Neel saraswati tara sadhana
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सिद्धि नील सरस्वती तारा साधना
नील सरस्वती तारा का विषेश रूप माना जाता है। ये माता प्रचंड ज्ञान की देवी मानी जाती है। हमारे जीवन में मानसिक शक्ति का कितना और क्या महत्त्व है यह हम स्वयं ही समझ सकते है क्यों की शायद एक तरह से यह पूरा जीवन ही मानसिक शक्ति के ऊपर टिका हुआ है। मनुष्य का जब जन्म होता है तो जन्म के साथ ही हमारे मस्तिष्क का जो विकास हुआ होता है उसके ऊपर ही हमारे स्मरण की शक्ति का आधार होता है, यही आधार कुछ सालो में स्थायी हो जाता है। और यही हमारी याद शक्ति बन जाती है जो की एक निश्चित सीमा में बंद हो जाती है। यह ईश्वर की देन है की किसी को कम तो किसी को ज्यादा मात्र में स्मरण शक्ति की प्राप्ति होती है। लेकिन अगर हम इसी शक्ति का पूर्ण विकास कर ले तो? निश्चय ही सिद्धो के मध्य देवी का नीलसरस्वती का स्वरुप कई विशेषताओ के कारण प्रसिद्ध है जिसमे से एक है स्मरण शक्ति। देवी तारा तथा उनके विशेष रूप आदि की साधना करने पर साधक की स्मरण शक्ति तीव्र होने लगती है तथा जैसे जैसे साधना तीव्र होती जाती है वैसे वैसे साधक की स्मरणशक्ति का विकास होता जाता है। वस्तुतः हमारी स्पर्शेन्द्रिय एवं ज्ञानेन्द्रियो के कारण ही हम देखा, सुना, या स्पर्श याद रखते है। इन इन्द्रियों की एक निश्चित क्षमता होती है जिसका अगर विकास कर लिया जाए तो साधक को कई प्रकार से जीवन में सुभीता की प्राप्ति होती है। और निश्चय ही एक अच्छी स्मरण शक्ति साधक को भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही पक्षों में पूर्ण सफलता प्रदान करने में बहुत ही बड़ा योगदान दे सकती है। फिर नील सरस्वती देवी से सबंधित यह साधना तो अति गुप्त है। पारद की चैतन्यता एवं देवी के एक विशेष एवं गुप्त तीव्र मन्त्र के सहयोग से साधक की दसो इन्द्रियों की चैतन्यता का पूर्ण विकास होने लगता है तथा साधक को मेधा शक्ति की प्राप्ति होती है।
यह नील सरस्वती तारा साधना साधक किसी भी शुभ दिन या मंगलवार या शुक्ल पक्ष की पंचमी से शुरू कर सकता है। समय रात्रीकालीन रहे।
साधक स्नानशुद्धि कर पीले वस्त्र धारण कर पीले रंग के आसन पर उत्तर की तरफ मुख कर बैठ जाए।
सर्व प्रथम गुरुपूजन गुरु मन्त्र का जाप कर साधक गणेश एवं भैरव पूजन करे।
अपने सामने साधक ‘पारद तारा गुटिका’ अथवा “नील मेधा यन्त्र स्थापित करे तथा देवी का
पूजन करे। पूजन के बाद साधक न्यास करे।
करन्यास
ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ॐ कूं तर्जनीभ्यां नमः
ॐ कैं मध्यमाभ्यां नमः
ॐ चां अनामिकाभ्यां नमः
ॐ चूं कनिष्टकाभ्यां नमः
ॐ ह्रीं स्त्रीं हूं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादिन्यास
ॐ ऐं हृदयाय नमः
ॐ कूं शिरसे स्वाहा
ॐ कैं शिखायै वषट्
ॐ चां कवचाय हूं
ॐ चूं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ ह्रीं स्त्रीं हूं अस्त्राय फट्
न्यास करने के बाद साधक देवी का ध्यान करे।
अटटाटटहास्निर्तामतिघोररूपाम् |
व्याघ्राम्बराम शशिधरां घननीलवर्नाम
कर्त्रीकपालकमलासिकराम त्रिनेत्रां
मालीढपादशवगां प्रणमामि ताराम
इसके बाद साधक भगवती तारा के विग्रह पर त्राटक करते हुए निम्न मन्त्र की ११ माला करे।
इस साधना के लिए साधक शक्ति माला, पीले हकीक माला या फिर स्फटिक माला का साधना करे।
ॐ ऐं कूं कैं चां चूं ह्रीं स्त्रीं हूं
(OM AING KOOM KAIM CHAAM CHOOM HREENG STREEM HOOM)
जिन साधको को मन्त्र विज्ञान की जानकारी है वह इस नील सरस्वती तारा मन्त्र की
तीव्रता एवं दिव्यता का आकलन कर सकते है, पूरी तरह से श्रद्ध रखकर अगर इस नील
सरस्वती तारा साधन को संपन्न किया जाय तो इसके प्रभाव को देखकर साधक आश्चर्य
रह जाता है।
इस प्रकार साधक यह दिव्य मन्त्र की ११ माला पूर्ण कर लेने पर देवी को वंदन करे।
साधक को यह क्रम ५ दिन तक करना है। ५ दिन इस प्रकार करने पर यह साधना पूर्ण होता
है।
See puja/sadhana rules and regulation
See- about Diksha
See- Mantra jaap rules
Descriptions | Neel tara saraswati sadhana samagri:- neel saraswati tara yantra, neel saraswati tara mala, neel saraswati tara parad gutika (vigrah) |
Puja/Sadhna | 5 Days |
Puja time muhurth | After 6pm |
Puja/Sadhana Muhurth | Tuesday |
Pujan Samagri list | Turmeric powder, Kumkum, Sandalwood powder/tablets/paste, Betel nuts, Yellow cloth for asan, Honey (small), Cotton wick (small packet) |