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 February 13, 2014 
सुखमय जीवन के लिये चौसठ योगिनी नामस्तोत्रम्

64 yogini strot
 
 नियमित रूप से ६४ योगिनी नामस्त्रोत का पाठ करे और सुखमय जीवन का आनन्द ले।
 
 गजास्या सिंह-वक्त्रा च, गृध्रास्या काक-तुण्डिका ।
 
 उष्ट्रा-स्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या शिवानना ॥
 
 उलूकाक्षी घोर-रवा, मायूरी शरभानना ।
 
 कोटराक्षी चाष्ट-वक्त्रा, कुब्जा च विकटानना ॥
 
 शुष्कोदरी ललज्जिह्वा, श्व-दंष्ट्रा वानरानना ।
 
 ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बृहत्-तुण्डा सुराप्रिया ॥
 
 कपालहस्ता रक्ताक्षी, शुकी श्येनी कपोतिका ।
 
 पाशहस्ता दंडहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ॥
 
 शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी ।
 
 वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका ॥
 
 ऋक्ष-केशी महा-कुक्षिर्नागास्या प्रेतपृष्ठका ।
 
 दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मृग-श्रृंगा वृषानना ॥
 
 फाटितास्या धूम्रश्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका ।
 
 तापिनी शोषिणी स्थूलघोणोष्ठा कोटरी तथा ॥
 
 विद्युल्लोला वलाकास्या, मार्जारी कटपूतना ।
 
 अट्टहास्या च कामाक्षी, मृगाक्षी चेति ता मताः ॥
 
 
 ६४ योगिनी स्त्रोत की हवन विधि :-
 
 साधक कृष्ण-पक्ष की चतुर्दशी को उपवास करे । रात्रि में गुग्गुल और घृत से विभक्ति युक्त प्रत्येक नाम के आगे प्रणव ॐ लगाकर, प्रत्येक नाम से १०८ आहुतियाँ अर्पित करे ।
 
 पूरी तरह शुद्ध होकर, एकाग्र-मन से जो इन नामों का पाठ करता है । उसे किसी भी प्रकार का भय, तन्त्र-मन्त्र, नजर, डाकिनी, शाकिनी, कूष्माण्ड और राक्षस आदि किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती । इसके अलावा देवी सभी मनोकामनाओ को भी पूरा करती है ।
 
 हवन के लिये चौंसठ योगिनी नाम इस प्रकार है । प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’ तथा अन्त में स्वाहा लगाकर हवन करें।
 
 ॐ गजास्यै स्वाहा ॥ ॐ सिंह-वक्त्रायै स्वाहा ॥ ॐ गृध्रास्यायै स्वाहा ॥
 ॐ काक-तुण्डिकायै स्वाहा ॥ ॐ उष्ट्रास्यायै स्वाहा ॥
 ॐ अश्व-खर-ग्रीवायै स्वाहा ॥ ॐ वाराहस्यायै स्वाहा ॥
 ॐ शिवाननायै स्वाहा ॥ ॐ उलूकाक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ घोर-रवायै स्वाहा ॥
 ॐ मायूर्यै स्वाहा ॥ ॐ शरभाननायै स्वाहा ॥ ॐ कोटराक्ष्यै स्वाहा ॥
 ॐ अष्ट-वक्त्रायै स्वाहा ॥ ॐ कुब्जायै स्वाहा ॥
 ॐ विकटाननायै स्वाहा ॥ ॐ शुष्कोदर्यै स्वाहा ॥
 ॐ ललज्जिह्वायै स्वाहा ॥ ॐ श्व-दंष्ट्रायै स्वाहा ॥
 ॐ वानराननायै स्वाहा ॥ ॐ ऋक्षाक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ केकराक्ष्यै स्वाहा ॥
 ॐ बृहत्-तुण्डायै स्वाहा ॥ ॐ सुरा-प्रियायै स्वाहा ॥
 ॐ कपाल-हस्तायै स्वाहा ॥ ॐ रक्ताक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ शुक्यै स्वाहा ॥
 ॐ श्येन्यै स्वाहा ॥ ॐ कपोतिकायै स्वाहा ॥ ॐ पाश-हस्तायै स्वाहा ॥
 ॐ दण्ड-हस्तायै स्वाहा ॥ ॐ प्रचण्डायै स्वाहा ॥
 ॐ चण्ड-विक्रमायै स्वाहा ॥ ॐ शिशुघ्न्यै स्वाहा ॥
 ॐ पाश-हन्त्र्यै स्वाहा ॥ ॐ काल्यै स्वाहा ॥
 ॐ रुधिर-पायिन्यै स्वाहा ॥ ॐ वसा-पानायै स्वाहा ॥
 ॐ गर्भ-भक्षायै स्वाहा ॥ ॐ शव-हस्तायै स्वाहा ॥
 ॐ आन्त्र-मालिकायै स्वाहा ॥ ॐ ऋक्ष-केश्यै स्वाहा ॥
 ॐ महा-कुक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ नागास्यायै स्वाहा ॥
 ॐ प्रेत-पृष्ठकायै स्वाहा ॥ ॐ दंष्ट्र-शूकर-धरायै स्वाहा ॥
 ॐ क्रौञ्च्यै स्वाहा ॥ ॐ मृग-श्रृंगायै स्वाहा ॥ ॐ वृषाननायै स्वाहा ॥
 ॐ फाटितास्यायै स्वाहा ॥ ॐ धूम्र-श्वासायै स्वाहा ॥
 ॐ व्योम-पादायै स्वाहा ॥ ॐ ऊर्ध्व-दृष्टिकायै स्वाहा ॥
 ॐ तापिन्यै स्वाहा ॥ ॐ शोषिण्यै स्वाहा ॥
 ॐ स्थूल-घोणोष्ठायै स्वाहा ॥ ॐ कोटर्यै स्वाहा ॥
 ॐ विद्युल्लोलायै स्वाहा ॥ ॐ बलाकास्यायै स्वाहा ॥
 ॐ मार्जार्यै स्वाहा ॥ ॐ कट-पूतनायै स्वाहा ॥
 ॐ अट्टहास्यायै स्वाहा ॥ ॐ कामाक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ मृगाक्ष्यै स्वाहा ॥