Shravan dwadashi pujan
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श्रावण द्वादशी पूजन
श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन श्रीवल्लभ ने सब से प्रथम ब्रह्म-सम्बन्ध वैष्णव दामोदर दास हरसानी को दिया। तब से एकादशी का दिन सभी वैष्णवों में समर्पण दिवस के रूप में मनाया जाता है। श्री महाप्रभुजी को स्वयं श्रीजी ने ब्रह्म-संबंध देने की आज्ञा प्रदान की इस कारण सभी वैष्णवों को वल्लभ कुल के बालकों से ही ब्रह्म-संबंध लेना चाहिए। किसी अन्य साधु-संत आदि से नहीं लिया जाना चाहिए। वल्लभ कुल के बालक श्री महाप्रभु जी की ओर से ब्रह्म-संबंध देते हैं अतः पुष्टिमार्ग के गुरु श्री महाप्रभुजी हैं। जिस प्रकार हिन्दू धर्म के अन्य सम्प्रदायों में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) को गुरु का पूजन किया जाता है। उसी प्रकार पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में श्रावण शुक्ल द्वादशी के दिन गुरु का पूजन किया जाता है। सभी वैष्णव आज के दिन श्री ठाकुर जी को पवित्रा धराये पश्चात अपने ब्रह्म-संबंध देने वाले गुरु को पवित्रा, यथाशक्ति भेंट आदि धरें एवं दंडवत करें इसके पश्चात वैष्णवों को परस्पर प्रसादी मिश्री देकर ‘जय श्री कृष्ण’ कहें।
दिव्ययोगशॉप के विशिष्ठ पंडित विधि-विधान से श्रावण द्वादशी पूजन संपन्न करते है। इसमे पृथम गणेश पूजन के साथ गौरी, शिव तथा कार्तिकेय और भगवान विष्णु की पूजा संपन्न की जाती है। तत्पश्चात श्रावण द्वादशी पूजन के बाद हवन संपन्न किया जाता है। इस पूजा से आरोग्य स्वस्थ रहता है। सभी परेशानीयों मुक्ती मिलती है।
श्रावण द्वादशी पूजन सामग्रीः
श्रावण द्वादशी आरती बुक
श्रावण द्वादशी गुटिका
३ गोमती चक्र
सिद्ध श्रावण द्वादशी फोटो
श्रावण द्वादशी माला
तांत्रोक्त श्रावण द्वादशी नारियल
श्रावण द्वादशी पूजन की संपूर्ण विधि
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