Ras kalyalini vrat katha paath
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रसकल्याणी व्रत
रसकल्पाणिनी व्रत माघ शुक्ल पक्ष की तृतीया से आरम्भ होता है। रसकल्पाणिनी व्रत में दुर्गा पूजा की जाती है। दुर्गा प्रतिमा का मधु एवं चन्दन लेप से स्नान करना चाहिए। सर्वप्रथम प्रतिमा के दक्षिण पक्ष की पूजा उसके उपरान्त वाम पक्ष की पूजा की जाती है। उसके अंगों को विभिन्न नामों से युक्त कर पाँव से सिर तक की पूजा की जाती है। 12 विभिन्न नामों (जैसे– कुमुदा, माधवी, गौरी आदि) से माघ से आरम्भ कर बारह मासों में देवी की पूजा करनी चाहिए। माघ से कार्तिक तक प्रत्येक मास में कर्ता 12 वस्तुओं, यथा–लवण, गुण, तवराज (दुग्ध), मधु, पानक (मसालेदार रस), जीरक, दूध, दही, घी, मार्जिका (रसाला या शिखरिणी), धान्यक, शक्कर में से क्रम से किसी एक का त्याग करता है। प्रत्येक मास के अन्त में किसी पात्र में इस मास में त्यागी हुई वस्तु को भर कर दान करना चाहिए। वर्ष के अन्त में अँगूठे के बराबर गौरी की स्वर्ण प्रतिमा का दान करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से पापों, चिन्ता एवं रोगों से मुक्ति मिलती है।
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Katha-Path Days | One day Ras kalyalini vrat katha paath |
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