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 January 4, 2024 

भगवान कुबेर चालीसा का पाठ किसी भी गुरुवार या शुक्रवार से नियमित ३/५/७/११ पाठ करे व जीवन मे धन सुख ऐश्वर्य पाये.

॥ दोहा॥ 

जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर ।

ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर 

॥ विघ्न हरण मंगल करण, सुनो शरणागत की टेर ।

भक्त हेतु वितरण करो, धन माया के ढ़ेर ॥ 

॥ चौपाई ॥ 

जय जय जय श्री कुबेर भण्डारी ।
धन माया के तुम अधिकारी ॥ तप तेज पुंज निर्भय भय हारी ।
पवन वेग सम सम तनु बलधारी ॥ स्वर्ग द्वार की करें पहरे दारी ।
सेवक इंद्र देव के आज्ञाकारी ॥ यक्ष यक्षणी की है सेना भारी ।
सेनापति बने युद्ध में धनुधारी ॥ महा योद्धा बन शस्त्र धारैं ।
युद्ध करैं शत्रु को मारैं ॥ सदा विजयी कभी ना हारैं ।
भगत जनों के संकट टारैं ॥ प्रपितामह हैं स्वयं विधाता ।
पुलिस्ता वंश के जन्म विख्याता ॥ विश्रवा पिता इडविडा जी माता ।
विभीषण भगत आपके भ्राता ॥ शिव चरणों में जब ध्यान लगाया ।
घोर तपस्या करी तन को सुखाया ॥ शिव वरदान मिले देवत्य पाया ।
अमृत पान करी अमर हुई काया ॥ धर्म ध्वजा सदा लिए हाथ में ।
देवी देवता सब फिरैं साथ में ।
पीताम्बर वस्त्र पहने गात में ॥
बल शक्ति पूरी यक्ष जात में ॥ स्वर्ण सिंहासन आप विराजैं ।
त्रिशूल गदा हाथ में साजैं ॥ शंख मृदंग नगारे बाजैं ।
गंधर्व राग मधुर स्वर गाजैं ॥ चौंसठ योगनी मंगल गावैं ।
ऋद्धि सिद्धि नित भोग लगावैं ॥ दास दासनी सिर छत्र फिरावैं ।
यक्ष यक्षणी मिल चंवर ढूलावैं ॥ ऋषियों में जैसे परशुराम बली हैं ।
देवन्ह में जैसे हनुमान बली हैं ॥ पुरुषोंमें जैसे भीम बली हैं ।
यक्षों में ऐसे ही कुबेर बली हैं ॥ भगतों में जैसे प्रहलाद बड़े हैं ।
पक्षियों में जैसे गरुड़ बड़े हैं ॥ नागों में जैसे शेष बड़े हैं ।
वैसे ही भगत कुबेर बड़े हैं ॥ कांधे धनुष हाथ में भाला ।
गले फूलों की पहनी माला ॥ स्वर्ण मुकुट अरु देह विशाला ।
दूर दूर तक होए उजाला ॥ कुबेर देव को जो मन में धारे ।
सदा विजय हो कभी न हारे ।।
बिगड़े काम बन जाएं सारे ।
अन्न धन के रहें भरे भण्डारे ॥ कुबेर गरीब को आप उभारैं ।
कुबेर कर्ज को शीघ्र उतारैं ॥ कुबेर भगत के संकट टारैं ।
कुबेर शत्रु को क्षण में मारैं ॥ शीघ्र धनी जो होना चाहे ।
क्युं नहीं यक्ष कुबेर मनाएं ॥ यह पाठ जो पढ़े पढ़ाएं ।
दिन दुगना व्यापार बढ़ाएं ॥ भूत प्रेत को कुबेर भगावैं ।
अड़े काम को कुबेर बनावैं ॥ रोग शोक को कुबेर नशावैं ।
कलंक कोढ़ को कुबेर हटावैं ॥ कुबेर चढ़े को और चढ़ादे ।
कुबेर गिरे को पुन: उठा दे ॥ कुबेर भाग्य को तुरंत जगा दे ।
कुबेर भूले को राह बता दे ॥ प्यासे की प्यास कुबेर बुझा दे ।
भूखे की भूख कुबेर मिटा दे ॥ रोगी का रोग कुबेर घटा दे ।
दुखिया का दुख कुबेर छुटा दे ॥ बांझ की गोद कुबेर भरा दे ।
कारोबार को कुबेर बढ़ा दे ॥ कारागार से कुबेर छुड़ा दे ।
चोर ठगों से कुबेर बचा दे ॥ कोर्ट केस में कुबेर जितावै ।
जो कुबेर को मन में ध्यावै ॥ चुनाव में जीत कुबेर करावैं ।
मंत्री पद पर कुबेर बिठावैं ॥ पाठ करे जो नित मन लाई ।
उसकी कला हो सदा सवाई ॥ जिसपे प्रसन्न कुबेर की माई ।
उसका जीवन चले सुखदाई ॥ जो कुबेर का पाठ करावै ।
उसका बेड़ा पार लगावै ॥ उजड़े घर को पुन: बसावै ।
शत्रु को भी मित्र बनावै ॥ सहस्त्र पुस्तक जो दान कराई ।
सब सुख भोद पदार्थ पाई ॥ प्राण त्याग कर स्वर्ग में जाई ।
मानस परिवार कुबेर कीर्ति गाई ॥ 

॥ दोहा ॥ 

शिव भक्तों में अग्रणी, श्री यक्षराज कुबेर ।
हृदय में ज्ञान प्रकाश भर, कर दो दूर अंधेर 

॥ कर दो दूर अंधेर अब, जरा करो ना देर ।
शरण पड़ा हूं आपकी, दया की दृष्टि फेर । 

॥ इति श्री कुबेर चालीसा ॥

 December 12, 2023 

शिव चालीसा पाठ

ब्यक्ति को अपने जीवन में पैदा हुई विघ्न बाधाओं को दूर करने के लिए श्री शिव चालीसा का नियमित पाठ करते  रहना चाहिये। श्री शिव चालीसा का पाठ भगवान शिव की असीम कृपा के साथ सुख शांती, धन ऐश्वर्य का आशिर्वाद भी प्राप्त होता हैं। शिव चालीसा का पाठ हमेशा सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद सोमवार, शिवरात्रि, प्रदोष काल, क्रुष्ण पक्ष की त्रयोदशी करना चाहिये.

॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 4

मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 8

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 12

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 16

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ 28

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ 32

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ 36

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 40

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥

 February 22, 2019 

श्री लक्ष्मी चालीसा

श्रीं लक्ष्मी चालीसा का पाठ हमे सुबह या शाम को करना चाहिये..अपने सामने ५ कमल बीज रखकर लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से सफलता जल्दी मिलती है.

॥ दोहा॥

मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥

॥ सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

॥ चौपाई ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥1॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥

॥ दोहा॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥