Aranya dwadashi pujan
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अरण्य द्वादशी पूजन
भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को अरण्य द्वादशी व्रत किया जाता है। राजमार्तण्डमें बताया गया है कि नारियाँ हाथ में पंखे एवं तीर लेकर अरण्य (वन) में घूमती हैं। गदाधरपति में इसे स्कन्दषष्ठी भी कहा गया है। तिथिव्रत; विन्ध्यवासिनी एवं स्कन्द की पूजा करनी चाहिये। ऐसी मान्यता है कि अरण्यद्वादशी का व्रत करने वाले अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कमल-नाल, कन्दमूल एवं फलों का सेवन करते हैं।
दिव्ययोगशॉप के विशिष्ठ पंडित विधि-विधान से अरण्य द्वादशी पूजन संपन्न करते है। इसमे पृथम गणेश पूजन के साथ गौरी, शिव तथा कार्तिकेय की पूजा संपन्न की जाती है। तत्पश्चात अरण्य द्वादशी पूजन के बाद हवन संपन्न किया जाता है। इस पूजा से सेहत अच्छी रहती है। संतान हर बिमारी से दुर रह्ता है। स्वस्थ अच्छी रहती है।
अरण्य द्वादशी पूजन सामग्रीः
अरण्य द्वादशी आरती बुक
अरण्य द्वादशी गुटिका
३ गोमती चक्र
सिद्ध अरण्य द्वादशी फोटो
अरण्य द्वादशी माला
तांत्रोक्त अरण्य द्वादशी नारियल
अरण्य द्वादशी पूजन की संपूर्ण विधि
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