Divyayogashop Blog

 December 6, 2020 

विपरीत प्रत्यंगिरा साधना शिविर वज्रेश्वरी

(Sat+Sun) 2- 3 Jan.21.at Vajreshwari near mumbai

Viparit Pratyangira is considered a powerful force, it immediately sends back any kind of Jealousy, blackmagic or any kind of negative energy coming by the enemy. Because of this, enemies slowly stop harassing.

बिपरीत प्रत्यंगिरा एक शक्तिशाली शक्ति मानी जाती है ये शत्रु के द्वारा आने वाली किसी भी प्रकार की नजर, तंत्र, ब्लैकमजिक या किसी भी प्रकार का नकारात्मक उर्जा को तुरंत वापस भेज देता है. इसकी वजह से धीरे धीरे शत्रु परेशान करना बंद कर देते है.

इस साधना के द्वारा ब्यक्ति अपने परिवार को हर तरह की बाधा से सुरक्षित कर लेता है.

इस शिविर मे १२५००० से लेकर ५५०००० तक जप हवन का अनुष्ठान होगा. इसमे भाग लेना किसी सौभाग्य से कम नही है. इसलिये एक बार अवश्य जरूर इस शिविर मे भाग लेकर अनुभव जरूर प्राप्त करे!

VIPREET PRATYANGIRA SADHANA BOOKING

Pickup point-(8am) Hotel Hardik place, opp mira road railway station east. Mira road.

Shivir Location- https://goo.gl/maps/AWUTZNAyjky

Fees 8000/- Including- Sadhana samagri (Siddha Pratyangira Yantra, Pratyangira mala, Siddha Pratyangira suraksha gutika, Pratyangira asan, Pratyangira shrangar, Siddha Chirmi beads, Gomati chakra, Tantrokta nariyal, siddha kaudi, Siddha Rakshasutra and more.) + Pratyangira Diksha by Guruji+ Room Stay with Complementary Breakfast, Lunch, Dinner. (Husband-wife 12000/-) (Pay 1000/- booking and balance pay on shivir)

Call for booking-91 7710812329/ 91 9702222903

 December 6, 2020 

Kumbha Vivah shivir vajreshwari

(Sat+Sun) 23-24 Jan. 2021 at Vajreshwari near Mumbai.

Mata Katyayani is considered to be the form of Durga, this is considered to be the auspicious goddess of mangalik work. Person practiced to remove many problems such as ..

माता कात्यायनी दुर्गा का स्वरूप मानी जाती है ये शुभ कार्य व मंगल कार्य की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है. इनकी साधनाअनेको समस्याओ को दूर करने के लिये की जाती है जैसे कि..

Engagement is falling apart

  • Spouse Wives
  • Lover love
  • Interruption of marriage
  • Difficulties in marriage due to old age
  • Unable to impress your partner
  • Chances of getting divorced increased
  • बार बार सगाई टूट रही हो
  • पति-पत्नि मे अनबन
  • प्रेमी-प्रेमिका मे अनबन
  • विवाह मे बाधा
  • उम्र बढ जाने की वजह से शादी-व्याह मे अडचन
  • अपने पार्टनर को प्रभावित न कर पाना
  • तलाक होने की संभावना बढ गई हो

इस शिविर मे १२५००० से लेकर ५५०००० तक जप हवन का अनुष्ठान होगा. इसमे भाग लेना किसी सौभाग्य से कम नही है. इसलिये एक बार अवश्य जरूर इस शिविर मे भाग लेकर अनुभव जरूर प्राप्त करे!

Katyayani (Kumbha Vivah) SADHANA BOOKING

Pickup point-(8am) Hotel Hardik place, opp mira road railway station east. Mira road.

Shivir Location- https://goo.gl/maps/AWUTZNAyjky

Fees 8000/- Including- Sadhana samagri (Siddha Katyayani Yantra, Katyayani mala, Siddha Vivah parad gutika, Katyayani asan, Siddha Chirmi beads, Gomati chakra, Tantrokta nariyal, siddha kaudi, Siddha Rakshasutra and more.) + Katyayani Diksha by Guruji+ Room Stay with Complementary Breakfast, Lunch, Dinner. (Husband-wife 12000/-) (Pay 1000/- booking and balance pay on shivir)

Call for booking-91 7710812329/ 91 9702222903

Tags: vajreshwari, katyayani, kumbha vivah, divyayoga ashram

 November 29, 2020 

शिवानंद दास जी के मार्गदर्शन मे

अक्षय पात्र लक्ष्मी साधना शिविर

Akshaya Patra Lakshmi-Ganesh Sadhna Shivir

(Sat+Sun) 19th -20th Dec. 2020 at Vajreshwari near mumbai.


माता लक्ष्मी के अनेको स्वरूप होते है और अक्षय पात्र लक्ष्मी मे माता के सभी स्वरूप समाहित रहते है. इसलिये अक्षय पात्र लक्ष्मी के उपासक को लक्ष्मी व भगवान गणेश की कृपा से अनेको स्रोतो से धन की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही धन से संबंधित सभी तरह के विवाद, कर्ज, दुकान -धंधे की रुकावट नष्ट होकर सुख-्समृद्धि की प्राप्ति होती है.

यह प्रयोग तांबे के कलश मे संपन्न करवाया जाता है. जो कि जीवन भर काम आता है. इसी अक्षय पात्र कलश पर १२५००० से लेकर ५५०००० तक जप हवन का अनुष्ठान होगा. इसमे भाग लेना किसी सौभाग्य से कम नही है. इसलिये एक बार अवश्य जरूर इस शिविर मे भाग लेकर अनुभव जरूर प्राप्त करे!

AKSHAY PATRA LAKSHMI SADHANA BOOKING

Pickup point-(8am) Hotel Hardik place, opp mira road railway station east. Mira road.

Shivir Location- https://goo.gl/maps/AWUTZNAyjky

Fees 8000/- Including- Sadhana samagri (Siddha Akshay patra lakshmi Yantra, Siddha Akshay patra lakshmi mala, Siddha Akshay patra lakshmi parad gutika, Akshay patra lakshmi asan, Siddha Chirmi beads, Gomati chakra, Tantrokta nariyal, siddha kaudi, Siddha Rakshasutra and more.) + Akshay patra lakshmi Diksha by Guruji+ Room Stay with Complementary Breakfast, Lunch, Dinner. (Husband-wife 12000/-) (Pay 1000/- booking and balance pay on shivir)

Call for booking-91 7710812329/ 91 9702222903

 February 16, 2020 

गणेश चालीसा पाठ

इस गणेश चालीसा का नियमित १ से ३ पाठ करने साधक के सभी विघ्न नष्ट होकर भौतिक सुख की प्राप्ति होती है

दोहा

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥

चौपाई
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू॥1॥

जय गजबदन सदन सुखदाता।
विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥2॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥3॥

राजत मणि मुक्तन उर माला।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥4॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥5॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित।
चरण पादुका मुनि मन राजित॥6॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।
गौरी ललन विश्व-विख्याता॥7॥

ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे।
मूषक वाहन सोहत द्घारे॥8॥

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी।
अति शुचि पावन मंगलकारी॥9॥

एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी॥10॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।
तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा॥11॥

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥12॥

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥13॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।
बिना गर्भ धारण, यहि काला॥14॥

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना।
पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥15॥

अस कहि अन्तर्धान रुप है।
पलना पर बालक स्वरुप है॥16॥

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना।
लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥17॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥18॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥19॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा।
देखन भी आये शनि राजा॥20॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।
बालक, देखन चाहत नाहीं॥21॥

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।
उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥22॥

कहन लगे शनि, मन सकुचाई।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥23॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।
शनि सों बालक देखन कहाऊ॥24॥

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा।
बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा॥25॥

गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी।
सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥26॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा।
शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥27॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।
काटि चक्र सो गज शिर लाये॥28॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो।
प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥29॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।
प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे॥30॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥31॥

चले षडानन, भरमि भुलाई।
रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥32॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥33॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥34॥

तुम्हरी महिमा बुद्ध‍ि बड़ाई।
शेष सहसमुख सके न गाई॥35॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी।
करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥36॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥37॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै।
अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥38॥

श्री गणेश यह चालीसा।
पाठ करै कर ध्यान॥39॥

नित नव मंगल गृह बसै।
लहे जगत सन्मान॥40॥

दोहा
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥

 February 16, 2020 

श्री गायत्री चालीसा

इस चालीसा का नियमित ३ पाठ करने वाला उपासक यहा सुख समृद्धि हमेशा बनी रहती है.

॥ दोहा ॥

ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा,जीवन ज्योति प्रचण्ड।

शान्ति कान्ति जागृत प्रगति,रचना शक्ति अखण्ड॥

जगत जननी मङ्गल करनि,गायत्री सुखधाम।

प्रणवों सावित्री स्वधा,स्वाहा पूरन काम॥

॥ चौपाई ॥

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी।गायत्री नित कलिमल दहनी॥

अक्षर चौविस परम पुनीता।इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥

शाश्वत सतोगुणी सत रूपा।सत्य सनातन सुधा अनूपा॥

हंसारूढ सिताम्बर धारी।स्वर्ण कान्ति शुचि गगन-बिहारी॥

पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला।शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥

ध्यान धरत पुलकित हित होई।सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया।निराकार की अद्भुत माया॥

तुम्हरी शरण गहै जो कोई।तरै सकल संकट सों सोई॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली।दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥

तुम्हरी महिमा पार न पावैं।जो शारद शत मुख गुन गावैं॥

चार वेद की मात पुनीता।तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥

महामन्त्र जितने जग माहीं।कोउ गायत्री सम नाहीं॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै।आलस पाप अविद्या नासै॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी।कालरात्रि वरदा कल्याणी॥

ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते।तुम सों पावें सुरता तेते॥

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे।जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी।जय जय जय त्रिपदा भयहारी॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना।तुम सम अधिक न जगमे आना॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा।तुमहिं पाय कछु रहै न कलेशा॥

जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई।पारस परसि कुधातु सुहाई॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई।माता तुम सब ठौर समाई॥

ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे।सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥

सकल सृष्टि की प्राण विधाता।पालक पोषक नाशक त्राता॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी।तुम सन तरे पातकी भारी॥

जापर कृपा तुम्हारी होई।तापर कृपा करें सब कोई॥

मन्द बुद्धि ते बुधि बल पावें।रोगी रोग रहित हो जावें॥

दरिद्र मिटै कटै सब पीरा।नाशै दुःख हरै भव भीरा॥

गृह क्लेश चित चिन्ता भारी।नासै गायत्री भय हारी॥

सन्तति हीन सुसन्तति पावें।सुख संपति युत मोद मनावें॥

भूत पिशाच सबै भय खावें।यम के दूत निकट नहिं आवें॥

जो सधवा सुमिरें चित लाई।अछत सुहाग सदा सुखदाई॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी।विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥

जयति जयति जगदम्ब भवानी।तुम सम ओर दयालु न दानी॥

जो सतगुरु सो दीक्षा पावे।सो साधन को सफल बनावे॥

सुमिरन करे सुरूचि बडभागी।लहै मनोरथ गृही विरागी॥

अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता।सब समर्थ गायत्री माता॥

ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी।आरत अर्थी चिन्तित भोगी॥

जो जो शरण तुम्हारी आवें।सो सो मन वांछित फल पावें॥

बल बुधि विद्या शील स्वभाउ।धन वैभव यश तेज उछाउ॥

सकल बढें उपजें सुख नाना।जे यह पाठ करै धरि ध्याना॥

॥ दोहा ॥

यह चालीसा भक्ति युत,पाठ करै जो कोई।

तापर कृपा प्रसन्नता,गायत्री की होय॥

 February 11, 2020 

ललिता सहस्रनाम स्त्रोत

 

 February 10, 2020 

कृष्ण सहस्त्रनाम् पाठ

इस कृष्ण सहस्त्रनाम् का रोज नियमित रूप से एक बार पाठ करने से आकर्षण शक्ति के साथ सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है.


कृष्णश्श्रीवल्लभश्शांर्गी विष्वक्सेनस्स्वसिद्धिदः।
क्षीरोदधामा व्यूहेशश्शेषशायी जगन्मयः॥1॥
भक्तिगम्यस्रीमूर्तिर्भा-रार्तवसुधास्तुतः।
देवदेवो दयासिन्धुर्देवदेवशिखामणिः॥2॥
सुखभावस्सुखाधारोमुकुन्दो मुदिताशयः।
अविक्रियः क्रियामूर्तिरध्यात्मस्वस्वरूपवान्‌॥3॥
शिष्टाभिलक्ष्यो भूतात्मा धर्मत्राणार्थचेष्टितः।
अन्तर्यामी कलारूपः कालावयवसाक्षिकः॥4॥
वसुधायासहरणो नारदप्रेरणोन्मुखः।
प्रभूष्णुर्नारदोद्गीतो लोकरक्षापरायणः॥5॥
रौहिणेयकृतानन्दो योगज्ञाननियोजकः।
महागुहान्तर्निक्षिप्तः पुराण व पुरात्मवान्‌॥6॥
शूरवंशैकधीश्शौरिः कंसशंकाविषादकृत्‌।
वसुदेवोल्लसच्छक्ति-र्देवक्यष्टमगर्भगः॥7॥
वसुदेवसुतश्श्रीमान्देवकीनन्दनो हरिः।
आश्चर्यबालश्श्रीवत्स-लक्ष्मवक्षाश्चतुर्भुजः॥8॥
स्वभावोत्कृष्टसद्भावः कृष्णाष्टम्यन्तसम्भवः।
प्राजापत्यर्क्षसम्भूतो निशीथसमयोदितः॥9॥
शंखचक्रगदापद्मपाणिः पद्मनिभेक्षणः।
किरीटी कौस्तुभोरस्कः स्फुरन्मकरकुण्डलः॥10॥
पीतवासा घनश्यामः कुंचितांचितकुन्तलः।
सुव्यक्तव्यक्ताभरणः सूतिकागृहभूषणः॥11॥
कारागारान्धकारघ्नः पितृप्राग्जन्मसूचकः।
वसुदेवस्तुतः स्तोत्रं तापत्रयनिवारणः॥12॥
निरवद्यः क्रियामूर्तिर्न्यायवाक्यनियोजकः।
अदृष्टचेष्टः कूटस्थो धृतलौकिकविग्रहः॥13॥
महर्षिमानसोल्लासो महीमंगलदायकः।
सन्तोषितसुरव्रातः साधुुचित्तप्रसादकः॥14॥
जनकोपायनिर्देष्टा देवकीनयनोत्सवः।
पितृपाणिपरिष्कारो मोहितागाररक्षकः॥15॥
स्वशक्तयुद्धाटिताशेषकपाटः पितृवाहकः।
शेषोरगफणाच्छत्रश्शेषोक्ताख्यासहस्रकः॥16॥
यमुनापूरविध्वंसी स्वभासोद्भासितव्रजः।
कृतात्मविद्याविन्यासो योगमायाग्रसम्भवः॥17॥
दुर्गानिवेदितोद्भावो यशोदातल्पशायकः।
नन्दगोपोत्सवस्फूर्तिर्व्रजानन्दकरोदयः॥18॥
सुजातजातकर्म श्रीर्गोपीभद्रोक्तिनिर्वतः।
अलीकनिद्रोपगमः पूतनास्तनपीडनः॥19॥
स्तन्यात्तपूतनाप्राणः पूतनाक्रोशकारकः।
विन्यस्तरक्षा गोधूलिर्यशोदाकरलालितः॥20॥
नन्दाघ्रातशिरोमध्यः पूतनासुगतिप्रदः।
बालः पर्यंकनिद्रालुर्मुखार्पितपदांगुलिः॥21॥
अंजनस्निग्धनयनः पर्यायांकुरितस्मितः।
लीलाक्षस्तरलालोकश्शटासुर भंजनः॥22॥
द्विजोदितस्वस्त्ययनो मंत्रपूतजलाप्लुतः।
यशोदोत्संगपर्यंको यशोदामुखवीक्षकः॥23॥
यशोदास्तन्यमुदितस्तृणावर्तादिदुस्सहः।
तृणावर्तासुरध्वंसी मातृविस्मयकारकः॥24॥
प्रशस्तनामकरणो जानुचंक्रमणोत्सुकः।
व्यालम्बिचूलिकारत्नो घोषगोपप्रहर्षणः॥25॥
स्वमुखप्रतिबिम्बार्थी ग्रीवाव्याघ्रनखोज्जुलः।
पंकानुलेपरुचिरो मांसलोरुकटीतटः॥26॥
घृष्टजानुकरद्वंद्वः प्रतिबिम्बानुकारकृत्‌।
अव्यक्तवर्णवाग्वृत्तिः स्मितलक्ष्यरदोद्नमः॥27॥
धात्रीकरसमालम्बी प्रस्खलचित्रचंक्रमः।
अनुरूपवयस्याढ्यश्चारुकौमारचापलः॥28॥
वत्सपुच्छसमाकृष्टो वत्सपुच्छविकर्षणः।
विस्मारितान्यव्यापारो गोपीगोपीमुदावहः॥29॥
अकालवत्सनिर्मोक्ता व्रजव्याक्रोशसुस्मितः।
नवनीतमहाचोरो दारकाहारदायकः॥30॥
पीठोलूखलसोपानः क्षीरभाण्डविभेदनः।
शिक्य माण्डसमकर्षी ध्वान्तागारप्रवेशकृत॥31॥
भूषारत्नप्रकाशाढ्यो गोप्युपालम्भभर्त्सितः।
परागधूसराकारो मृद्भक्षणकृतेक्षणः॥32॥
बालोक्तमृत्कथारम्भो मित्रान्तर्गूढविग्रहः।
कृतसन्त्रासलोलाक्षो जननीप्रत्ययावहः॥33।
मातृदृश्यात्तवदनो वक्रलक्ष्यचराचरः।
यशोदाललितस्वात्मा स्वयं स्वाच्छन्द्यमोहनः॥34॥
सवित्रीस्नेहसंश्लिष्टः सवित्रीस्तनलोलुपः।
नवनीतार्थनाप्रह्वो नवनीतमहाशनः॥35॥
मृषाकोप्रकम्पोष्ठो गोष्ठांगणविलोकनः।
दधिमन्थघटीभेत्ता किकिंणीक्काणसूचितः॥36॥
हैयंगवीनरसिको मृषाश्रुश्चौर्यशंकितः।
जननीश्रमविज्ञाता दामबन्धनियंत्रितः॥37॥
दामाकल्पश्चलापांगो गाढोलूखलबन्धनः।
आकृष्टोलूखनोऽनन्तः कुबेरसुतशापिवत्‌॥। 38॥
नारदोक्तिपरामर्शी यमलार्जुनभंजनः।
धनदात्मजसंघुष्टो नन्दमोचितबन्धनः॥39॥
बालकोद्गीतनिरतो बाहुक्षेपोदितप्रियः।
आत्मज्ञो मित्रवशगो गोपीगीतगुणोदयः॥40॥
प्रस्थानशकटारूढो वृन्दावनकृतालयः।
गोवत्सपालनैकाग्रो नानाक्रीडापरिच्छदः॥41॥
क्षेपणीक्षेपणप्रीतो वेणुवाद्यविशारदः।
वृषवत्सानुकरणो वृषध्वानिविडम्बनः॥42॥
नियुद्धलीलासंहृष्टः कूजानुकृतकोकिलः।
उपात्तहं सगमनस्सर्वजन्तुरुतानुकृत्‌॥43॥
भृंगानुकारी दध्यन्नचोरो वत्सपुरस्सरः।
बली बकासुरग्राही बकतालुप्रदाहकः॥44॥
भीतगोपार्भकाहूतो बकचंचुविदारणः।
बकासुरारिर्गोपालो बालो बालाद्भुतावहः॥45॥
बलभद्रसमाश्लिष्टः कृतक्रीडानिलायनः।
क्रीडासेतुनिधानज्ञः प्लवंगोत्प्लवनोऽद्भुतः॥46॥
कन्दुकक्रीडनो लुप्तनन्दादिभववेदनः।
सुमनोऽलंकृतशिराः स्वादुस्निग्धान्नशिक्यभृत्‌॥47॥
गुंजाप्रालम्बनच्छन्नः पिंछैरलकवेषकृत्‌।
वन्याशनप्रियश्श्रृंगरवाकारितवत्सकः॥48॥
मनोज्ञपल्लवोत्तं स्वपुष्पस्वेच्छात्तषट्पदः।
मंजुशिंजितमंजीरचरणः करकंकणः॥49॥
अन्योन्यशासनः कीड़ापटुः परमकैतवः।
प्रतिध्वानप्रमुदितः शाखाचतुरचंक्रमः॥50॥
अघदानवसंहर्ता त्रजविघ्नविनाशनः।
व्रजसंजीवनश्श्रेयोनिधिर्दानवमुक्तिदः॥51॥

 January 1, 2020 

इस शिव तांडव स्त्रोत पा पाठ करने से या सुनने मात्र से लाभ मिलना शुरु हो जाता है. इस स्त्रोत का रोज सुबह ११ पाठ अवश्य करे, ये आपकी सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करता है.

शिव ताण्डव स्तोत्र

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।

मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।

धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनांं सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥