कुंडलिनी क्या है
कुंडलिनी जिसे हम सर्पेंट पॉवर भी कहते है. वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि मनुष्य का शरीर जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी तथा काश इन पांच तत्वों से निर्मित होता है। और इसमे कोई संदेह नही कि जो चीज जिस तत्व से बनी हो उसमे उस तत्व के सारे गुण समाहित होते हैं। इस लिए पंचतत्वों से निर्मित मनुष्यों के शरीर में जल की शीतलता, वायु का तीब्र वेग, अग्नि का तेज, पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण, ओर आकाश की विशालता समाहित होता है। इससे उसके अंदर प्रचंड शक्ति आ जाती है लेकिन वह सुप्त अवस्था मे रहती है, उसी सुप्त शक्ति को जगाने की क्रिया को कुडंलिनी जागरण कहते है.
कुंडलिनी यह एक सॉप जैसे आकार की ऐसी शक्ती होती है जो अपने पूंछ को मुंह मे दबाये साढे-तीन
फेरे मारे हुये मूलाधार मे सुप्त अवस्था मे स्थित होती है, इसे ध्यान योग, क्रिया
योग, तन्त्र या मंत्र के द्वारा जाग्रत किया जाता है. मुलाधार में सुप्त पड़ी हुई कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होकर सुषुम्ना
नाडी
में प्रवेश करती है तब यह शक्ति अपने स्पर्श से स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र,
अनाहत चक्र, तथा आज्ञा चक्र
से होते हुये सहस्त्रार चक्र
तक पहुचती है इसी क्रिया को पुर्ण कुण्डलिनी जागरण कहा जाता
है।
जब मूलाधार चैतन्य होना शुरु होता है, तब पॉचो तत्व मे से पृथ्वी तत्व की अधिकता बढ जाती है. इससे मनुष्य के अंदर जिज्ञासा बढनी शुरु हो जाती है, शरीर मे कंपन आना शुरु हो जाता है. मूलाधार मे विद्युत की तरंगे चलती हुयी महसूस होती है. तथा बुद्धि का विकास सही तरह से होता है. यह चक्र चैतन्य होने से योन समस्या, यानी गुदा भाग से लेकर पैर के अंगूठे तक के भाग का ब्लड सरकुलेशन तेज होने लगता जिससे उस भाग मे होने वाली समस्याये दूर होने लगती है.
जब स्वाधिष्ठान चक्र चैतन्य होना शुरु होता है, तब पॉचो तत्व मे से दो तत्व या पृथ्वी और जल तत्व की अधिकता बढ जाती है. इससे मनुष्य के अंदर जिज्ञासा के साथ उसे पाने व अनुभव करने का मन होने लगता है. बढनी शुरु हो जाती है, शरीर मे कंपन आना शुरु हो जाता है. मूलाधार मे विद्युत की तरंगे चलती हुयी महसूस होती है. तथा बुद्धि का विकास सही तरह से होता है. स्वाधिष्ठान चक्र का असर स्वभाव पर तेजी से होता है. जिससे हर तरह का व्यसन, बुरा स्वभाव, बुरी आदते, बुरे कर्म छोडने मे मदत मिलती है तथा सीखने की क्षमता बढती है.
जब मणीपुर चक्र चैतन्य होना शुरु होता है, तब पॉचो तत्व मे से तीन तत्व यानी पृथ्वी, जल तथा अग्नि तत्व की अधिकता बढ जाती है. इससे मनुष्य मे जोश, तेज व साहस बढ जाता है, तथ वहा हर तरह की परिस्थिति का सामना कर लेता है. शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है. बिमारी से बचाव होता है, यही नही हर प्रकार के नजर तथा तंत्र के प्रभाव से भी सुरक्षा मिलती है. अगर आप बिमार है, भले यह बिमारी शारीरिक या मानसिक हो, तब आप समझ लीजीये कि आपका मणीपुर चक्र खराब है.
जब अनाहत चक्र चैतन्य होना शुरु होता है, तब पॉचो तत्व मे से चार तत्व यानी पृथ्वी, जल,अग्नि तथा वायु तत्व की अधिकता बढ जाती है. इससे मनुष्य का कठोर स्वभाव भावुकता मे बदलना शुरु हो जाता है इसके अलावा भावना पर नियंत्रण भी बना रहता है. जब अनाहत चक्र जाग्रत होने लगता है तो ऐसे लोगो के स्वभाव का कोई फायदा नही उठा पाता. तथा ये दोस्ती तथा प्यार मे धोखा खाने से बच जाते है.
जब विशुद्ध चक्र चैतन्य होना शुरु होता है, तब पॉचो तत्व शरीर मे बराबर काम करना शुरु कर देते है. ब्यक्ति के सभी चक्र बैलेंस हो जाते है. इस चक्र के अभ्यास से ब्यक्ति की बुद्धी बहुत ही तेजी से काम करती है. इसकी वजह से वह अपने कार्य क्षेत्र, ब्यापार, व्यवसाय, कलॉ क्षेत्र, गायन, लेखन, चित्रकारी तथा अभिनय क्षेत्र मे तेजी से तरक्की करता है.
जब आज्ञा चक्र चैतन्य होना शुरु होता है, तब पूरे शरीर मे शारीरिक व मानसिक रूप से नियंत्रण बढना शुरु हो जाता है. जीवन मे आगे बढने के लिये मानसिक रूप से शक्ति मिलनी शुरु हो जाती है. इस चक्र के सहारे ब्यक्ति को अपने मन-पसंद क्षेत्र मे बढने मे मदत मिलती है.
जब सहस्त्रार चक्र चैतन्य होना शुरु होता है, तब पूरे शरीर मे शारीरिक , मानसिक व अध्यात्मिक रूप से नियंत्रण बढना शुरु हो जाता है. यह चक्र आपके विचारो को शक्ति प्रदान करता है. इससे ब्यक्ति फोटो थेरिपी, डिस्तेंस हीलिंग, विचार प्रक्षेपण सिद्धी मे सफलता मिलनी शुरु हो जाती है. जो रेकी, प्रानिक हीलिंग के विद्यार्थी है उन्हे इस चक्र पर अभ्यास अवश्य करना चाहिये.
अंत मे मै सिर्फ यही कहना चाहता हु कि आप इन चक्रो का अभ्यास जरूर करे. इससे डरने की जरूरत नही है. हॉ किसी के मार्ग-दर्शन मे यह अभ्यास जरूर करे. मैने अलग अलग चक्रो पर अभ्यास कैसे करे इसका लिंक नीचे डिस्क्रिप्शन मे दिया गया है वहा आप सीख सकते है. आशा है कि आप इन चक्रो पर अभ्यास कर लाभ प्राप्त करेगे तथा दूसरो को भी लाभ लेने मे मदत करेगे.