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 October 26, 2021 

इंद्र रचित लक्ष्मी स्त्रोत

किसी भी शुक्रवार या दीपावली मे इस इंद्र रचित लक्ष्मी स्त्रोत का ५ पाठ कर लिया जाय तो व्यक्ति का महा धनवान बनने का रास्ता प्रशस्त होने लगता है

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।1।। 

इन्द्र बोले, श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महादेवी। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है। 

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।2।।

 गरुड़ पर आरुढ़ हो असुरो को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है। 

सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।3।। 

सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों का नाश करने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है। 

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।4।। 

सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें सदा प्रणाम है। 

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।5।। 

हे देवी! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ति! हे महेश्वरी! हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।

 स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।6।।

 हे देवी! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवी महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है। 

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।7।। 

हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवी! हे परमेश्वरी! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।

 श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।8।। 

हे देवी तुम श्वेत एवं लाल वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है। 

स्तोत्र पाठ का फल महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।9।। 

जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इसका सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राजवैभव को प्राप्त कर सकता है। 

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।10।। 

जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है। 

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।11।। 

जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।

 October 1, 2021 

दुर्गा चालीसा पाठ

नवरात्रि मे या किसी भी मंगलवार को दुर्गा चालीसा का पाठ करने से सुख समृद्धि के साथ सभी मनोकामना की पुर्ति होती है.

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥ 

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ 

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ 

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ 

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ 

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥ 

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

 लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥ 

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ 

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥ 

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ 

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ 

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ 

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥ 

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ 

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

शंकर आचारज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥ 

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ 

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ 

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ 

आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥ 

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥ 

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

 September 29, 2021 

पितृ चालिसा (पितर चालिसा)

श्राद्ध मे या किसी भी अमावस्या को ये पितृ चालिसा का ३ या ५ पाठ करना चाहिये इससे आर्थिक व वंश परंपरा मे आने वाली अडचने नष्ट होने लगती है.

।। दोहा ।।

हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद।
चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ।
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी।
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी।।

।। चौपाई ।।

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।
मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे।
जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का।
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।
झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।

प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी।
तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी।
भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे।
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।
शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते।
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई।

हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।
गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।
बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।

जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है।
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।

तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई।
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।
नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।
तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।

सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई।
मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।
अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।

।। दोहा ।।

पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम।
झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम।
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।

।। इति पितर चालीसा समाप्त ।।

 September 24, 2021 

पितृस्तोत्र पाठ

इस पितृस्तोत्र का पाठ किसी भी पितृ पक्ष मे, अमावस्या या ग्रहन मे किया जा सकता है यह पितृस्तोत्र मनुष्य की सभी मनोकामना की पुर्ति कर पूरे परिवार की आर्थिक, पारिवारिक व भौतिक समस्या को नष्ट करता है.

।। अथ पितृस्तोत्र ।।

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय: ।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस: ।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।


हिन्दी अर्थ– 

जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ ।

जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ ।

नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ 

जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ ।

चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है ।

जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ । उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हों मेरे पूरे परिवार को सुख-समृद्धि व वंश बढोतरी का आशिर्वाद दे.

।। इति पितृ स्त्रोत समाप्त ।।

 August 14, 2021 

प्रत्यांगिरा स्त्रोत पाठ

माता प्रत्यंगिरा का यह स्तोत्र बहुत ही प्रभावशाली और शीघ्र ही लाभ देने वाला माना जाता है | इसका नियमित पाठ से सभी प्रकार के विघ्न दोष शांत हो जाते है | जैसे नवग्रह दोष, ऊपरी साया, नजर, तंत्र बाधा ईत्यादि.

ॐ ह्रीं प्रत्यङ्गिरायै नमः | 

प्रत्यङ्गिरे अग्निं स्तम्भय | 

जलं स्तम्भय | 

सर्वजीव स्तम्भय | 

सर्वकृत्यां स्तम्भय | 

सर्वरोग स्तम्भय | 

सर्वजन स्तम्भय | 

ऐं ह्रीं क्लीं प्रत्यङ्गिरे सकल मनोरथान साधय साधय देवी तुभ्यं नमः | 

ॐ क्रीं ह्रीं महायोगिनी गौरी हुम् फट स्वाहा | 

ॐ कृष्णवसन शतसहस्त्रकोटि वदन सिंहवाहिनी परमन्त्र परतन्त्र स्फोटनी सर्वदुष्टान् भक्षय भक्षय सर्वदेवानां बंध बंध विद्वेषय विद्वेषय ज्वालाजिह्वे महाबल पराक्रम प्रत्यङ्गिरे परविद्या छेदिनी परमन्त्र नाशिनी परयन्त्र भेदिनी ॐ छ्रों नमः | 

प्रत्यङ्गिरे देवि परिपंथी विनाशिनी नमः | 

सर्वगते सौम्ये रौद्रयै परचक्राऽपहारिणि नमस्ते चण्डिके चण्डी महामहिषमर्दिनी नमस्काली महाकाली शुम्भदैत्य विनाशिनी नमो ब्रह्मास्त्र देवेशि रक्ताजिन निवासिनी नमोऽमृते महालक्ष्मी संसारार्णवतारिणी निशुम्भदैत्य संहारी कात्यायनी कालान्तके नमोऽस्तुते | 

ॐ नमः कृष्णवक्त्र शोभिते सर्वजनवशंकरि सर्वजन कोपोद्रवहारिणि दुष्टराजसंघातहारिणि अनेकसिंह कोटिवाहन सहस्त्रवदने अष्टभुजयुते महाबल पराक्रमे अत्यद्भुतपरे चितेदेवी सर्वार्थसारे परकर्म विध्वंसिनी पर मन्त्र तन्त्र चूर्ण प्रयोगादि कृते मारण वशीकरणोच्चाटन स्तम्भिनी आकर्षणि अधिकर्षणि सर्वदेवग्रह सवित्रिग्रह भोगिनीग्रह दानवग्रह दैत्यग्रह ब्रह्मराक्षसग्रह सिद्धिग्रह सिद्धग्रह विद्याग्रह विद्याधरग्रह यक्षग्रह इन्द्रग्रह गन्धर्वग्रह नरग्रह किन्नरग्रह किम्पुरुषग्रह अष्टौरोगग्रह भूतग्रह प्रेतग्रह पिशाचग्रह भक्षग्रह आधिग्रह व्याधिग्रह अपस्मारग्रह सर्पग्रह चौरग्रह पाषाणग्रह चाण्डालग्रह निषूदिनी सर्वदेशशासिनि खड्गिनी ज्वालिनिजिह्वा करालवक्त्रे प्रत्यङ्गिरे मम समस्तारोग्यं कुरु कुरु श्रियं देहि पुत्रान् देहि आयुर्देहि आरोग्यं देहि सर्वसिद्धिं देहि राजद्वारे मार्गे परिवारमाश्रिते मां पूज्य रक्ष रक्ष जप ध्यान रोमार्चनं कुरु कुरु स्वाहा |

|| प्रत्यङ्गिरा स्तोत्र सम्पूर्णं ||

 August 11, 2021 

संतान गोपाल सहस्त्रनाम

इस संतान गोपाल सहस्त्रनाम नियमित पाठ करने वाले भक्त की सभी इच्छा होती है


ऊँ क्लीं देव: कामदेव: कामबीजशिरोमणि: ।
श्रीगोपालको महीपाल: सर्वव्र्दान्तपरग: ।।1।।

धरणीपालको धन्य: पुण्डरीक: सनातन: ।
गोपतिर्भूपति: शास्ता प्रहर्ता विश्वतोमुख: ।।2।।

आदिकर्ता महाकर्ता महाकाल: प्रतापवान ।
जगज्जीवो जगद्धाता जगद्भर्ता जगद्वसु: ।।3।।

मत्स्यो भीम: कुहूभर्ता हर्ता वाराहमूर्तिमान ।
नारायणो ह्रषीकेशो गोविन्दो गरुडध्वज: ।।4।।

गोकुलेन्द्रो महाचन्द्र: शर्वरीप्रियकारक: ।
कमलामुखलोलाक्ष: पुण्डरीक शुभावह: ।।5।।

दुर्वासा: कपीलो भौम: सिन्धुसागरसड़्गम: ।
गोविन्दो गोपतिर्गोत्र: कालिन्दीप्रेमपूरक: ।।6।।

गोपस्वामी गोकुलेन्द्रो गोवर्धनवरप्रद: ।
नन्दादिगोकुलत्राता दाता दारिद्रयभंजन: ।।7।।

सर्वमंगलदाता च सर्वकामप्रदायक: ।
आदिकर्ता महीभर्ता सर्वसागरसिन्धुज: ।।8।।

गजगामी गजोद्धारी कामी कामकलानिधि: ।
कलंकरहितश्चन्द्रो बिम्बास्यो बिम्बसत्तम: ।।9।।
मालाकार: कृपाकार: कोकिलास्वरभूषण: ।
रामो नीलाम्बरो देवो हली दुर्दममर्दन: ।।10।।

सहस्राक्षपुरीभेत्ता महामारीविनाशन: ।
शिव: शिवतमो भेत्ता बलारातिप्रपूजक: ।।11।।

कुमारीवरदायी च वरेण्यो मीनकेतन: ।
नरो नारायणो धीरो राधापतिरुदारधी: ।।12।।

श्रीपति: श्रीनिधि: श्रीमान मापति: प्रतिराजहा ।
वृन्दापति: कुलग्रामी धामी ब्रह्मसनातन: ।।13।।

रेवतीरमणो रामाश्चंचलश्चारुलोचन: ।
रामायणशरीरोsयं रामी राम: श्रिय:पति: ।।14।।

शर्वर: शर्वरी शर्व: सर्वत्रशुभदायक: ।
राधाराधायितो राधी राधाचित्तप्रमोदक: ।।15।।

राधारतिसुखोपेतो राधामोहनतत्पर: ।
राधावशीकरो राधाह्रदयांभोजषट्पद: ।।16।।

राधालिंगनसंमोहो राधानर्तनकौतुक: ।
राधासंजातसम्प्रीती राधाकामफलप्रद: ।।17।।

वृन्दापति: कोशनिधिर्लोकशोकविनाशक: ।
चन्द्रापतिश्चन्द्रपतिश्चण्डकोदण्दभंजन: ।।18।।

रामो दाशरथी रामो भृगुवंशसमुदभव: ।
आत्मारामो जितक्रोधो मोहो मोहान्धभंजन ।।19।।

वृषभानुर्भवो भाव: काश्यपि: करुणानिधि: ।
कोलाहलो हली हाली हेली हलधरप्रिय: ।।20।।

राधामुखाब्जमार्तण्डो भास्करो विरजो विधु: ।
विधिर्विधाता वरुणो वारुणो वारुणीप्रिय: ।।21।।

रोहिणीह्रदयानन्दी वसुदेवात्मजो बलि: ।
नीलाम्बरो रौहिणेयो जरासन्धवधोsमल: ।।22।।

नागो नवाम्भोविरुदो वीरहा वरदो बली ।
गोपथो विजयी विद्वान शिपिविष्ट: सनातन: ।।23।।

पर्शुरामवचोग्राही वरग्राही श्रृगालहा ।
दमघोषोपदेष्टा च रथग्राही सुदर्शन: ।।24।।

वीरपत्नीयशस्राता जराव्याधिविघातक: ।
द्वारकावासतत्त्वज्ञो हुताशनवरप्रद: ।।25।।
यमुनावेगसंहारी नीलाम्बरधर: प्रभु: ।
विभु: शरासनो धन्वी गणेशो गणनायक: ।।26।।

लक्ष्मणो लक्षणो लक्ष्यो रक्षोवंशविनशन: ।
वामनो वामनीभूतो बलिजिद्विक्रमत्रय: ।।27।।

यशोदानन्दन: कर्ता यमलार्जुनमुक्तिद:
उलूखली महामानी दामबद्धाह्वयी शमी ।।28।।

भक्तानुकारी भगवान केशवोsचलधारक: ।
केशिहा मधुहा मोही वृषासुरविघातक: ।।29।।

अघासुरविनाशी च पूतनामोक्षदायक: ।
कुब्जाविनोदी भगवान कंसमृत्युर्महामखी ।।30।।

अश्वमेधो वाजपेयो गोमेधो नरमेधवान ।
कन्दर्पकोटिलावण्यश्चन्द्रकोटिसुशीतल: ।।31।।

रविकोटिप्रतीकाशो वायुकोटिमहाबल: ।
ब्रह्मा ब्रह्माण्डकर्ता च कमलावांछितप्रद: ।।32।।

कमली कमलाक्षश्च कमलामुखलोलुप: ।
कमलाव्रतधारी च कमलाभ: पुरन्दर: ।।33।।

सौभाग्याधिकचित्तोsयं महामायी महोत्कट: ।
तारकारि: सुरत्राता मारीचक्षोभकारक: ।।34।।

विश्वामित्रप्रियो दान्तो रामो राजीवलोचन: ।
लंकाधिपकुलध्वंसी विभिषणवरप्रद: ।।35।।

सीतानन्दकरो रामो वीरो वारिधिबन्धन: ।
खरदूषणसंहारी साकेतपुरवासन: ।।36।।
चन्द्रावलीपति: कूल: केशी कंसवधोsमर: ।
माधवी मधुहा माध्वी माध्वीको माधवो मधु: ।।37।।

मुंजाटवीगाहमानो धेनुकारिर्धरात्मज: ।
वंशी वटबिहारी च गोवर्धनवनाश्रय: ।।38।।

तथा तालवनोद्देशी भाण्डीरवनशंखहा ।
तृणावर्तकथाकारी वृषभनुसुतापति: ।।39।।

राधाप्राणसमो राधावदनाब्जमधुव्रत: ।
गोपीरंजनदैवज्ञो लीलाकमलपूजित: ।।40।।

क्रीडाकमलसन्दोहो गोपिकाप्रीतिरंजन: ।
रंजको रंजनो रड़्गो रड़्गी रंगमहीरुह ।।41।।

काम: कामारिभक्तोsयं पुराणपुरुष: कवि: ।
नारदो देवलो भीमो बालो बालमुखाम्बुज: ।।42।।

अम्बुजो ब्रह्मसाक्षी च योगीदत्तवरो मुनि: ।
ऋषभ: पर्वतो ग्रामो नदीपवनवल्लभ: ।।43।।

पद्मनाभ: सुरज्येष्ठो ब्रह्मा रुद्रोsहिभूषित: ।
गणानां त्राणकर्ता च गणेशो ग्रहिलो ग्रही ।।44।।

गणाश्रयो गणाध्यक्ष: क्रोडीकृतजगत्रय: ।
यादवेन्द्रो द्वारकेन्द्रो मथुरावल्लभो धुरी ।।45।।

भ्रमर: कुन्तली कुन्तीसुतरक्षी महामखी ।
यमुनावरदाता च कश्यपस्य वरप्रद: ।।46।।

शड़्खचूडवधोद्दामो गोपीरक्षणतत्पर: ।
पांचजन्यकरो रामी त्रिरामी वनजो जय: ।।47।।

फाल्गुन: फाल्गुनसखो विराधवधकारक: ।
रुक्मिणीप्राणनाथश्च सत्यभामाप्रियंकर: ।।48।।

कल्पवृक्षो महावृक्षो दानवृक्षो महाफल: ।
अंकुशो भूसुरो भामो भामको भ्रामको हरि: ।।49।।

सरल: शाश्वत: वीरो यदुवंशी शिवात्मक: ।
प्रद्युम्नबलकर्ता च प्रहर्ता दैत्यहा प्रभु: ।।50।।

महाधनो महावीरो वनमालाविभूषण: ।
तुलसीदामशोभाढयो जालन्धरविनाशन: ।।51।।

शूर: सूर्यो मृकण्डश्च भास्करो विश्वपूजित: ।
रविस्तमोहा वह्निश्च वाडवो वडवानल: ।।52।।

दैत्यदर्पविनाशी च गरुड़ो गरुडाग्रज: ।
गोपीनाथो महीनाथो वृन्दानाथोsवरोधक: ।।53।।

प्रपंची पंचरूपश्च लतागुल्मश्च गोपति: ।
गंगा च यमुनारूपो गोदा वेत्रवती तथा ।।54।।

कावेरी नर्मदा तापी गण्दकी सरयूस्तथा ।
राजसस्तामस: सत्त्वी सर्वांगी सर्वलोचन: ।।55।।

सुधामयोsमृतमयो योगिनीवल्लभ: शिव: ।
बुद्धो बुद्धिमतां श्रेष्ठोविष्णुर्जिष्णु: शचीपति: ।।56।।

वंशी वंशधरो लोको विलोको मोहनाशन: ।
रवरावो रवो रावो बालो बालबलाहक: ।।57।।

शिवो रुद्रो नलो नीलो लांगुली लांगुलाश्रय: ।
पारद: पावनो हंसो हंसारूढ़ो जगत्पति: ।।58।।

मोहिनीमोहनो मायी महामायो महामखी ।
वृषो वृषाकपि: काल: कालीदमनकारक: ।।59।।

कुब्जभाग्यप्रदो वीरो रजकक्षयकारक: ।
कोमलो वारुणो राज जलदो जलधारक: ।।60।।

हारक: सर्वपापघ्न: परमेष्ठी पितामह: ।
खड्गधारी कृपाकारी राधारमणसुन्दर: ।।61।।

द्वादशारण्यसम्भोगी शेषनागफणालय: ।
कामश्याम: सुख: श्रीद: श्रीपति: श्रीनिधि: कृति: ।।62।।

हरिर्हरो नरो नारो नरोत्तम इषुप्रिय: ।
गोपालो चित्तहर्ता च कर्ता संसारतारक: ।।63।।

आदिदेवो महादेवो गौरीगुरुरनाश्रय: ।
साधुर्मधुर्विधुर्धाता भ्राताsक्रूरपरायण: ।।64।।

रोलम्बी च हयग्रीवो वानरारिर्वनाश्रय: ।
वनं वनी वनाध्यक्षो महाबंधो महामुनि: ।।65।।

स्यमन्तकमणिप्राज्ञो विज्ञो विघ्नविघातक: ।
गोवर्धनो वर्धनीयो वर्धनी वर्धनप्रिय: ।।66।।

वर्धन्यो वर्धनो वर्धी वार्धिन्य: सुमुखप्रिय: ।
वर्धितो वृद्धको वृद्धो वृन्दारकजनप्रिय: ।।67।।

गोपालरमणीभर्ता साम्बुकुष्ठविनाशन: ।
रुक्मिणीहरण: प्रेमप्रेमी चन्द्रावलीपति: ।।68।।

श्रीकर्ता विश्वभर्ता च नारायणनरो बली ।
गणो गणपतिश्चैव दत्तात्रेयो महामुनि: ।।69।।

व्यासो नारायणो दिव्यो भव्यो भावुकधारक: ।
श्व: श्रेयसं शिवं भद्रं भावुकं भविकं शुभम ।।70।।

शुभात्मक: शुभ: शास्ता प्रशस्ता मेघनादहा ।
ब्रह्मण्यदेवो दीनानामुद्धारकरणक्षम: ।।71।।

कृष्ण: कमलपत्राक्ष: कृष्ण: कमललोचन: ।
कृष्ण: कामी सदा कृष्ण: समस्तप्रियकारक: ।।72।।

नन्दो नन्दी महानन्दी मादी मादनक: किली ।
मिली हिली गिली गोली गोलो गोलालयी गुली ।।73।।

गुग्गुली मारकी शाखी वट: पिप्पलक: कृती ।
म्लेक्षहा कालहर्ता च यशोदायश एव च ।।74।।

अच्युत: केशवो विष्णुर्हरि: सत्यो जनार्दन: ।
हंसो नारायणो लीलो नीलो भक्तिपरायण: ।।75।।

जानकीवल्लभो रामो विरामो विघ्ननाशन: ।
सहस्रांशुर्महाभानुर्वीरबाहुर्महोदधि: ।।76।।

समुद्रोsब्धिरकूपार: पारावार: सरित्पति: ।
गोकुलानन्दकारी च प्रतिज्ञापरिपालक: ।।77।।

सदाराम: कृपारामो महारामो धनुर्धर: ।
पर्वत: पर्वताकारो गयो गेयो द्विजप्रिय: ।।78।।

कमलाश्वतरो रामो रामायणप्रवर्तक: ।
द्यौदिवौ दिवसो दिव्यो भव्यो भाविभयापह: ।।79।।

पार्वतीभाग्यसहितो भ्राता लक्ष्मीविलासवान ।
विलासी साहसी सर्वी गर्वी गर्वितलोचन: ।।80।।

मुरारिर्लोकधर्मज्ञो जीवनो जीवनान्तक: ।
यमो यमादिर्यमनो यामी यामविधायक: ।।81।।

वसुली पांसुली पांसुपाण्डुरर्जुनवल्लभ: ।
ललिताचन्द्रिकामाली माली मालाम्बुजाश्रय: ।।82।।

अम्बुजाक्षो महायज्ञो दक्षश्चिन्तामणिप्रभु: ।
मणिर्दिनमणिश्चैव केदारो बदरीश्रय: ।।83।।

बदरीवनसम्प्रीतो व्यास: सत्यवतीसुत: ।
अमरारिनिहन्ता च सुधासिन्धुर्विधूदय: ।।84।।

चन्द्रो रवि: शिव: शूली चक्री चैव गदाधर: ।
श्रीकर्ता श्रीपति: श्रीद: श्रीदेवो देवकीसुत: ।।85।।

श्रीपति: पुण्डरीकाक्ष: पद्मनाभो जगत्पति: ।
वासुदेवोsप्रमेयात्मा केशवो गरुडध्वज: ।।86।।

नारायण: परं धाम देवदेवो महेश्वर: ।
चक्रपाणि: कलापूर्णो वेदवेद्यो दयानिधि: ।।87।।

भगवान सर्वभूतेशो गोपाल: सर्वपालक: ।
अनन्तो निर्गुणोsनन्तो निर्विकल्पो निरंजन: ।।88।।

निराधारो निराकारो निराभासो निराश्रय: ।
पुरुष: प्रणवातीतो मुकुन्द: परमेश्वर: ।।89।।

क्षणावनि: सर्वभौमो वैकुण्ठो भक्तवत्सल: ।
विष्णुर्दामोदर: कृष्णो माधवो मथुरापति: ।।90।।

देवकीगर्भसम्भूतयशोदावत्सलो हरि: ।
शिव: संकर्षण: शंभुर्भूतनाथो दिवस्पति: ।।91।।

अव्यय: सर्वधर्मज्ञो निर्मलो निरुपद्रव: ।
निर्वाणनायको नित्योsनिलजीमूतसन्निभ: ।।92।।

कालाक्षयश्च सर्वज्ञ: कमलारूपतत्पर: ।
ह्रषीकेश: पीतवासा वासुदेवप्रियात्मज: ।।93।।

नन्दगोपकुमारार्यो नवनीताशन: प्रभु: ।
पुराणपुरुष: श्रेष् शड़्खपाणि: सुविक्रम: ।।94।।

अनिरुद्धश्वक्ररथ: शार्ड़्गपाणिश्चतुर्भुज: ।
गदाधर: सुरार्तिघ्नो गोविन्दो नन्दकायुध: ।।95।।

वृन्दावनचर: सौरिर्वेणुवाद्यविशारद: ।
तृणावर्तान्तको भीमसाहसो बहुविक्रम: ।।96।।

सकटासुरसंहारी बकासुरविनाशन: ।
धेनुकासुरसड़्घात: पूतनारिर्नृकेसरी ।।97।।

पितामहो गुरु: साक्षी प्रत्यगात्मा सदाशिव: ।
अप्रमेय: प्रभु: प्राज्ञोsप्रतर्क्य: स्वप्नवर्धन: ।।98।।

धन्यो मान्यो भवो भावो धीर: शान्तो जगदगुरु: ।
अन्तर्यामीश्वरो दिव्यो दैवज्ञो देवता गुरु: ।।99।।

क्षीराब्धिशयनो धाता लक्ष्मीवाँल्लक्ष्मणाग्रज: ।
धात्रीपतिरमेयात्मा चन्द्रशेखरपूजित: ।।100।।

लोकसाक्षी जगच्चक्षु: पुण्य़चारित्रकीर्तन: ।
कोटिमन्मथसौन्दर्यो जगन्मोहनविग्रह: ।।101।।

मन्दस्मिततमो गोपो गोपिका परिवेष्टित: ।
फुल्लारविन्दनयनश्चाणूरान्ध्रनिषूदन: ।।102।।

इन्दीवरदलश्यामो बर्हिबर्हावतंसक: ।
मुरलीनिनदाह्लादो दिव्यमाल्यो वराश्रय: ।।103।।

सुकपोलयुग: सुभ्रूयुगल: सुललाटक: ।
कम्बुग्रीवो विशालाक्षो लक्ष्मीवान शुभलक्षण: ।।104।।

पीनवक्षाश्चतुर्बाहुश्चतुर्मूर्तीस्त्रिविक्रम: ।
कलंकरहित: शुद्धो दुष्टशत्रुनिबर्हण: ।।105।।

किरीटकुण्डलधर: कटकाड़्गदमण्डित: ।
मुद्रिकाभरणोपेत: कटिसूत्रविराजित: ।।106।।

मंजीररंजितपद: सर्वाभरणभूषित: ।
विन्यस्तपादयुगलो दिव्यमंगलविग्रह: ।।107।।

गोपिकानयनानन्द: पूर्णश्चन्द्रनिभानन: ।
समस्तजगदानन्दसुन्दरो लोकनन्दन: ।।108।।

यमुनातीरसंचारी राधामन्मथवैभव: ।
गोपनारीप्रियो दान्तो गोपिवस्त्रापहारक: ।।109।।

श्रृंगारमूर्ति: श्रीधामा तारको मूलकारणम ।
सृष्टिसंरक्षणोपाय: क्रूरासुरविभंजन ।।110।।

नरकासुरहारी च मुरारिर्वैरिमर्दन: ।
आदितेयप्रियो दैत्यभीकरश्चेन्दुशेखर: ।।111।।

जरासन्धकुलध्वंसी कंसाराति: सुविक्रम: ।
पुण्यश्लोक: कीर्तनीयो यादवेन्द्रो जगन्नुत: ।।112।।

रुक्मिणीरमण: सत्यभामाजाम्बवतीप्रिय: ।
मित्रविन्दानाग्नजितीलक्ष्मणासमुपासित: ।।113।।

सुधाकरकुले जातोsनन्तप्रबलविक्रम: ।
सर्वसौभाग्यसम्पन्नो द्वारकायामुपस्थित: ।।114।।

भद्रसूर्यसुतानाथो लीलामानुषविग्रह: ।
सहस्रषोडशस्त्रीशो भोगमोक्षैकदायक: ।।115।।

वेदान्तवेद्य: संवेद्यो वैधब्रह्माण्डनयक: ।
गोवर्धनधरो नाथ: सर्वजीवदयापर: ।।116।।

मूर्तिमान सर्वभूतात्मा आर्तत्राणपरायण: ।
सर्वज्ञ: सर्वसुलभ: सर्वशास्त्रविशारद: ।।117।।

षडगुणैश्चर्यसम्पन्न: पूर्णकामो धुरन्धर: ।
महानुभाव: कैवल्यदायको लोकनायक: ।।118।।

आदिमध्यान्तरहित: शुद्धसात्त्विकविग्रह: ।
आसमानसमस्तात्मा शरणागतवत्सल: ।।119।।

उत्पत्तिस्थितिसंहारकारणं सर्वकारणम ।
गंभीर: सर्वभावज्ञ: सच्चिदानन्दविग्रह: ।।120।।

विष्वक्सेन: सत्यसन्ध: सत्यवान्सत्यविक्रम: ।
सत्यव्रत: सत्यसंज्ञ सर्वधर्मपरायण: ।।121।।

आपन्नार्तिप्रशमनो द्रौपदीमानरक्षक: ।
कन्दर्पजनक: प्राज्ञो जगन्नाटकवैभव: ।।122।।

भक्तिवश्यो गुणातीत: सर्वैश्वर्यप्रदायक: ।
दमघोषसुतद्वेषी बाण्बाहुविखण्डन: ।।123।।

भीष्मभक्तिप्रदो दिव्य: कौरवान्वयनाशन: ।
कौन्तेयप्रियबन्धुश्च पार्थस्यन्दनसारथि: ।।124।।

नारसिंहो महावीरस्तम्भजातो महाबल: ।
प्रह्लादवरद: सत्यो देवपूज्यो भयंकर: ।।125।।

उपेन्द्र: इन्द्रावरजो वामनो बलिबन्धन: ।
गजेन्द्रवरद: स्वामी सर्वदेवनमस्कृत: ।।126।।

शेषपर्यड़्कशयनो वैनतेयरथो जयी ।
अव्याहतबलैश्वर्यसम्पन्न: पूर्णमानस: ।।127।।

योगेश्वरेश्वर: साक्षी क्षेत्रज्ञो ज्ञानदायक: ।
योगिह्रत्पड़्कजावासो योगमायासमन्वित: ।।128।।

नादबिन्दुकलातीतश्चतुर्वर्गफलप्रद: ।
सुषुम्नामार्गसंचारी सन्देहस्यान्तरस्थित: ।।129।।

देहेन्द्रियमन: प्राणसाक्षी चेत:प्रसादक: ।
सूक्ष्म: सर्वगतो देहीज्ञानदर्पणगोचर: ।।130।।

तत्त्वत्रयात्मकोsव्यक्त: कुण्डलीसमुपाश्रित: ।
ब्रह्मण्य: सर्वधर्मज्ञ: शान्तो दान्तो गतक्लम: ।।131।।

श्रीनिवास: सदानन्दी विश्वमूर्तिर्महाप्रभु: ।
सहस्त्रशीर्षा पुरुष: सहस्त्राक्ष: सहस्त्रपात: ।।132।।

समस्तभुवनाधार: समस्तप्राणरक्षक: ।
समस्तसर्वभावज्ञो गोपिकाप्राणरक्षक: ।।133।।

नित्योत्सवो नित्यसौख्यो नित्यश्रीर्नित्यमंगल: ।
व्यूहार्चितो जगन्नाथ: श्रीवैकुण्ठपुराधिप: ।।134।।

पूर्णानन्दघनीभूतो गोपवेषधरो हरि: ।
कलापकुसुमश्याम: कोमल: शान्तविग्रह: ।।135।।

गोपाड़्गनावृतोsनन्तो वृन्दावनसमाश्रय: ।
वेणुवादरत: श्रेष्ठो देवानां हितकारक: ।।136।।

बालक्रीडासमासक्तो नवनीतस्यं तस्कर: ।
गोपालकामिनीजारश्चोरजारशिखामणि: ।।137।।

परंज्योति: पराकाश: परावास: परिस्फुट: ।
अष्टादशाक्षरो मन्त्रो व्यापको लोकपावन: ।।138।।

सप्तकोटिमहामन्त्रशेखरो देवशेखर: ।
विज्ञानज्ञानसन्धानस्तेजोराशिर्जगत्पति: ।।139।।

भक्तलोकप्रसन्नात्मा भक्तमन्दारविग्रह: ।
भक्तदारिद्रयदमनो भक्तानां प्रीतिदायक: ।।140।।

भक्ताधीनमना: पूज्यो भक्तलोकशिवंकर: ।
भक्ताभीष्टप्रद: सर्वभक्ताघौघनिकृन्तन: ।।141।।

अपारकरुणासिन्धुर्भगवान भक्ततत्पर: ।।142।।

इति श्रीराधिकानाथसहस्त्रं नाम कीर्तितम ।
स्मरणात्पापराशीनां खण्डनं मृत्युनाशनम ।।143।।

वैष्णवानां प्रियकरं महारोगनिवारणम ।
ब्रह्महत्यासुरापानं परस्त्रीगमनं तथा ।।144।।

परद्रव्यापहरणं परद्वेषसमन्वितम ।
मानसं वाचिकं कायं यत्पापं पापसम्भवम ।।145।।

सहस्त्रनामपठनात्सर्व नश्यति तत्क्षणात ।
महादारिद्र्ययुक्तो यो वैष्णवो विष्णुभक्तिमान ।।146।।

कार्तिक्यां सम्पठेद्रात्रौ शतमष्टोत्तर क्रमात ।
पीताम्बरधरो धीमासुगन्धिपुष्पचन्दनै: ।।147।।

पुस्तकं पूजयित्वा तु नैवेद्यादिभिरेव च ।
राधाध्यानाड़िकतो धीरो वनमालाविभूषित: ।।148।।

शतमष्टोत्तरं देवि पठेन्नामसहस्त्रकम ।
चैत्रशुक्ले च कृष्णे च कुहूसंक्रान्तिवासरे ।।149।।

पठितव्यं प्रयत्नेन त्रौलोक्यं मोहयेत्क्षणात ।
तुलसीमालया युक्तो वैष्णवो भक्तित्पर: ।।150।।

रविवारे च शुक्रे च द्वादश्यां श्राद्धवासरे ।
ब्राह्मणं पूजयित्वा च भोजयित्वा विधानत: ।।151।।

पठेन्नामसहस्त्रं च तत: सिद्धि: प्रजायते ।
महानिशायां सततं वैष्णवो य: पठेत्सदा ।।152।।

देशान्तरगता लक्ष्मी: समायातिं न संशय: ।
त्रैलोक्ये च महादेवि सुन्दर्य: काममोहिता: ।।153।।

मुग्धा: स्वयं समायान्ति वैष्णवं च भजन्ति ता: ।
रोगी रोगात्प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात ।।154।।

गुर्विणी जनयेत्पुत्रं कन्या विन्दति सत्पतिम् ।
राजानो वश्यतां यान्ति किं पुन: क्षुद्रमानवा: ।।155।।

सहस्त्रनामश्रवणात्पठनात्पूजनात्प्रिये ।
धारणात्सर्वमाप्नोति वैष्णवो नात्र संशय: ।।156।।

वंशीतटे चान्यवटे तथा पिप्पलकेsथवा ।
कदम्बपादपतले गोपालमूर्तिसन्निधौ ।।157।।

य: पठेद्वैष्णवो नित्यं स याति हरिमन्दिरम ।
कृष्णेनोक्तं राधिकायै मया प्रोक्तं पुरा शिवे ।।158।।

नारदाय मया प्रोक्तं नारदेन प्रकाशितम् ।
मया त्वयि वरारोहे प्रोक्तमेतत्सुदुर्लभम् ।।159।।

गोपनीयं प्रयत्नेन् न प्रकाश्यं कथंचन ।
शठाय पापिने चैव लम्पटाय विशेषत: ।।160।।

न दातव्यं न दातव्यं न दात्व्यं कदाचन ।
देयं शिष्याय शान्ताय विष्णुभक्तिरताय च ।।161।।

गोदानब्रह्मयज्ञादेर्वाजपेयशस्य च ।
अश्वमेधसहस्त्रस्य फलं पाठे भवेदध्रुवम् ।।162।।

मोहनं स्तम्भनं चैव मारणोच्चाटनादिकम ।
यद्यद्वांछति चित्तेन तत्तत्प्राप्नोति वैष्णव: ।।163।।

एकादश्यां नर: स्नात्वा सुगन्धिद्रव्यतैलकै: ।
आहारं ब्राह्मणे दत्त्वा दक्षिणां स्वर्णभूषणम् ।।164।।

तत आरम्भकर्ताsसौ सर्व प्राप्नोति मानव: ।
शतावृत्तं सहस्त्रं च य: पठेद्वैष्णवो जन: ।।165।।

श्रीवृंदावनचन्द्रस्य प्रासादात्सर्वमाप्नुयात ।
यदगृहे पुस्तकं देवि पूजितं चैव तिष्ठति ।।166।।

न मारी न च दुर्भिक्षं नोपसर्गभयं क्वचित ।
सर्पादि भूतयक्षाद्या नश्यन्ति नात्र संशय: ।।167।।

श्रीगोपालो महादेवि वसेत्तस्य गृहे सदा ।
गृहे यत्र सहस्त्रं च नाम्नां तिष्ठति पूजितम् ।।168।।

 August 7, 2021 

गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत

इस गजेंद्र मोक्षा का पाठ नियमित करने सभी तरह के कर्ज, अभिशाप, श्राप नष्ट होने लगते है.

नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ। गज और ग्राह लड़त जल भीतर, लड़त-लड़त गज हार्यो।

जौ भर सूंड ही जल ऊपर तब हरिनाम पुकार्यो।। नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।

शबरी के बेर सुदामा के तन्दुल रुचि-रु‍चि-भोग लगायो। दुर्योधन की मेवा त्यागी साग विदुर घर खायो।। नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।

पैठ पाताल काली नाग नाथ्‍यो, फन पर नृत्य करायो। गिरि गोवर्द्धन कर पर धार्यो नंद का लाल कहायो।। नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।

असुर बकासुर मार्यो दावानल पान करायो। खम्भ फाड़ हिरनाकुश मार्यो नरसिंह नाम धरायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।

अजामिल गज गणिका तारी द्रोपदी चीर बढ़ायो। पय पान करत पूतना मारी कुब्जा रूप बनायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।

कौर व पाण्डव युद्ध रचायो कौरव मार हटायो। दुर्योधन का मन घटायो मोहि भरोसा आयो ।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।

सब सखियां मिल बन्धन बान्धियो रेशम गांठ बंधायो। छूटे नाहिं राधा का संग, कैसे गोवर्धन उठायो ।। नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।

योगी जाको ध्यान धरत हैं ध्यान से भजि आयो। सूर श्याम तुम्हरे मिलन को यशुदा धेनु चरायो।।
नाथ कैसे गज को फन्द छुड़ाओ, यह आचरण माहि आओ।

 August 7, 2021 

विष्णुसहस्रनाम पाठ

भगवान श्री विष्णु के 1000 नामों की महिमा सभी प्रकार की इच्छाओ को पूर्ण करने वाली होती है. इसका नियमित पाठ बडे से बडे विघ्न दुख का नाश करता है. इसका पाठ वाले व्यक्ति को यश, सुख, ऐश्वर्य, संपन्नता, सफलता, आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्त होता है

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:

ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः ।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः ।। 1 ।।
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः।
अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च ।। 2 ।।

योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः ।
नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः ।। 3 ।।

सर्वः शर्वः शिवः स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्ययः ।
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभु: ईश्वरः ।। 4 ।।

स्वयंभूः शम्भु: आदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः ।
अनादि-निधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः ।। 5 ।।
अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभो-अमरप्रभुः ।
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः ।। 6 ।।

अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः ।
प्रभूतः त्रिककुब-धाम पवित्रं मंगलं परं ।। 7।।

ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः ।
हिरण्य-गर्भो भू-गर्भो माधवो मधुसूदनः ।। 8 ।।

ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः ।
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृति: आत्मवान ।। 9 ।।
सुरेशः शरणं शर्म विश्व-रेताः प्रजा-भवः ।
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः ।। 10 ।।

अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि: अच्युतः ।
वृषाकपि: अमेयात्मा सर्व-योग-विनिःसृतः ।। 11 ।।

वसु:वसुमनाः सत्यः समात्मा संमितः समः ।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ।। 12 ।।

रुद्रो बहु-शिरा बभ्रु: विश्वयोनिः शुचि-श्रवाः ।
अमृतः शाश्वतः स्थाणु: वरारोहो महातपाः ।। 13 ।।
सर्वगः सर्वविद्-भानु:विष्वक-सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविद-अव्यंगो वेदांगो वेदवित् कविः ।। 14 ।।

लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृता-कृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूह:-चतुर्दंष्ट्र:-चतुर्भुजः ।। 15 ।।

भ्राजिष्णु भोजनं भोक्ता सहिष्णु: जगदादिजः ।
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः ।। 16 ।।

उपेंद्रो वामनः प्रांशु: अमोघः शुचि: ऊर्जितः ।
अतींद्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः ।। 17 ।।
वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।
अति-इंद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ।। 18 ।।

महाबुद्धि: महा-वीर्यो महा-शक्ति: महा-द्युतिः।
अनिर्देश्य-वपुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रि-धृक ।। 19 ।।

महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः ।
अनिरुद्धः सुरानंदो गोविंदो गोविदां-पतिः ।। 20 ।।

मरीचि:दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः ।
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः ।। 21 ।।
अमृत्युः सर्व-दृक् सिंहः सन-धाता संधिमान स्थिरः ।
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा ।। 22 ।।

गुरुःगुरुतमो धामः सत्यः सत्य-पराक्रमः ।
निमिषो-अ-निमिषः स्रग्वी वाचस्पति: उदार-धीः ।। 23 ।।

अग्रणी: ग्रामणीः श्रीमान न्यायो नेता समीरणः ।
सहस्र-मूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात ।। 24 ।।

आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः सं-प्रमर्दनः ।
अहः संवर्तको वह्निः अनिलो धरणीधरः ।। 25 ।।
सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृक्-विश्वभुक्-विभुः ।
सत्कर्ता सकृतः साधु: जह्नु:-नारायणो नरः ।। 26 ।।

असंख्येयो-अप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्ट-कृत्-शुचिः ।
सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः ।। 27।।

वृषाही वृषभो विष्णु: वृषपर्वा वृषोदरः ।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुति-सागरः ।। 28 ।।

सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेंद्रो वसुदो वसुः ।
नैक-रूपो बृहद-रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः ।। 29 ।।
ओज: तेजो-द्युतिधरः प्रकाश-आत्मा प्रतापनः ।
ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मंत्र:चंद्रांशु: भास्कर-द्युतिः ।। 30 ।।

अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः ।
औषधं जगतः सेतुः सत्य-धर्म-पराक्रमः ।। 31 ।।

भूत-भव्य-भवत्-नाथः पवनः पावनो-अनलः ।
कामहा कामकृत-कांतः कामः कामप्रदः प्रभुः ।। 32 ।।

युगादि-कृत युगावर्तो नैकमायो महाशनः ।
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजित्-अनंतजित ।। 33 ।।
इष्टो विशिष्टः शिष्टेष्टः शिखंडी नहुषो वृषः ।
क्रोधहा क्रोधकृत कर्ता विश्वबाहु: महीधरः ।। 34 ।।

अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः ।
अपाम निधिरधिष्टानम् अप्रमत्तः प्रतिष्ठितः ।। 35 ।।

स्कन्दः स्कन्द-धरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः ।
वासुदेवो बृहद भानु: आदिदेवः पुरंदरः ।। 36 ।।

अशोक: तारण: तारः शूरः शौरि: जनेश्वर: ।
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः ।। 37 ।।
पद्मनाभो-अरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत ।
महर्धि-ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुड़ध्वजः ।। 38 ।।

अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः ।
सर्वलक्षण लक्षण्यो लक्ष्मीवान समितिंजयः ।। 39 ।।

विक्षरो रोहितो मार्गो हेतु: दामोदरः सहः ।
महीधरो महाभागो वेगवान-अमिताशनः ।। 40 ।।

उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः ।
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः ।। 41 ।।
व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो-ध्रुवः ।
परर्रद्वि परमस्पष्टः तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः ।। 42 ।।

रामो विरामो विरजो मार्गो नेयो नयो-अनयः ।
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठ: धर्मो धर्मविदुत्तमः ।। 43 ।।

वैकुंठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः ।
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः ।। 44।।

ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः ।
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्व-दक्षिणः ।। 45 ।।
विस्तारः स्थावर: स्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम ।
अर्थो अनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः ।। 46 ।।

अनिर्विण्णः स्थविष्ठो-अभूर्धर्म-यूपो महा-मखः ।
नक्षत्रनेमि: नक्षत्री क्षमः क्षामः समीहनः ।। 47 ।।

यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः ।
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमं ।। 48 ।।

सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत ।
मनोहरो जित-क्रोधो वीरबाहुर्विदारणः ।। 49 ।।
स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत ।
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः ।। 50 ।।

धर्मगुब धर्मकृद धर्मी सदसत्क्षरं-अक्षरं ।
अविज्ञाता सहस्त्रांशु: विधाता कृतलक्षणः ।। 51 ।।

गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः ।
आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद गुरुः ।। 52 ।।

उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः ।
शरीर भूतभृद्भोक्ता कपींद्रो भूरिदक्षिणः ।। 53 ।।
सोमपो-अमृतपः सोमः पुरुजित पुरुसत्तमः ।
विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्वतां पतिः ।। 54 ।।

जीवो विनयिता-साक्षी मुकुंदो-अमितविक्रमः ।
अम्भोनिधिरनंतात्मा महोदधिशयो-अंतकः ।। 55 ।।

अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः ।
आनंदो नंदनो नंदः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः ।। 56 ।।

महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः ।
त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाश्रृंगः कृतांतकृत ।। 57 ।।
महावराहो गोविंदः सुषेणः कनकांगदी ।
गुह्यो गंभीरो गहनो गुप्तश्चक्र-गदाधरः ।। 58 ।।

वेधाः स्वांगोऽजितः कृष्णो दृढः संकर्षणो-अच्युतः ।
वरूणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः ।। 59 ।।

भगवान भगहानंदी वनमाली हलायुधः ।
आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णु:-गतिसत्तमः ।। 60 ।।

सुधन्वा खण्डपरशुर्दारुणो द्रविणप्रदः ।
दिवि:स्पृक् सर्वदृक व्यासो वाचस्पति:अयोनिजः ।। 61 ।।
त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक ।
संन्यासकृत्-छमः शांतो निष्ठा शांतिः परायणम ।। 62 ।।

शुभांगः शांतिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः ।
गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः ।। 63 ।।

अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत्-शिवः ।
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः ।। 64 ।।

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः ।
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमान्-लोकत्रयाश्रयः ।। 65 ।।
स्वक्षः स्वंगः शतानंदो नंदिर्ज्योतिर्गणेश्वर: ।
विजितात्मा विधेयात्मा सत्कीर्तिश्छिन्नसंशयः ।। 66 ।।

उदीर्णः सर्वत:चक्षुरनीशः शाश्वतस्थिरः ।
भूशयो भूषणो भूतिर्विशोकः शोकनाशनः ।। 67 ।।

अर्चिष्मानर्चितः कुंभो विशुद्धात्मा विशोधनः ।
अनिरुद्धोऽप्रतिरथः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः ।। 68 ।।

कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः ।
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः ।। 69 ।।
कामदेवः कामपालः कामी कांतः कृतागमः ।
अनिर्देश्यवपुर्विष्णु: वीरोअनंतो धनंजयः ।। 70 ।।

ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृत् ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धनः ।
ब्रह्मविद ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः ।। 71 ।।

महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः ।
महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः ।। 72 ।।

स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः ।
पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिरनामयः ।। 73 ।।
मनोजवस्तीर्थकरो वसुरेता वसुप्रदः ।
वसुप्रदो वासुदेवो वसुर्वसुमना हविः ।। 74 ।।

सद्गतिः सकृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणः ।
शूरसेनो यदुश्रेष्ठः सन्निवासः सुयामुनः ।। 75 ।।

भूतावासो वासुदेवः सर्वासुनिलयो-अनलः ।
दर्पहा दर्पदो दृप्तो दुर्धरो-अथापराजितः ।। 76 ।।

विश्वमूर्तिमहार्मूर्ति:दीप्तमूर्ति: अमूर्तिमान ।
अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः ।। 77 ।।
एको नैकः सवः कः किं यत-तत-पद्मनुत्तमम ।
लोकबंधु: लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः ।। 78 ।।

सुवर्णोवर्णो हेमांगो वरांग: चंदनांगदी ।
वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरऽचलश्चलः ।। 79 ।।

अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक ।
सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः ।। 80 ।।

तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः ।
प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकश्रृंगो गदाग्रजः ।। 81 ।।
चतुर्मूर्ति: चतुर्बाहु:श्चतुर्व्यूह:चतुर्गतिः ।
चतुरात्मा चतुर्भाव:चतुर्वेदविदेकपात ।। 82 ।।

समावर्तो-अनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः ।
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा ।। 83 ।।

शुभांगो लोकसारंगः सुतंतुस्तंतुवर्धनः ।
इंद्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः ।। 84 ।।

उद्भवः सुंदरः सुंदो रत्ननाभः सुलोचनः ।
अर्को वाजसनः श्रृंगी जयंतः सर्वविज-जयी ।। 85 ।।
सुवर्णबिंदुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः ।
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधः ।। 86 ।।

कुमुदः कुंदरः कुंदः पर्जन्यः पावनो-अनिलः ।
अमृतांशो-अमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः ।। 87 ।।

सुलभः सुव्रतः सिद्धः शत्रुजिच्छत्रुतापनः ।
न्यग्रोधो औदुंबरो-अश्वत्थ:चाणूरांध्रनिषूदनः ।। 88 ।।

सहस्रार्चिः सप्तजिव्हः सप्तैधाः सप्तवाहनः ।
अमूर्तिरनघो-अचिंत्यो भयकृत्-भयनाशनः ।। 89 ।।
अणु:बृहत कृशः स्थूलो गुणभृन्निर्गुणो महान् ।
अधृतः स्वधृतः स्वास्यः प्राग्वंशो वंशवर्धनः ।। 90 ।।

भारभृत्-कथितो योगी योगीशः सर्वकामदः ।
आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णो वायुवाहनः ।। 91 ।।

धनुर्धरो धनुर्वेदो दंडो दमयिता दमः ।
अपराजितः सर्वसहो नियंता नियमो यमः ।। 92 ।।

सत्त्ववान सात्त्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः ।
अभिप्रायः प्रियार्हो-अर्हः प्रियकृत-प्रीतिवर्धनः ।। 93 ।।
विहायसगतिर्ज्योतिः सुरुचिर्हुतभुग विभुः ।
रविर्विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः ।। 94 ।।

अनंतो हुतभुग्भोक्ता सुखदो नैकजोऽग्रजः ।
अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकधिष्ठानमद्भुतः ।। 95।।

सनात्-सनातनतमः कपिलः कपिरव्ययः ।
स्वस्तिदः स्वस्तिकृत स्वस्ति स्वस्तिभुक स्वस्तिदक्षिणः ।। 96 ।।

अरौद्रः कुंडली चक्री विक्रम्यूर्जितशासनः ।
शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकरः ।। 97 ।।
अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणां वरः ।
विद्वत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः ।। 98 ।।

उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः ।
वीरहा रक्षणः संतो जीवनः पर्यवस्थितः ।। 99 ।।

अनंतरूपो-अनंतश्री: जितमन्यु: भयापहः ।
चतुरश्रो गंभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः ।। 100 ।।

अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मी: सुवीरो रुचिरांगदः ।
जननो जनजन्मादि: भीमो भीमपराक्रमः ।। 101 ।।
आधारनिलयो-धाता पुष्पहासः प्रजागरः ।
ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः ।। 102 ।।

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत प्राणजीवनः ।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्यु जरातिगः ।। 103 ।।

भूर्भवः स्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः ।
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञांगो यज्ञवाहनः ।। 104 ।।

यज्ञभृत्-यज्ञकृत्-यज्ञी यज्ञभुक्-यज्ञसाधनः ।
यज्ञान्तकृत-यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च ।। 105 ।।
आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः ।
देवकीनंदनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः ।। 106 ।।

शंखभृन्नंदकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः ।
रथांगपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः ।। 107 ।।

सर्वप्रहरणायुध ॐ नमः इति।

वनमालि गदी शार्ङ्गी शंखी चक्री च नंदकी ।
श्रीमान् नारायणो विष्णु: वासुदेवोअभिरक्षतु ।

 July 29, 2021 

कनकधारा स्त्रोत

इस पाठ का नियमित जप करने माता लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है धन आने के स्रोत बढ जाते है.

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

।। इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

 July 24, 2021 

बजरंग बाण

नियमित बजरंग बाण का पाठ करने से बिगडे काम बनने शुरु हो जाते है.इस पाठ से ग्रह दोष, विवाह बाधा, कारागार का भय, साढे-साती, बिमारी का भय, नौकरी का भय, वास्तु दोष नष्ट होना शुरु हो जाता है

चौपाई :
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

दोहा :
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥