Vatsa dwadashi pujan
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वत्स द्वादशी पूजन
भाद्रपद महिने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को वत्स द्वादशी के रुप में मनाई जाती है। वत्स द्वादशी को बछवास, ओक दुआस या बलि दुआदशी के नाम से भी पुकारा जाता है। वत्स द्वादशी के रूप मे पुत्र सुख की कामना एवं संतान की लम्बी आयु की इच्छा समाहित होती है। वर्तमान में यह पर्व राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में ही देखने में आता है। समय की धूल ने इस पर्व के उल्लास को ढक दिया है। वत्सद्वादशी में परिवार की महिलाएं गाय व बछडे का पूजन करती है। इसके पश्चात माताएं गऊ व गाय के बच्चे की पूजा करने के बाद अपने बच्चों को प्रसाद के रुप में सूखा नारियल देती है। यह पर्व विशेष रुप से माता का अपने बच्चों कि सुख-शान्ति से जुडा हुआ है।
दिव्ययोगशॉप के विशिष्ठ पंडित विधि-विधान से पूजन संपन्न करते है। इसमे पृथम गणेश पूजन के साथ गौरी, शिव तथा कार्तिकेय की पूजा संपन्न की जाती है। तत्पश्चात वत्स द्वादशी पूजन के बाद हवन संपन्न किया जाता है। इस पूजा से परिवार के सुख सम्रुधी मिलती है। सेहत अच्छी होती है। धन प्राप्ती होती है।
वत्स द्वादशी पूजन सामग्रीः
वत्सद्वादशी आरती बुक
वत्सद्वादशी गुटिका
३ गोमती चक्र
सिद्ध वत्सद्वादशी फोटो
वत्सद्वादशी माला
तांत्रोक्त वत्सद्वादशी नारियल
वत्सद्वादशी पूजन की संपूर्ण विधि
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