कमला (पद्मिनी) एकादशी
Sunday 28th June 2015
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अधिक मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
अधिक मास या मलमास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती है।
मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है। जो मनुष्यों के लिए भी दुर्लभ है।
यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके काँसे के पात्र में जौं-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक न खावें। भूमि पर सोए और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दन्तधावन करें और जल के बारह कुल्ले करके शुद्ध हो जाए।
सूर्य उदय होने के पूर्व उत्तम तीर्थ में स्नान करने जाए या पानी मे कुछ गंगा जल की बूंदे डालकर नहाये या इसमें तिल तथा कुशा व आँवले के चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करें। श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करें।
पूर्वकाल में त्रेया युग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की एक हजार परम प्रिय स्त्रियाँ थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो उनके राज्य भार को संभाल सकें। देवता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकित्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए लेकिन सब असफल रहे। एक दिन राजा को वन में तपस्या के लिए जाते थे उनकी परम प्रिय रानी इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या राजा के साथ वन जाने को तैयार हो गई। दोनों ने अपने अंग के आभूषणों का त्याग कर साधारण वस्त्र धारण कर गन्धमादन पर्वत पर गए।
राजा ने उस पर्वत पर दस हजार वर्ष तक तप किया परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- बारह मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है जो बत्तीस मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत करने से पुत्र देने वाले भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।
रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कमला एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण करती। इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तिवीर्य उत्पन्न हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।
यह एकादशी बहुत ही दुर्लभ मानी जाती है क्योंकि यह तभी आती है जब अधिक मास यानी मलमास लगता है। मलमास का महीना भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इस महीने में श्री कृष्ण की नियमित पूजा करने से अन्य महीनों की अपेक्षा अधिक पुण्य लाभ मिलता है। जिनके लिए पूरे महीने विधिपूर्वक भगवान की पूजा करना कठिन है वह इस माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी एवं कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन व्रत रखकर कृष्ण की पूजा करें तो इससे भी कई गुणा पुण्य लाभ मिल जाता है।
शास्त्रों में कहा गया कि कमला पुरूषोत्तम एकादशी के दिन मसूर की दाल, चना, शहद, शाक एवं लहसुन, प्याज के सेवन से परहेज रखना चाहिए। इस दिन किसी और का दिया हुआ भोजन भी न करें। आज मीठा भोजन एवं हो सके तो केवल फल खाकर ही रहना चाहिए। जो व्यक्ति इन बातों का पालन करते हुए इस दिन भगवान की पूजा एवं अर्चना करता है उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। व्रत के पुण्य से अनजाने में हुए कई पापों से मुक्ति मिलती है।
पुरूषोत्तम एकादशी के विषय में जो कथा मिलती है उसके अनुसार इस व्रत से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है। एक अन्य कथा के अनुसार एक ब्राह्मण के पुत्र ने इस व्रत के नियमों का पालन करते हुए कमला पुरूषोत्तम एकादशी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से माता लक्ष्मी उस पर प्रसन्न हुई और वह धनवान बन गया। व्रत के पुण्य से मृत्यु के पश्चात ब्राह्मण के इस पुत्र को भगवान श्री कृष्ण के गोलोक में स्थान प्राप्त हुआ।
इस व्रत में दान का विशेष महत्व है। इस दिन जरूरतमंदों को तिल, वस्त्र, धन एवं अपनी श्रद्धा के अनुसार फल एवं मिठाई दान करना चाहिए। जो लोग व्रत नहीं भी करते हों वह भी इन चीजों का दान करें तो उन पर भी ईश्वर की कृपा बनी रहती है।
इस दिन व्रत, पूजा, साधना करने से पुत्र, सामर्थ्य, प्रसिद्धी प्राप्त होती है। आज के दिन पुत्र तथा धन-सम्पदा प्राप्त करने लिये पूजा साधना अवश्य करना चाहिये।