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 October 1, 2021 

दुर्गा चालीसा पाठ

नवरात्रि मे या किसी भी मंगलवार को दुर्गा चालीसा का पाठ करने से सुख समृद्धि के साथ सभी मनोकामना की पुर्ति होती है.

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥ 

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ 

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ 

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ 

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ 

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥ 

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

 लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥ 

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ 

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥ 

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ 

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ 

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ 

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥ 

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ 

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

शंकर आचारज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥ 

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ 

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ 

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ 

आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥ 

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥ 

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

 July 22, 2021 

शिव चालीसा पाठ

ये शिव चालीसा का पाठ जो नियमित रूप से करता उसके जीवन किसी भी प्रकार की कमी नही होती. पारिवारिक- विवाहित व आर्थिक जीवन सुखमय हो जाता है.

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥


॥दोहा॥


नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 February 21, 2019 

शनि चालीसा पाठ

आज इस कलियुग मे हर मनुष्य को शनि चालीसा का पाठ करना चाहिये ये पाठ दुर्भाग्य को सौभाग्य मे बदलता है. पाप कर्म को नष्ट करता है. असुरक्षा की भावना को दूर करता है. समस्याओ मे लडने की क्षमता को बढाता है. किसी भी शनिवार से ११ से २१ शनि चालीसा का पाठ अवश्य करे..

 

श्री शनि चालीसा
दोहा

जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।
चौपाई
जयति-जयति शनिदेव दयाला।
    करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
    माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।
    टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
    हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
    पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
    यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।
    भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
    रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
    तृणहंू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
    कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
    मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
    मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।
    बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
    चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
    हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
    तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
    तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
    आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।
    भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
    पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
    नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
    बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।
    युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
    लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।
    रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
    गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
    सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
    हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।
    सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
    मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
    चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
    स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
    धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।
    स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
    कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
    करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
    विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
    दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
    शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।
दोहा 
प्रतिमा श्री शनिदेव की, लोह धातु बनवाय।
प्रेम सहित पूजन करै, सकल कष्ट कटि जाय।।
चालीसा नित नेम यह, कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।नि ग्रह सुखद ह्नै, पावहिं नर सम्मान।।