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 December 17, 2022 

श्री सूक्त पाठ

लक्ष्मी मुद्रा के साथ श्रीसूक्त का पाठ नियमित रूप से करने वाले साधक के घर मे माता लक्ष्मी अपना निवास स्थान बनाती है

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥1॥

अर्थ – हे सर्वज्ञ अग्निदेव ! सुवर्ण के रंग वाली, सोने और चाँदी के हार पहनने वाली, चन्द्रमा के समान प्रसन्नकांति, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी को मेरे लिये आवाहन करो।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥

श्लोक अर्थ – अग्ने ! उन लक्ष्मीदेवी को, जिनका कभी विनाश नहीं होता तथा जिनके आगमन से मैं सोना, गौ, घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त करूँगा, मेरे लिये आवाहन करो।

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥

श्लोक अर्थ– जिन देवी के आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते हैं तथा जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आवाहन करता हूँ; लक्ष्मीदेवी मुझे प्राप्त हों।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां
तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥4॥

श्लोक अर्थ– जो साक्षात ब्रह्मरूपा, मंद-मंद मुसकराने वाली, सोने के आवरण से आवृत, दयार्द्र, तेजोमयी, पूर्णकामा, अपने भक्तों पर अनुग्रह करनेवाली, कमल के आसन पर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये
अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥

श्लोक अर्थ– मैं चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्तिवाली, सुन्दर द्युतिशालिनी, यश से दीप्तिमती, स्वर्गलोक में देवगणों के द्वारा पूजिता, उदारशीला, पद्महस्ता लक्ष्मीदेवी की शरण ग्रहण करता हूँ। मेरा दारिद्र्य दूर हो जाय। मैं आपको शरण्य के रूप में वरण करता हूँ।

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥

श्लोक अर्थ– हे सूर्य के समान प्रकाशस्वरूपे ! तुम्हारे ही तप से वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। उसके फल हमारे बाहरी और भीतरी दारिद्र्य को दूर करें।

उपैतु मां देवसखः
कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्
कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥

श्लोक अर्थ– देवि ! देवसखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापति की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हों अर्थात मुझे धन और यश की प्राप्ति हो। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ, मुझे कीर्ति और ऋद्धि प्रदान करें।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥8॥

श्लोक अर्थ– लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहिन अलक्ष्मी (दरिद्रता की अधिष्ठात्री देवी) का, जो क्षुधा और पिपासा से मलिन और क्षीणकाय रहती हैं, मैं नाश चाहता हूँ। देवि ! मेरे घर से सब प्रकार के दारिद्र्य और अमंगल को दूर करो।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥9॥

श्लोक अर्थ– जो दुराधर्षा और नित्यपुष्टा हैं तथा गोबर से ( पशुओं से ) युक्त गन्धगुणवती हैं। पृथ्वी ही जिनका स्वरुप है, सब भूतों की स्वामिनी उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ अपने घर में आवाहन करता हूँ।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥

श्लोक अर्थ– मन की कामनाओं और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हो। गौ आदि पशु एवं विभिन्न प्रकार के अन्न भोग्य पदार्थों के रूप में तथा यश के रूप में श्रीदेवी हमारे यहाँ आगमन करें।

कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥

श्लोक अर्थ– लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान हैं। कर्दम ऋषि ! आप हमारे यहाँ उत्पन्न हों तथा पद्मों की माला धारण करनेवाली माता लक्ष्मीदेवी को हमारे कुल में स्थापित करें।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥12॥

श्लोक अर्थ– जल स्निग्ध पदार्थों की सृष्टि करे। लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत ! आप भी मेरे घर में वास करें और माता लक्ष्मीदेवी का मेरे कुल में निवास करायें।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥13॥

श्लोक अर्थ– अग्ने ! आर्द्रस्वभावा, कमलहस्ता, पुष्टिरूपा, पीतवर्णा, पद्मों की माला धारण करनेवाली, चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्ति से युक्त, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी का मेरे यहाँ आवाहन करें।

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥14॥

श्लोक अर्थ– अग्ने ! जो दुष्टों का निग्रह करनेवाली होने पर भी कोमल स्वभाव की हैं, जो मंगलदायिनी, अवलम्बन प्रदान करनेवाली यष्टिरूपा, सुन्दर वर्णवाली, सुवर्णमालाधारिणी, सूर्यस्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिये आवाहन करें।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥15॥

श्लोक अर्थ– अग्ने ! कभी नष्ट न होनेवाली उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिये आवाहन करें, जिनके आगमन से बहुत-सा धन, गौएँ, दासियाँ, अश्व और पुत्रादि को हम प्राप्त करें।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥

अर्थ – जिसे लक्ष्मी की कामना हो, वह प्रतिदिन पवित्र और संयमशील होकर अग्नि में घी की आहुतियाँ दे तथा इन पंद्रह ऋचाओं वाले श्री सूक्त का निरन्तर पाठ करे।

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व ॥17॥

श्लोक अर्थ– कमल के समान मुखवाली ! कमलदल पर अपने चरणकमल रखनेवाली ! कमल में प्रीति रखनेवाली ! कमलदल के समान विशाल नेत्रोंवाली ! समग्र संसार के लिये प्रिय ! भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करनेवाली ! आप अपने चरणकमल को मेरे हृदय में स्थापित करें।

पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥18॥

श्लोक अर्थ– कमल के समान मुखमण्डल वाली ! कमल के समान ऊरुप्रदेश वाली ! कमल के समान नेत्रोंवाली ! कमल से आविर्भूत होनेवाली ! पद्माक्षि ! आप उसी प्रकार मेरा पालन करें, जिससे मुझे सुख प्राप्त हो।

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥19॥

श्लोक अर्थ– अश्वदायिनी, गोदायिनी, धनदायिनी, महाधनस्वरूपिणी हे देवि ! मेरे पास सदा धन रहे, आप मुझे सभी अभिलषित वस्तुएँ प्रदान करें।

पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥20॥

श्लोक अर्थ– आप प्राणियों की माता हैं। मेरे पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, हाथी, घोड़े, खच्चर तथा रथ को दीर्घ आयु से सम्पन्न करें।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना ॥21॥

श्लोक अर्थ– अग्नि, वायु, सूर्य, वसुगण, इन्द्र, बृहस्पति, वरुण तथा अश्विनी कुमार – ये सब वैभवस्वरुप हैं।

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥22॥

श्लोक अर्थ– हे गरुड ! आप सोमपान करें। वृत्रासुर के विनाशक इन्द्र सोमपान करें। वे गरुड तथा इन्द्र धनवान सोमपान करने की इच्छा वाले के सोम को मुझ सोमपान की अभिलाषा वाले को प्रदान करें।

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्त्या श्रीसूक्तजापिनाम् ॥23॥

श्लोक अर्थ– भक्तिपूर्वक श्री सूक्त का जप करनेवाले, पुण्यशाली लोगों को न क्रोध होता है, न ईर्ष्या होती है, न लोभ ग्रसित कर सकता है और न उनकी बुद्धि दूषित ही होती है।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्र सीद मह्यम् ॥24॥

श्लोक अर्थ– कमलवासिनी, हाथ में कमल धारण करनेवाली, अत्यन्त धवल वस्त्र, गन्धानुलेप तथा पुष्पहार से सुशोभित होनेवाली, भगवान विष्णु की प्रिया लावण्यमयी तथा त्रिलोकी को ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली हे भगवति ! मुझपर प्रसन्न होइये।

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥25॥

श्लोक अर्थ– भगवान विष्णु की भार्या, क्षमास्वरूपिणी, माधवी, माधवप्रिया, प्रियसखी, अच्युतवल्लभा, भूदेवी भगवती लक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ।

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥26॥

श्लोक अर्थ– हम विष्णु पत्नी महालक्ष्मी को जानते हैं तथा उनका ध्यान करते हैं। वे लक्ष्मीजी सन्मार्ग पर चलने के लिये हमें प्रेरणा प्रदान करें।

आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः।
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मताः ॥27॥

श्लोक अर्थ– पूर्व कल्प में जो आनन्द, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत नामक विख्यात चार ऋषि हुए थे। उसी नाम से दूसरे कल्प में भी वे ही सब लक्ष्मी के पुत्र हुए। बाद में उन्हीं पुत्रों से महालक्ष्मी अति प्रकाशमान शरीर वाली हुईं, उन्हीं महालक्ष्मी से देवता भी अनुगृहीत हुए।

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥28॥

श्लोक अर्थ– ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, क्षुधा, अपमृत्यु, भय, शोक तथा मानसिक ताप आदि – ये सभी मेरी बाधाएँ सदा के लिये नष्ट हो जाएँ।

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥29॥

श्लोक अर्थ– भगवती महालक्ष्मी मानव के लिये ओज, आयुष्य, आरोग्य, धन-धान्य, पशु, अनेक पुत्रों की प्राप्ति तथा सौ वर्ष के दीर्घ जीवन का विधान करें और मानव इनसे मण्डित होकर प्रतिष्ठा प्राप्त करे।

॥ ऋग्वेद वर्णित श्री सूक्त सम्पूर्ण ॥

 November 28, 2022 

श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र

इस गणेश पंचरत्न स्त्रोत का पाठ गणेश मुद्रा लगाकर करे तो मन की सभी मुराद पूरी होनी शुरु हो जाती है.


मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥


नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥


समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥


अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥


नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥


महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

 September 29, 2021 

पितृ चालिसा (पितर चालिसा)

श्राद्ध मे या किसी भी अमावस्या को ये पितृ चालिसा का ३ या ५ पाठ करना चाहिये इससे आर्थिक व वंश परंपरा मे आने वाली अडचने नष्ट होने लगती है.

।। दोहा ।।

हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद।
चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ।
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी।
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी।।

।। चौपाई ।।

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।
मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे।
जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का।
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।
झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।

प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी।
तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी।
भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे।
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।
शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते।
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई।

हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।
गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।
बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।

जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है।
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।

तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई।
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।
नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।
तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।

सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई।
मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।
अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।

।। दोहा ।।

पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम।
झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम।
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।

।। इति पितर चालीसा समाप्त ।।

 July 22, 2021 

गौरी (पार्वती) चालीसा

माता गौरी चालीसा पाठ नियमित करने से 

मन मंदिर मेरे आन बसो,

आरम्भ करूं गुणगान,

गौरी माँ मातेश्वरी,

दो चरणों का ध्यान।


पूजन विधी न जानती,

पर श्रद्धा है आपर,

प्रणाम मेरा स्विकारिये,

हे माँ प्राण आधार।




नमो नमो हे गौरी माता,

आप हो मेरी भाग्य विधाता,

शरनागत न कभी गभराता,

गौरी उमा शंकरी माता।


आपका प्रिय है आदर पाता,

जय हो कार्तिकेय गणेश की माता,

महादेव गणपति संग आओ,

मेरे सकल कलेश मिटाओ।


सार्थक हो जाए जग में जीना,

सत्कर्मो से कभी हटु ना,

सकल मनोरथ पूर्ण कीजो,

सुख सुविधा वरदान में दीज्यो।


हे माँ भाग्य रेखा जगा दो,

मन भावन सुयोग मिला दो,

मन को भाए वो वर चाहु,

ससुराल पक्ष का स्नेहा मै पायु।


परम आराध्या आप हो मेरी,

फ़िर क्यूं वर मे इतनी देरी,

हमरे काज सम्पूर्ण कीजियो,

थोडे में बरकत भर दीजियो।


अपनी दया बनाए रखना,

भक्ति भाव जगाये रखना,

गौरी माता अनसन रहना,

कभी न खोयूं मन का चैना।


देव मुनि सब शीश नवाते,

सुख सुविधा को वर मै पाते,

श्रद्धा भाव जो ले कर आया,

बिन मांगे भी सब कुछ पाया।


हर संकट से उसे उबारा,

आगे बढ़ के दिया सहारा,

जब भी माँ आप स्नेह दिखलावे,

निराश मन मे आस जगावे।


शिव भी आपका काहा ना टाले,

दया द्रष्टि हम पे डाले,

जो जन करता आपका ध्यान,

जग मे पाए मान सम्मान।


सच्चे मन जो सुमिरन करती,

उसके सुहाग की रक्षा करती,

दया द्रष्टि जब माँ डाले,

भव सागर से पार उतारे।


जपे जो ओम नमः शिवाय,

शिव परिवार का स्नेहा वो पाए,

जिसपे आप दया दिखावे,

दुष्ट आत्मा नहीं सतावे।


सता गुन की हो दता आप,

हर इक मन की ग्याता आप,

काटो हमरे सकल कलेश,

निरोग रहे परिवार हमेश।


दुख संताप मिटा देना माँ,

मेघ दया के बरसा देना माँ,

जबही आप मौज में आय,

हठ जय माँ सब विपदाए।


जीसपे दयाल हो माता आप,

उसका बढ़ता पुण्य प्रताप,

फल-फूल मै दुग्ध चढ़ाऊ,

श्रद्धा भाव से आपको ध्यायु।


अवगुन मेरे ढक देना माँ,

ममता आँचल कर देना माँ,

कठिन नहीं कुछ आपको माता,

जग ठुकराया दया को पाता।


बिन पाऊ न गुन माँ तेरे,

नाम धाम स्वरूप बहू तेरे,

जितने आपके पावन धाम,

सब धामो को माँ प्राणम।


आपकी दया का है ना पार,

तभी को पूजे कुल संसार,

निर्मल मन जो शरण मे आता,

मुक्ति की वो युक्ति पाता।


संतोष धन्न से दामन भर दो,

असम्भव को माँ सम्भव कर दो,

आपकी दया के भारे,

सुखी बसे मेरा परिवार।


अपकी महिमा अती निराली,

भक्तो के दुःख हरने वाली,

मनो कामना पुरन करती,

मन की दुविधा पल मे हरती।


चालीसा जो भी पढे-सुनाया,

सुयोग वर् वरदान मे पाए,

आशा पूर्ण कर देना माँ,

सुमंगल साखी वर देना माँ।


गौरी माँ विनती करूँ,

आना आपके द्वार,

ऐसी माँ कृपा किजिये,

हो जाए उद्धहार।


हीं हीं हीं शरण मे,

दो चरणों का ध्यान,

ऐसी माँ कृपा कीजिये,

पाऊँ मान सम्मान।


जय माँ गौरी (पार्वती)

 July 21, 2021 

काली चालीसा पाठ

माता काली चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने पर सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होकर तंत्र भय, शत्रु भय नष्ट हो जाते है.

॥ दोहा ॥

जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार ।
महिष मर्दिनी कालिका , देहु अभय अपार ॥

॥ चौपाई ॥

रि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । हाथ तीसरे सोहत भाला ॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता । जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता । तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । कल्याणी पापी कुल घालक ॥
शेष सुरेश न पावत पारा । गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥
रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । भक्तजनों के संकट टारे ॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी । भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । नारद शारद पार न पावैं ॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी । तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
त्रेता में रघुवर हित आई । दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे । कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
ये बालक लखि शंकर आए । राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥
बाढ्यो महिषासुर मद भारी । पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥
तब प्रगटी निज सैन समेता । नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥
मान मथनहारी खल दल के । सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । पावैं मनवांछित फल मेवा ॥
संकट में जो सुमिरन करहीं । उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥
काली चालीसा जो पढ़हीं । स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
करहु मातु भक्तन रखवाली । जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥

॥ दोहा ॥

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥

 February 10, 2020 

कृष्ण सहस्त्रनाम् पाठ

इस कृष्ण सहस्त्रनाम् का रोज नियमित रूप से एक बार पाठ करने से आकर्षण शक्ति के साथ सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है.


कृष्णश्श्रीवल्लभश्शांर्गी विष्वक्सेनस्स्वसिद्धिदः।
क्षीरोदधामा व्यूहेशश्शेषशायी जगन्मयः॥1॥
भक्तिगम्यस्रीमूर्तिर्भा-रार्तवसुधास्तुतः।
देवदेवो दयासिन्धुर्देवदेवशिखामणिः॥2॥
सुखभावस्सुखाधारोमुकुन्दो मुदिताशयः।
अविक्रियः क्रियामूर्तिरध्यात्मस्वस्वरूपवान्‌॥3॥
शिष्टाभिलक्ष्यो भूतात्मा धर्मत्राणार्थचेष्टितः।
अन्तर्यामी कलारूपः कालावयवसाक्षिकः॥4॥
वसुधायासहरणो नारदप्रेरणोन्मुखः।
प्रभूष्णुर्नारदोद्गीतो लोकरक्षापरायणः॥5॥
रौहिणेयकृतानन्दो योगज्ञाननियोजकः।
महागुहान्तर्निक्षिप्तः पुराण व पुरात्मवान्‌॥6॥
शूरवंशैकधीश्शौरिः कंसशंकाविषादकृत्‌।
वसुदेवोल्लसच्छक्ति-र्देवक्यष्टमगर्भगः॥7॥
वसुदेवसुतश्श्रीमान्देवकीनन्दनो हरिः।
आश्चर्यबालश्श्रीवत्स-लक्ष्मवक्षाश्चतुर्भुजः॥8॥
स्वभावोत्कृष्टसद्भावः कृष्णाष्टम्यन्तसम्भवः।
प्राजापत्यर्क्षसम्भूतो निशीथसमयोदितः॥9॥
शंखचक्रगदापद्मपाणिः पद्मनिभेक्षणः।
किरीटी कौस्तुभोरस्कः स्फुरन्मकरकुण्डलः॥10॥
पीतवासा घनश्यामः कुंचितांचितकुन्तलः।
सुव्यक्तव्यक्ताभरणः सूतिकागृहभूषणः॥11॥
कारागारान्धकारघ्नः पितृप्राग्जन्मसूचकः।
वसुदेवस्तुतः स्तोत्रं तापत्रयनिवारणः॥12॥
निरवद्यः क्रियामूर्तिर्न्यायवाक्यनियोजकः।
अदृष्टचेष्टः कूटस्थो धृतलौकिकविग्रहः॥13॥
महर्षिमानसोल्लासो महीमंगलदायकः।
सन्तोषितसुरव्रातः साधुुचित्तप्रसादकः॥14॥
जनकोपायनिर्देष्टा देवकीनयनोत्सवः।
पितृपाणिपरिष्कारो मोहितागाररक्षकः॥15॥
स्वशक्तयुद्धाटिताशेषकपाटः पितृवाहकः।
शेषोरगफणाच्छत्रश्शेषोक्ताख्यासहस्रकः॥16॥
यमुनापूरविध्वंसी स्वभासोद्भासितव्रजः।
कृतात्मविद्याविन्यासो योगमायाग्रसम्भवः॥17॥
दुर्गानिवेदितोद्भावो यशोदातल्पशायकः।
नन्दगोपोत्सवस्फूर्तिर्व्रजानन्दकरोदयः॥18॥
सुजातजातकर्म श्रीर्गोपीभद्रोक्तिनिर्वतः।
अलीकनिद्रोपगमः पूतनास्तनपीडनः॥19॥
स्तन्यात्तपूतनाप्राणः पूतनाक्रोशकारकः।
विन्यस्तरक्षा गोधूलिर्यशोदाकरलालितः॥20॥
नन्दाघ्रातशिरोमध्यः पूतनासुगतिप्रदः।
बालः पर्यंकनिद्रालुर्मुखार्पितपदांगुलिः॥21॥
अंजनस्निग्धनयनः पर्यायांकुरितस्मितः।
लीलाक्षस्तरलालोकश्शटासुर भंजनः॥22॥
द्विजोदितस्वस्त्ययनो मंत्रपूतजलाप्लुतः।
यशोदोत्संगपर्यंको यशोदामुखवीक्षकः॥23॥
यशोदास्तन्यमुदितस्तृणावर्तादिदुस्सहः।
तृणावर्तासुरध्वंसी मातृविस्मयकारकः॥24॥
प्रशस्तनामकरणो जानुचंक्रमणोत्सुकः।
व्यालम्बिचूलिकारत्नो घोषगोपप्रहर्षणः॥25॥
स्वमुखप्रतिबिम्बार्थी ग्रीवाव्याघ्रनखोज्जुलः।
पंकानुलेपरुचिरो मांसलोरुकटीतटः॥26॥
घृष्टजानुकरद्वंद्वः प्रतिबिम्बानुकारकृत्‌।
अव्यक्तवर्णवाग्वृत्तिः स्मितलक्ष्यरदोद्नमः॥27॥
धात्रीकरसमालम्बी प्रस्खलचित्रचंक्रमः।
अनुरूपवयस्याढ्यश्चारुकौमारचापलः॥28॥
वत्सपुच्छसमाकृष्टो वत्सपुच्छविकर्षणः।
विस्मारितान्यव्यापारो गोपीगोपीमुदावहः॥29॥
अकालवत्सनिर्मोक्ता व्रजव्याक्रोशसुस्मितः।
नवनीतमहाचोरो दारकाहारदायकः॥30॥
पीठोलूखलसोपानः क्षीरभाण्डविभेदनः।
शिक्य माण्डसमकर्षी ध्वान्तागारप्रवेशकृत॥31॥
भूषारत्नप्रकाशाढ्यो गोप्युपालम्भभर्त्सितः।
परागधूसराकारो मृद्भक्षणकृतेक्षणः॥32॥
बालोक्तमृत्कथारम्भो मित्रान्तर्गूढविग्रहः।
कृतसन्त्रासलोलाक्षो जननीप्रत्ययावहः॥33।
मातृदृश्यात्तवदनो वक्रलक्ष्यचराचरः।
यशोदाललितस्वात्मा स्वयं स्वाच्छन्द्यमोहनः॥34॥
सवित्रीस्नेहसंश्लिष्टः सवित्रीस्तनलोलुपः।
नवनीतार्थनाप्रह्वो नवनीतमहाशनः॥35॥
मृषाकोप्रकम्पोष्ठो गोष्ठांगणविलोकनः।
दधिमन्थघटीभेत्ता किकिंणीक्काणसूचितः॥36॥
हैयंगवीनरसिको मृषाश्रुश्चौर्यशंकितः।
जननीश्रमविज्ञाता दामबन्धनियंत्रितः॥37॥
दामाकल्पश्चलापांगो गाढोलूखलबन्धनः।
आकृष्टोलूखनोऽनन्तः कुबेरसुतशापिवत्‌॥। 38॥
नारदोक्तिपरामर्शी यमलार्जुनभंजनः।
धनदात्मजसंघुष्टो नन्दमोचितबन्धनः॥39॥
बालकोद्गीतनिरतो बाहुक्षेपोदितप्रियः।
आत्मज्ञो मित्रवशगो गोपीगीतगुणोदयः॥40॥
प्रस्थानशकटारूढो वृन्दावनकृतालयः।
गोवत्सपालनैकाग्रो नानाक्रीडापरिच्छदः॥41॥
क्षेपणीक्षेपणप्रीतो वेणुवाद्यविशारदः।
वृषवत्सानुकरणो वृषध्वानिविडम्बनः॥42॥
नियुद्धलीलासंहृष्टः कूजानुकृतकोकिलः।
उपात्तहं सगमनस्सर्वजन्तुरुतानुकृत्‌॥43॥
भृंगानुकारी दध्यन्नचोरो वत्सपुरस्सरः।
बली बकासुरग्राही बकतालुप्रदाहकः॥44॥
भीतगोपार्भकाहूतो बकचंचुविदारणः।
बकासुरारिर्गोपालो बालो बालाद्भुतावहः॥45॥
बलभद्रसमाश्लिष्टः कृतक्रीडानिलायनः।
क्रीडासेतुनिधानज्ञः प्लवंगोत्प्लवनोऽद्भुतः॥46॥
कन्दुकक्रीडनो लुप्तनन्दादिभववेदनः।
सुमनोऽलंकृतशिराः स्वादुस्निग्धान्नशिक्यभृत्‌॥47॥
गुंजाप्रालम्बनच्छन्नः पिंछैरलकवेषकृत्‌।
वन्याशनप्रियश्श्रृंगरवाकारितवत्सकः॥48॥
मनोज्ञपल्लवोत्तं स्वपुष्पस्वेच्छात्तषट्पदः।
मंजुशिंजितमंजीरचरणः करकंकणः॥49॥
अन्योन्यशासनः कीड़ापटुः परमकैतवः।
प्रतिध्वानप्रमुदितः शाखाचतुरचंक्रमः॥50॥
अघदानवसंहर्ता त्रजविघ्नविनाशनः।
व्रजसंजीवनश्श्रेयोनिधिर्दानवमुक्तिदः॥51॥

 February 23, 2019 

भैरव चालीसा पाठ

इस पाठ को नियमित करने से हर तरह की सुरक्षा के साथ देवी कृपा भी प्राप्त होती है. हर तरह का भै नष्ट होने के साथ भौतिक सुख की प्राप्ति होती है.

॥ दोहा ॥

श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ ॥

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ॥

|| चौपाई ||

जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ॥

जयति बटुक भैरव जय हारी । जयति काल भैरव बलकारी ॥

जयति सर्व भैरव विख्याता । जयति नाथ भैरव सुखदाता ॥

भैरव रुप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ॥

भैरव रव सुन है भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ॥

शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ॥

जटाजूट सिर चन्द्र विराजत । बाला, मुकुट, बिजायठ साजत ॥

कटि करधनी घुंघरु बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ॥

जीवन दान दास को दीन्हो । कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो ॥

वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्यो वर राख्यो मम लाली ॥

धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन ॥

कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा ॥

जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत ॥

रुप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ॥

अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोतल ॥

रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला ॥

बटुक नाथ हो काल गंभीरा । श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा ॥

करत तीनहू रुप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ॥

त्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ॥

तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ॥

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमानन्द जय ॥

भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय । बैजनाथ श्री जगतनाथ जय ॥

महाभीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय ॥

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय ॥

निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ॥

त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ॥

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ॥

रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ॥

करि मद पान शम्भु गुणगावत । चौंसठ योगिन संग नचावत ।

करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ॥

देयं काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ॥

जाकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा ॥

श्री भैरव भूतों के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ॥

ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपा करि काज सम्हारयो ॥

सुन्दरदास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ॥

श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ॥

॥ दोहा ॥

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार ॥

जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार ॥

|| इति श्री भैरव चालीसा समाप्त ||

 February 23, 2019 

श्री कृष्ण चालीसा

॥दोहा॥

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥

जय यदुनंदन जय जगवंदन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नटनागर, नाग नथइया॥ कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ। होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥

कुंडल श्रवण, पीत पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुँघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो। अका बका कागासुर मार्यो॥

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥ कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्यो। कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥

मातपिता की बन्दि छुड़ाई ।उग्रसेन कहँ राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहँ मारा॥

असुर बकासुर आदिक मार्यो। भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा के दुःख टार्यो। तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के साग विदुर घर माँगे।दर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हाँके।लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा साँप पिटारी।शालीग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

अस अनाथ के नाथ कन्हइया। डूबत भंवर बचावइ नइया॥
सुन्दरदास आ उर धारी।दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥

॥दोहा॥

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

 February 23, 2019 

सरस्वती चालीसा

सरस्वती चालीसा का नियमित पाठ करने से कला, योग्यता तथा वाणी मे निखार आता है. और माता लक्ष्मी की कृपा अपने आप मिलनी शुरु हो जाती है.

दोहा :

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी, जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी, करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुज धारी माता, सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती, तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥
तब ही मातु का निज अवतारी, पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा,तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामचरित जो रचे बनाई, आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता,तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना, भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा, केव कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी, दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता, तेहि न धरई चित माता॥
राखु लाज जननि अब मेरी, विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा, कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधुकैटभ जो अति बलवाना, बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा, फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला,बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी, पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता, क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी, सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा,बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा,क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई,रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा, सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना,निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी,जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी,नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा, दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता ,कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे, कानन में घेरे मृग नाहे॥
सागर मध्य पोत के भंजे, अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में,हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई,संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई, सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥
करै पाठ नित यह चालीसा,होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै,संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा, निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा,बंदी पाश दूर हो सारा॥
रामसागर बाँधि हेतु भवानी,कीजै कृपा दास निज जानी॥
दोहा : मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

 February 22, 2019 

शिव चालीसा पाठ

शिव चालीसा के माध्यम से आप अपने सारे दुखों को, विघ्नो को, समस्याओ को नष्ट कर भगवान शिव की अपार कृपा प्राप्त कर सकते हैं. नियमित शिव चालीसा का पाठ करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती है.


।।दोहा।।

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥


॥दोहा॥


नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।


तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥


मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।


अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥