Divyayogashop Blog

 May 30, 2014 

तन्त्र व नजर से बचने के उपाय 



पीली राई (पीली सरसो), गुग्गल, लोबान व गाय का शुद्ध घी इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें ।
ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें । इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं ।

जावित्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम ११ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तन्त्र बाधा समाप्त होने लगेगा।

गोरोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में पूजा स्थान में रख दें । भगवान महादेव कृपा से धीरे-धीरे तन्त्र बाधा समाप्त होने लगेगा।

घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें। इससे भूत-प्रेत बाधा समाप्त होने लगती है।

कई बार ऐसा होता है कि शत्रु पक्ष आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय मे बाधा तथा घर मे अशांती उत्पन्न ह जाती है अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें । इससे तन्त्र बाधा पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा ।

यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के निकट बैठकर पपीते के बीज
अपने सामने रखें । अपना नाम, गौत्र उच्चारित करके भगवान् शिव से अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें ।

प्रतिस्पर्धी या शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो नींबू को ४ भागों में काटकर चौराहे पर खड़े होकर अपने इष्ट देव या कुलदेवता/कुलदेवी का ध्यान करते हुए चारों दिशाओं में एक-एक भाग को फेंक दें व घर आकर अपने हाथ-पांव धो लें ।

शुक्ल पक्ष के शनिवार को ४ गोमती चक्र अपने सिर से घुमाकर चारों दिशाओं में फेंक दें तो व्यक्ति पर किए गए तन्त्र का प्रभाव खत्म हो जाता है।

 May 29, 2014 

नजर उतारने का सिद्ध शाबर मंत्र



॥ ओम एक ठो सरसों सौला राइ मोरो पटवल को

रोजाई खाय खाय पड़े भार जे करे ते मरे उलट

विद्या ताहि पर परे शब्द साँचा पिंड काँचा

हनुमान का मंत्र सांचा फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ॥

यदि किसी के ऊपर तांत्रिक अभिचार कर दिया हो तो थोड़ी सी राई, सरसों तथा नमक मिला कर रख ले । इसके बाद इस मंत्र का जाप करते हुए सात बार रोगी का २१ बार उतारा करे । और फिर जलती हुई भट्टी में यह सामग्री झटके से झोंक दे तो सारी नजर समाप्त हो जाती है।

 May 29, 2014 

कालिका साधना



शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारंभ कर १८ दिन तक की जाने वाली इस साधना में काली के फोटो के सामने प्रतिरात्रि कालिका अष्टक, जिस के उच्चारण मात्र से दिव्य आनंद की अनुभूति होती है वही शत्रु से बचाव व आकर्षण शक्ति की बृद्धि भी होती है ।

कालिका अष्टक :-

विरंच्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीँ, समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवुः ।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 1

जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं, सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं ।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 2

इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली, मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 3

सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता, लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते ।
जपध्यान पुजासुधाधौतपंका, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 4

चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द, शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं ।
मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 5

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा, कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया ।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 6

क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं, मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत् ।
तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 7

यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य, स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ।
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 8

 May 28, 2014 

Type of Japa


Mantra marga or pujan via mantra primarily includes mantra japa or chanting of mantra. That is carried out in several strategies, type and levels. The repeated chanting of a mantra known as japa. There is 3 type wherein japa is completed:

Chanting the mantra loudly in a rhythm. That is known as Bahya jap (वाचिक जप). That is greatest fitted to suktas. In case of brief mantras which can be to be repeated many instances, it is seen as a preliminary/newbie’s stage of japa.

Not chanting aloud however it in a low voice or just recalling the mantra with lip movement. That is referred to as Upamsu japa (उपांशु जप).

Recalling the mantra inside, with out making any voice, lip motion or motion of tongue. That is known as Antarjapa (मानसिक जप). That is the state greatest recommended.

 May 19, 2014 

Vat Pournima 2014

वट पुर्णिमा २०१४


Vat Pournima (वट पुर्णिमा) is the pageant for Maharashtrian ladies, that is well known within the month of Jesht (Might-June). Ladies observe a fast and tie threads around a banyan tree and pray (prarthana) for a similar husband in each birth.

The celebration derived from the story of Savitri and Satyavan. It has been foretold that Satyavan will not dwell long. Resting on the lap of Savitri, Satyavan was ready for death underneath a banyan tree, when the day of death comes. The messenger of Yama, the God of death got here to take Satyavan. However Savitri refused to offer her beloved companion. Messenger after messenger tried to take Satyavan away, however in vain. Lastly, Yama himself appeared in front of Savitri and insisted to provide her husband.

Since, she was nonetheless adamant, he supplied her a boon. She requested for the properly being of her in-laws. He granted it to her. She then adopted him as he took Satyavan's physique away. He supplied her one other boon. She now requested for the effectively being of her parents. This boon, too, was granted. But she was relentless, and continued to follow him. As they approached Yama's abode, he provided her a ultimate boon. She asked for a son. He granted it. She then asked him how it could be attainable for her to beget sons without her husband. Yama was trapped and had to return her husband.

So, married girls pray (prarthana) to the banyan tree for the lengthy lifetime of their husbands and kids. Their fast is observed the entire evening until the subsequent morning.