Shitala ashtami pujan
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शितला अष्टमी पूजन
चैत्र कृष्ण अष्टमी या चैत्रमासके प्रथम पक्षमें होलीके बाद पडनेवाले पहले सोमवार अथवा गुरुवारको किया जाता है। इस व्रत को करनेसे व्रतीके कुलमें दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रोंके समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियोंके चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं। इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्न होती है।
स्कन्द पुराण में शीतला देवी शीतला का वाहन गर्दभ बताया गया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व है। चेचक का रोगी व्यग्रतामें वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोडे फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सडने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत:कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है।
दिव्ययोगशॉप के विशिष्ठ पंडित विधि-विधान से शितला अष्टमी पूजन संपन्न करते है। इसमे पृथम गणेश पूजन के साथ गौरी, शिव तथा कार्तिकेय की पूजा संपन्न की जाती है। तत्पश्चात शितला अष्टमी पूजन के बाद हवन संपन्न किया जाता है। इस पूजा से ग्रहस्थ जीवन मे सफलता, नौकरी व्यवसाय मे सफलता मिलती है।
शितला अष्टमी पूजन सामग्रीः
शितला आरती बुक
शितला गुटिका
३ गोमती चक्र
सिद्ध शितला फोटो
शितला माला
तांत्रोक्त शितला नारियल
शितला पूजन की संपूर्ण विधि
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