Ardhanarishwer sadhana
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अर्धनारीश्वेर यानी शिव-शक्ति
सृष्टि के निर्माण के लिये भगवान शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से अलग किया किया। शिव स्वयं पुरूष लिंग के सूचक बने तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की सूचक बनी. | पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एककारा होने के कारण भगवान शिव नर भी हैं और नारी भी, इसलिये वे अर्धनरनारीश्वर कहलाये.
एक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा ने पृथ्वी मे जीवन का निर्माण शुरु किया तब उन्होंने पाया कि सभी जीव एक समय के बाद अपने आप नष्ट हो जायेगी. तो इन्हे फिर नये सिरे से जीवन का निर्माण करना होगा. इसलिये वे अपनी समस्या के समाधान के लिये भगवान शिव से प्रार्थना की. तब ब्रम्हा की समस्या का समाधान के लिये भगवान शिव अर्धनारीश्वर रूप मे प्रकट हुये. जिसमे दाहिना भाद शिव का तथा बांया भाग शिवा यानी शक्ती का. भगवान शिव ने अपने इस अर्धनारीश्वेर स्वरूप से ब्रम्हा को प्रजननशील के सृजन की प्रेरणा देने के साथ पुरुष तथा स्त्री के समान महत्व का उपदेश दिया.
इसलिये अर्धनारीश्वेर साधना सांसारिक जीवन मे सफलता प्रदान करता है, वही पारिवारिक सुख प्रदान कर भौतिक रूप से व अध्यात्मिक रूप से तृप्ती प्रदान करता है. यह साधना जीवन को सही तरह से जीने की कला सिखाती है.
अर्ध नारीश्वेर साधना सामग्री
- सिद्ध अर्धनारीश्वेर यंत्र
- सिद्ध अर्धनारीश्वेर माला
- सिद्ध अर्धनारीश्वेर आसन
- सिद्ध रुद्राक्ष
- सिद्ध अर्धनारीश्वेर पारद गुटिका
- रक्षासूत्र
- सिद्ध चिरमी दाना
- तांत्रोक्त नारियल
- सिद्ध अर्धनारीश्वेर साधना मंत्र
- सिद्ध अर्धनारीश्वेर साधना विधी
अर्धनारीश्वेर साधना मुहुर्थ
- दिनः सोमवार, ग्रहण, अमावस्या, रवि पुष्य नक्षत्र, कृष्णपक्ष त्रयोदशी
- समयः रात ८ से ११-५५ तथा सुबह ३ बजे ७ बजे तक
- दिशाः पूर्व
- साधना अवधिः ११ दिन
- मन्त्र जपः ११/२१ माला रोज
- साधना स्थानः पूजाघर / कोई भी शांत कमरा या आम के पेड के नीचे.
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