सामने वाले ब्यक्तो को रोकने या देखने को मजबूर कर सकते है.
- स्मरण शक्ति बढ जाती है
- आपकी बातो को लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते है
- वादविवाद मे विजय हासिल होती है
- सीखने की क्षमता बढ जाती है, इसलिये किसी भी कला क्षेत्र मे जल्दी-जल्दी सफलता मिलती है.
अब जानते है कि मातंगी अंतर त्राटक या मातंगी मानस ध्यान कैसे करे.
एक शांत कमरे का चुनाव करे. दरवाजे की घंटी, मोबाईल फोन को बंद कर दे ढीले-ढाले वस्त्र पहने. एक कुर्सी पर या, जमीन पर आसन बिछाकर बैठ जाय. अपने ठीक सामने माता मातंगी की मुर्ती या फोटो को रखे. अब अपने आज्ञा चक्र को पिंच करे और मातंगी मन्त्र " ॐ मातेंगेश्वरी नमः " का उचारण १ मिनट तक करे. अब एकटक कुछ सेकेंड उस चित्र या मुर्ती को देखते रहे. और आख बंद कर ले, और उस मुर्ती को या चित्र को अपने आखो के सामने लाने का प्रयास करे. आप देखेंगे कि कुछ सेकेंड के लिये वह चित्र या मुर्ती आपके आखो के सामने दिखाई देगी, फिर गायब हो जायेगी. पहले दिन यह अभ्यास ५-६ मिनट तक करना है.
अब दूसरे दिन पुनः निश्चित समय पर अभ्यास शुरु करे. अब अपने दोनो आखो के बीच यानी आज्ञा चक्र पर पिंच करे और १ मिनट तक मातंगी मन्त्र " ॐ मातेंगेश्वरी नमः " का उच्चारण करे.. अब उस चित्र को या मुर्ती को अपने आखो के सामने लाने का पुनः अभ्यास करे....
इस तरह से आप देखेंगे कि जैसे-जैसे आपका अभ्यास बढता जायेगा वैसे - वैसे आखे बंद करने के बाद माता मातंगी का चित्र ज्यादा समय के लिये आपके सामने टिकना शुरु हो जायेगा. बस यही आपको चाहिये. जब आपका अभ्यास २१ से २५ दिन का हो जाय तो आप देखेंगे कि वह मुर्ती या चित्र आपकी आखो के सामने २ से ३ मिनट तक टिकना शुरु हो जायेगा.
याद रखे ये चित्र या मुर्ती शुरुवात मे सिर्फ कुछ सेकेंड के लिये ही आपके आखो के सामने दिखाई देगा. लेकिन जब २ से ३ मिनट तक दिखाई देने लगे तो यह मान कर चलिये कि आपने बहुत ही अच्छा अभ्यास किया है. ऐसा करने से माता मातंगी की जो खासियत है, या जो गुण है वह आपके अंदर आने शुरु हो जाते है. यानी आपकी बात-चीत का प्रभाव दूसरे होना शुरु हो जाता है, आपके चेहरे पर तेज आना शुरु हो जाता है. आप जिससे भी मिलेगे उसे आप प्रभावित कर देंगे. यह अभ्यास आप रोज करते रहे.
उपयोग कैसे करे
किसी भी कार्य के लिये जाते है तो १ मिनट तक मातंगी मन्त्र "ॐ मातेंगेश्वरी नमः " का उच्चारण करे और माता मातंगी का मानस ध्यान कर अपनी मनोकामना अपने मन मे करे और जाये.
अब कुछ जरूरी बाते....
- माता मातंगी बहुत ही स्ट्रांग- पॉवरफुल तांत्रोक्त देवी मानी जाती है, इसलिये पूर्ण श्रद्धा होने पर ही इस विधि को अपनाये
- इस अभ्यास मे जैसे-जैसे सफलता मिलती जायेगी वैसे-वैसे आपका स्वभाव मधुर होता चला जाना चाहिये
- आपके स्वभाव मे घमंड आते ही इस अभ्यास का असर खत्म होना शुरु हो जाता है
- कोई आपको बला-बुरा या गाली भी दे तो अपना नियंत्रण न खोये.
- अपने विचार हमेशा पवित्र रखे.
- इस अभ्यास के द्वारा आप दूसरे की भी मदत कर सकते है.
- इस अभ्यास मे दिक्षा की जरूरत नही होती.
आशा है आप इन विधियो को अपनायेंगे और अपने जीवन मे सफल होगे. इसलिये पूर्ण श्रद्धा के साथ अभ्यास करे.