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 December 17, 2022 

श्री सूक्त पाठ

लक्ष्मी मुद्रा के साथ श्रीसूक्त का पाठ नियमित रूप से करने वाले साधक के घर मे माता लक्ष्मी अपना निवास स्थान बनाती है

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥1॥

अर्थ – हे सर्वज्ञ अग्निदेव ! सुवर्ण के रंग वाली, सोने और चाँदी के हार पहनने वाली, चन्द्रमा के समान प्रसन्नकांति, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी को मेरे लिये आवाहन करो।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥

श्लोक अर्थ – अग्ने ! उन लक्ष्मीदेवी को, जिनका कभी विनाश नहीं होता तथा जिनके आगमन से मैं सोना, गौ, घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त करूँगा, मेरे लिये आवाहन करो।

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥

श्लोक अर्थ– जिन देवी के आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते हैं तथा जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आवाहन करता हूँ; लक्ष्मीदेवी मुझे प्राप्त हों।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां
तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥4॥

श्लोक अर्थ– जो साक्षात ब्रह्मरूपा, मंद-मंद मुसकराने वाली, सोने के आवरण से आवृत, दयार्द्र, तेजोमयी, पूर्णकामा, अपने भक्तों पर अनुग्रह करनेवाली, कमल के आसन पर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये
अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥

श्लोक अर्थ– मैं चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्तिवाली, सुन्दर द्युतिशालिनी, यश से दीप्तिमती, स्वर्गलोक में देवगणों के द्वारा पूजिता, उदारशीला, पद्महस्ता लक्ष्मीदेवी की शरण ग्रहण करता हूँ। मेरा दारिद्र्य दूर हो जाय। मैं आपको शरण्य के रूप में वरण करता हूँ।

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥

श्लोक अर्थ– हे सूर्य के समान प्रकाशस्वरूपे ! तुम्हारे ही तप से वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। उसके फल हमारे बाहरी और भीतरी दारिद्र्य को दूर करें।

उपैतु मां देवसखः
कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्
कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥

श्लोक अर्थ– देवि ! देवसखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापति की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हों अर्थात मुझे धन और यश की प्राप्ति हो। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ, मुझे कीर्ति और ऋद्धि प्रदान करें।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥8॥

श्लोक अर्थ– लक्ष्मी की ज्येष्ठ बहिन अलक्ष्मी (दरिद्रता की अधिष्ठात्री देवी) का, जो क्षुधा और पिपासा से मलिन और क्षीणकाय रहती हैं, मैं नाश चाहता हूँ। देवि ! मेरे घर से सब प्रकार के दारिद्र्य और अमंगल को दूर करो।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥9॥

श्लोक अर्थ– जो दुराधर्षा और नित्यपुष्टा हैं तथा गोबर से ( पशुओं से ) युक्त गन्धगुणवती हैं। पृथ्वी ही जिनका स्वरुप है, सब भूतों की स्वामिनी उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ अपने घर में आवाहन करता हूँ।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥

श्लोक अर्थ– मन की कामनाओं और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हो। गौ आदि पशु एवं विभिन्न प्रकार के अन्न भोग्य पदार्थों के रूप में तथा यश के रूप में श्रीदेवी हमारे यहाँ आगमन करें।

कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥

श्लोक अर्थ– लक्ष्मी के पुत्र कर्दम की हम संतान हैं। कर्दम ऋषि ! आप हमारे यहाँ उत्पन्न हों तथा पद्मों की माला धारण करनेवाली माता लक्ष्मीदेवी को हमारे कुल में स्थापित करें।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥12॥

श्लोक अर्थ– जल स्निग्ध पदार्थों की सृष्टि करे। लक्ष्मीपुत्र चिक्लीत ! आप भी मेरे घर में वास करें और माता लक्ष्मीदेवी का मेरे कुल में निवास करायें।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥13॥

श्लोक अर्थ– अग्ने ! आर्द्रस्वभावा, कमलहस्ता, पुष्टिरूपा, पीतवर्णा, पद्मों की माला धारण करनेवाली, चन्द्रमा के समान शुभ्र कान्ति से युक्त, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी का मेरे यहाँ आवाहन करें।

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥14॥

श्लोक अर्थ– अग्ने ! जो दुष्टों का निग्रह करनेवाली होने पर भी कोमल स्वभाव की हैं, जो मंगलदायिनी, अवलम्बन प्रदान करनेवाली यष्टिरूपा, सुन्दर वर्णवाली, सुवर्णमालाधारिणी, सूर्यस्वरूपा तथा हिरण्यमयी हैं, उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिये आवाहन करें।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥15॥

श्लोक अर्थ– अग्ने ! कभी नष्ट न होनेवाली उन लक्ष्मीदेवी का मेरे लिये आवाहन करें, जिनके आगमन से बहुत-सा धन, गौएँ, दासियाँ, अश्व और पुत्रादि को हम प्राप्त करें।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥

अर्थ – जिसे लक्ष्मी की कामना हो, वह प्रतिदिन पवित्र और संयमशील होकर अग्नि में घी की आहुतियाँ दे तथा इन पंद्रह ऋचाओं वाले श्री सूक्त का निरन्तर पाठ करे।

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सं नि धत्स्व ॥17॥

श्लोक अर्थ– कमल के समान मुखवाली ! कमलदल पर अपने चरणकमल रखनेवाली ! कमल में प्रीति रखनेवाली ! कमलदल के समान विशाल नेत्रोंवाली ! समग्र संसार के लिये प्रिय ! भगवान विष्णु के मन के अनुकूल आचरण करनेवाली ! आप अपने चरणकमल को मेरे हृदय में स्थापित करें।

पद्मानने पद्मऊरु पद्माक्षि पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥18॥

श्लोक अर्थ– कमल के समान मुखमण्डल वाली ! कमल के समान ऊरुप्रदेश वाली ! कमल के समान नेत्रोंवाली ! कमल से आविर्भूत होनेवाली ! पद्माक्षि ! आप उसी प्रकार मेरा पालन करें, जिससे मुझे सुख प्राप्त हो।

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥19॥

श्लोक अर्थ– अश्वदायिनी, गोदायिनी, धनदायिनी, महाधनस्वरूपिणी हे देवि ! मेरे पास सदा धन रहे, आप मुझे सभी अभिलषित वस्तुएँ प्रदान करें।

पुत्रपौत्रधनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥20॥

श्लोक अर्थ– आप प्राणियों की माता हैं। मेरे पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, हाथी, घोड़े, खच्चर तथा रथ को दीर्घ आयु से सम्पन्न करें।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना ॥21॥

श्लोक अर्थ– अग्नि, वायु, सूर्य, वसुगण, इन्द्र, बृहस्पति, वरुण तथा अश्विनी कुमार – ये सब वैभवस्वरुप हैं।

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥22॥

श्लोक अर्थ– हे गरुड ! आप सोमपान करें। वृत्रासुर के विनाशक इन्द्र सोमपान करें। वे गरुड तथा इन्द्र धनवान सोमपान करने की इच्छा वाले के सोम को मुझ सोमपान की अभिलाषा वाले को प्रदान करें।

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्त्या श्रीसूक्तजापिनाम् ॥23॥

श्लोक अर्थ– भक्तिपूर्वक श्री सूक्त का जप करनेवाले, पुण्यशाली लोगों को न क्रोध होता है, न ईर्ष्या होती है, न लोभ ग्रसित कर सकता है और न उनकी बुद्धि दूषित ही होती है।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्र सीद मह्यम् ॥24॥

श्लोक अर्थ– कमलवासिनी, हाथ में कमल धारण करनेवाली, अत्यन्त धवल वस्त्र, गन्धानुलेप तथा पुष्पहार से सुशोभित होनेवाली, भगवान विष्णु की प्रिया लावण्यमयी तथा त्रिलोकी को ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली हे भगवति ! मुझपर प्रसन्न होइये।

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥25॥

श्लोक अर्थ– भगवान विष्णु की भार्या, क्षमास्वरूपिणी, माधवी, माधवप्रिया, प्रियसखी, अच्युतवल्लभा, भूदेवी भगवती लक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ।

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥26॥

श्लोक अर्थ– हम विष्णु पत्नी महालक्ष्मी को जानते हैं तथा उनका ध्यान करते हैं। वे लक्ष्मीजी सन्मार्ग पर चलने के लिये हमें प्रेरणा प्रदान करें।

आनन्दः कर्दमः श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुताः।
ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मताः ॥27॥

श्लोक अर्थ– पूर्व कल्प में जो आनन्द, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत नामक विख्यात चार ऋषि हुए थे। उसी नाम से दूसरे कल्प में भी वे ही सब लक्ष्मी के पुत्र हुए। बाद में उन्हीं पुत्रों से महालक्ष्मी अति प्रकाशमान शरीर वाली हुईं, उन्हीं महालक्ष्मी से देवता भी अनुगृहीत हुए।

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः।
भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥28॥

श्लोक अर्थ– ऋण, रोग, दरिद्रता, पाप, क्षुधा, अपमृत्यु, भय, शोक तथा मानसिक ताप आदि – ये सभी मेरी बाधाएँ सदा के लिये नष्ट हो जाएँ।

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥29॥

श्लोक अर्थ– भगवती महालक्ष्मी मानव के लिये ओज, आयुष्य, आरोग्य, धन-धान्य, पशु, अनेक पुत्रों की प्राप्ति तथा सौ वर्ष के दीर्घ जीवन का विधान करें और मानव इनसे मण्डित होकर प्रतिष्ठा प्राप्त करे।

॥ ऋग्वेद वर्णित श्री सूक्त सम्पूर्ण ॥

 December 16, 2022 

श्री नारायण कवच

इस नारायण कवच का सिर्फ ५ पाठ नियमित रूप से चक्र मुद्रा के साथ करे तो जीवन भर दिन तक दरिद्रता, क्लेश, विवाद, ऊपरी बाधा, तंत्र बाधा व शत्रु बाधा बचाव होता रहता है.

यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान्।
क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम्।।१

भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम्।
यथाssततायिनः शत्रून् येन गुप्तोsजयन्मृधे।।२

राजा परिक्षित ने पूछाः भगवन् ! देवराज इंद्र ने जिससे सुरक्षित होकर शत्रुओं की चतुरङ्गिणी सेना को खेल-खेल में अनायास ही जीतकर त्रिलोकी की राज लक्ष्मी का उपभोग किया, आप उस नारायण कवच को सुनाइये और यह भी बतलाईये कि उन्होंने उससे सुरक्षित होकर रणभूमि में किस प्रकार आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की ।।१-२

।।श्रीशुक उवाच।।

वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते।
नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु।।३

श्रीशुकदेवजी ने कहाः परीक्षित् ! जब देवताओं ने विश्वरूप को पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्र के प्रश्न करने पर विश्वरूप ने नारायण कवच का उपदेश दिया तुम एकाग्रचित्त से उसका श्रवण करो ।।३

विश्वरूप उवाचधौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ् मुखः।
कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः।।४

नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते।
पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि।।५

मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत्।
ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा।।६

विश्वरूप ने कहा – देवराज इन्द्र ! भय का अवसर उपस्थित होने पर नारायण कवच धारण करके अपने शरीर की रक्षा कर लेनी चाहिए उसकी विधि यह है कि पहले हाँथ-पैर धोकर आचमन करे, फिर हाथ में कुश की पवित्री धारण करके उत्तर मुख करके बैठ जाय इसके बाद कवच धारण पर्यंत और कुछ न बोलने का निश्चय करके पवित्रता से “ॐ नमो नारायणाय” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इन मंत्रों के द्वारा हृदयादि अङ्गन्यास तथा अङ्गुष्ठादि करन्यास करे पहले “ॐ नमो नारायणाय” इस अष्टाक्षर मन्त्र के ॐ आदि आठ अक्षरों का क्रमशः पैरों, घुटनों, जाँघों, पेट, हृदय, वक्षःस्थल, मुख और सिर में न्यास करे अथवा पूर्वोक्त मन्त्र के यकार से लेकर ॐ कार तक आठ अक्षरों का सिर से आरम्भ कर उन्हीं आठ अङ्गों में विपरित क्रम से न्यास करे ।।४-६

करन्यासं ततः कुर्याद् द्वादशाक्षरविद्यया।
प्रणवादियकारन्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु।।७

तदनन्तर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस द्वादशाक्षर -मन्त्र के ॐ आदि बारह अक्षरों का दायीं तर्जनी से बाँयीं तर्जनी तक दोनों हाँथ की आठ अँगुलियों और दोनों अँगुठों की दो-दो गाठों में न्यास करे।।७

न्यसेद् हृदय ओङ्कारं विकारमनु मूर्धनि।
षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत्।।८

वेकारं नेत्रयोर्युञ्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु।
मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद् बुधः।।९

सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत्।
ॐ विष्णवे नम इति ।।१०

फिर “ॐ विष्णवे नमः” इस मन्त्र के पहले के पहले अक्षर ‘ॐ’ का हृदय में, ‘वि’ का ब्रह्मरन्ध्र , में ‘ष’ का भौहों के बीच में, ‘ण’ का चोटी में, ‘वे’ का दोनों नेत्रों और ‘न’ का शरीर की सब गाँठों में न्यास करे तदनन्तर ‘ॐ मः अस्त्राय फट्’ कहकर दिग्बन्ध करे इस प्रकर न्यास करने से इस विधि को जानने वाला पुरूष मन्त्रमय हो जाता है ।।८-१०

आत्मानं परमं ध्यायेद ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत ।।११

इसके बाद समग्र ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण इष्टदेव भगवान् का ध्यान करे और अपने को भी तद् रूप ही चिन्तन करे तत्पश्चात् विद्या, तेज, और तपः स्वरूप इस कवच का पाठ करे ।।११

ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान् दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः ।।१२

भगवान् श्रीहरि गरूड़जी के पीठ पर अपने चरणकमल रखे हुए हैं, अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कर रही हैं आठ हाँथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष, और पाश (फंदा) धारण किए हुए हैं वे ही ओंकार स्वरूप प्रभु सब प्रकार से सब ओर से मेरी रक्षा करें।।१२

जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात्।
स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ।।१३

मत्स्यमूर्ति भगवान् जल के भीतर जलजंतुओं से और वरूण के पाश से मेरी रक्षा करें माया से ब्रह्मचारी रूप धारण करने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्री त्रिविक्रमभगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें 13

दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ।।१४

जिनके घोर अट्टहास करने पर सब दिशाएँ गूँज उठी थीं और गर्भवती दैत्यपत्नियों के गर्भ गिर गये थे, वे दैत्ययुथपतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें ।।१४

रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान् ।।१५

अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में, परशुराम जी पर्वतों के शिखरों और लक्ष्मणजी के सहित भरत के बड़े भाई भगावन् रामचंद्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें ।।१५

मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ।।१६

भगवान् नारायण मारण – मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से, योगेश्वर भगवान् दत्तात्रेय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धन से मेरी रक्षा करें ।।१६

सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ।।१७

परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान् मार्ग में चलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान् कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें ।।१७

धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ।।१८

भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से, जितेन्द्र भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से, यज्ञ भगवान् लोकापवाद से, बलरामजी मनुष्यकृत कष्टों से और श्रीशेषजी क्रोधवशनामक सर्पों के गणों से मेरी रक्षा करें ।।१८

द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्।
कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः ।।१९

भगवान् श्रीकृष्णद्वेपायन व्यासजी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखण्डियों से और प्रमाद से मेरी रक्षा करें धर्म-रक्षा करने वाले महान अवतार धारण करने वाले भगवान् कल्कि पाप-बहुल कलिकाल के दोषों से मेरी रक्षा करें ।।१९

मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः ।।२०

प्रातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा लेकर, कुछ दिन चढ़ जाने पर भगवान् गोविन्द अपनी बांसुरी लेकर, दोपहर के पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर को भगवान् विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें ।।२०

देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोsवतु पद्मनाभः ।।२१

तीसरे पहर में भगवान् मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें सांयकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बाद हृषिकेश, अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्ध रात्रि के समय अकेले भगवान् पद्मनाभ मेरी रक्षा करें ।।२१

श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ।।२२

रात्रि के पिछले प्रहर में श्रीवत्सलाञ्छन श्रीहरि, उषाकाल में खड्गधारी भगवान् जनार्दन, सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण सन्ध्याओं में कालमूर्ति भगवान् विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें ।।२२

चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ।।२३

सुदर्शन ! आपका आकार चक्र ( रथ के पहिये ) की तरह है आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है। आप भगवान् की प्रेरणा से सब ओर घूमते रहते हैं जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूस को जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रुसेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिये, जला दीजिये ।।२३

गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ।।२४

कौमुद की गदा ! आपसे छूटने वाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है आप भगवान् अजित की प्रिया हैं और मैं उनका सेवक हूँ इसलिए आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये, कुचल डालिये तथा मेरे शत्रुओं को चूर – चूर कर दिजिये ।।२४

त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ।।२५

शङ्खश्रेष्ठ ! आप भगवान् श्रीकृष्ण के फूँकने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहाँ से तुरन्त भगा दीजिये ।।२५

त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि।
चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् २६

भगवान् की श्रेष्ठ तलवार ! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है आप भगवान् की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दिजिये। भगवान् की प्यारी ढाल ! आपमें सैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं आप पापदृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखे बन्द कर दिजिये और उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये ।।२६

यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा ।।२७

सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः ।।२८

सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे ) आदि केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्पादि रेंगने वाले जन्तु, दाढ़ोंवाले हिंसक पशु, भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियों से हमें जो-जो भय हो और जो हमारे मङ्गल के विरोधी हों – वे सभी भगावान् के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जायें ।।२७-२८

गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ।।२९

बृहद्, रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान् गरूड़ और विष्वक्सेनजी अपने नामोच्चारण के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचायें।।२९

सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः ।।३०

श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि , इन्द्रिय , मन और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से बचायें ।।३०

यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।
सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः ।।३१

जितना भी कार्य अथवा कारण रूप जगत है, वह वास्तव में भगवान् ही है इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जायें ।।३१

यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ।।३२

तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ।।३३

जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान् का स्वरूप समस्त विकल्पों से रहित है-भेदों से रहित हैं फिर भी वे अपनी माया शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं यह बात निश्चित रूप से सत्य है इस कारण सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान् श्रीहरि सदा -सर्वत्र सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें ।।३२-३३

विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः ।।३४

जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं, वे भगवान् नृसिंह दिशा -विदिशा में, नीचे -ऊपर, बाहर-भीतर – सब ओर से हमारी रक्षा करें ।।३४

मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारयणात्मकम्।
विजेष्यस्यञ्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान् ।।३५

देवराज इन्द्र ! मैने तुम्हें यह नारायण कवच सुना दिया है इस कवच से तुम अपने को सुरक्षित कर लो बस, फिर तुम अनायास ही सब दैत्य – यूथपतियों को जीत कर लोगे ।।३५

एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा।
पदा वा संस्पृशेत् सद्यः साध्वसात् स विमुच्यते ।।३६

इस नारायण कवच को धारण करने वाला पुरूष जिसको भी अपने नेत्रों से देख लेता है अथवा पैर से छू देता है, तत्काल समस्त भयों से से मुक्त हो जाता है 36

न कुतश्चित भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत्।
राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् ।।३७

जो इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेता है, उसे राजा, डाकू, प्रेत, पिशाच आदि और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का भय नहीं होता ।।३७

इमां विद्यां पुरा कश्चित् कौशिको धारयन् द्विजः।
योगधारणया स्वाङ्गं जहौ स मरूधन्वनि ।।३८

देवराज! प्राचीनकाल की बात है, एक कौशिक गोत्री ब्राह्मण ने इस विद्या को धारण करके योगधारणा से अपना शरीर मरूभूमि में त्याग दिया ।।३८

तस्योपरि विमानेन गन्धर्वपतिरेकदा।
ययौ चित्ररथः स्त्रीर्भिवृतो यत्र द्विजक्षयः ।।३९

जहाँ उस ब्राह्मण का शरीर पड़ा था, उसके उपर से एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथ विमान पर बैठ कर निकले ।।३९

गगनान्न्यपतत् सद्यः सविमानो ह्यवाक् शिराः।
स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः।
प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् ।।४०

वहाँ आते ही वे नीचे की ओर सिर किये विमान सहित आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े इस घटना से उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब उन्हें बालखिल्य मुनियों ने बतलाया कि यह नारायण कवच धारण करने का प्रभाव है, तब उन्होंने उस ब्राह्मण देव की हड्डियों को ले जाकर पूर्ववाहिनी सरस्वती नदी में प्रवाहित कर दिया और फिर स्नान करके वे अपने लोक को चले गये ।।४०

।।श्रीशुक उवाच।।

य इदं शृणुयात् काले यो धारयति चादृतः।
तं नमस्यन्ति भूतानि मुच्यते सर्वतो भयात् ।।४१

श्रीशुकदेवजी कहते हैं – परिक्षित् जो पुरूष इस नारायण कवच को समय पर सुनता है और जो आदर पूर्वक इसे धारण करता है, उसके सामने सभी प्राणी आदर से झुक जाते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है ।।४१

एतां विद्यामधिगतो विश्वरूपाच्छतक्रतुः।
त्रैलोक्यलक्ष्मीं बुभुजे विनिर्जित्यऽमृधेसुरान् ।।४२

परीक्षित् ! शतक्रतु इन्द्र ने आचार्य विश्वरूपजी से यह वैष्णवी विद्या प्राप्त करके रणभूमि में असुरों को जीत लिया और वे त्रैलोक्यलक्ष्मी का उपभोग करने लगे 42

।।इति श्रीनारायणकवचं सम्पूर्णम्।।
( श्रीमद्भागवत स्कन्ध 6 , अ। 8 )

 November 28, 2022 

श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र

इस गणेश पंचरत्न स्त्रोत का पाठ गणेश मुद्रा लगाकर करे तो मन की सभी मुराद पूरी होनी शुरु हो जाती है.


मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं
नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥


नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥


समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं
दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥


अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥


नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं
अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥


महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

 May 25, 2022 

लक्ष्मी नृसिंग कर्ज विमोचन स्त्रोत

इस लक्ष्मी नृसिंग कर्ज विमोचन स्त्रोत का नियमित पाठ से कर्ज लेने की नौबत ही नही आती... अगर कर्ज ले लिया है तो चुकाने की क्षमता बढ जाता है.

देवकार्य सिध्यर्थं सभस्तंभं समुद् भवम ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

लक्ष्म्यालिन्गितं वामांगं, भक्ताम्ना वरदायकं ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

अन्त्रांलादरं शंखं, गदाचक्रयुध धरम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

स्मरणात् सर्व पापघ्नं वरदं मनोवाञ्छितं ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

सिहंनादेनाहतं, दारिद्र्यं बंद मोचनं ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

प्रल्हाद वरदं श्रीशं, धनः कोषः परिपुर्तये ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

क्रूरग्रह पीडा नाशं, कुरुते मंगलं शुभम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

वेदवेदांगं यद्न्येशं, रुद्र ब्रम्हादि वंदितम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

व्याधी दुखं परिहारं, समूल शत्रु निखं दनम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

विद्या विजय दायकं, पुत्र पोत्रादि वर्धनम् ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

भुक्ति मुक्ति प्रदायकं, सर्व सिद्धिकर नृणां ।
श्री नृसिंहं महावीरं नमामि ऋणमुक्तये ॥

उर्ग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तम् सर्वतोमुखं ।
नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्य मृत्युं नमाम्यहम॥

य: पठेत् इंद् नित्यं संकट मुक्तये ।
अरुणि विजयी नित्यं, धनं शीघ्रं माप्नुयात् ॥
॥ श्री शंकराचार्य विरचित सर्वसिद्धिकर ऋणमोचन स्तोत्र संपूर्णं ॥

 April 5, 2022 

सिद्ध कुंजिका स्त्रोतम्

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना मनुष्य के लिये परम कल्याणकारी माना गया है। इसका नियमित पाठ करने वाले के जीवन मे राग, द्वेश, विघ्न कभी हावी नही हो पाते. मनोकामना जल्दी ही पूरी हो जाती है. 

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।

अथ मंत्र :-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''

।।इति मंत्र:।।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।

 January 20, 2022 

काली चालीसा पाठ

इस काली चालीसा का पाठ किसी भी मंगलवार से प्रारंभ करना चाहिये और मनोकामना पूरी नही होती तब तक पाठ करना चाहिये. मनोकामना पूरी होने के बाद किसी फल या भोजन का दान करना चाहिये.


जय काली कंकाल मालिनी,
जय मंगला महाकपालिनी ॥

रक्तबीज वधकारिणी माता,
सदा भक्तन की सुखदाता ॥

शिरो मालिका भूषित अंगे,
जय काली जय मद्य मतंगे ॥

हर हृदयारविन्द सुविलासिनी,
जय जगदम्बा सकल दुःख नाशिनी ॥ ४ ॥

ह्रीं काली श्रीं महाकाराली,
क्रीं कल्याणी दक्षिणाकाली ॥

जय कलावती जय विद्यावति,
जय तारासुन्दरी महामति ॥

देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट,
होहु भक्त के आगे परगट ॥

जय ॐ कारे जय हुंकारे,
महाशक्ति जय अपरम्पारे ॥ ८ ॥

कमला कलियुग दर्प विनाशिनी,
सदा भक्तजन की भयनाशिनी ॥

अब जगदम्ब न देर लगावहु,
दुख दरिद्रता मोर हटावहु ॥

जयति कराल कालिका माता,
कालानल समान घुतिगाता ॥

जयशंकरी सुरेशि सनातनि,
कोटि सिद्धि कवि मातु पुरातनी ॥ १२ ॥

कपर्दिनी कलि कल्प विमोचनि,
जय विकसित नव नलिन विलोचनी ॥

आनन्दा करणी आनन्द निधाना,
देहुमातु मोहि निर्मल ज्ञाना ॥

करूणामृत सागरा कृपामयी,
होहु दुष्ट जन पर अब निर्दयी ॥

सकल जीव तोहि परम पियारा,
सकल विश्व तोरे आधारा ॥ १६ ॥

प्रलय काल में नर्तन कारिणि,
जग जननी सब जग की पालिनी ॥

महोदरी माहेश्वरी माया,
हिमगिरि सुता विश्व की छाया ॥

स्वछन्द रद मारद धुनि माही,
गर्जत तुम्ही और कोउ नाहि ॥

स्फुरति मणिगणाकार प्रताने,
तारागण तू व्योम विताने ॥ २० ॥

श्रीधारे सन्तन हितकारिणी,
अग्निपाणि अति दुष्ट विदारिणि ॥

धूम्र विलोचनि प्राण विमोचिनी,
शुम्भ निशुम्भ मथनि वर लोचनि ॥

सहस भुजी सरोरूह मालिनी,
चामुण्डे मरघट की वासिनी ॥

खप्पर मध्य सुशोणित साजी,
मारेहु माँ महिषासुर पाजी ॥ २४ ॥

अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका,
सब एके तुम आदि कालिका ॥

अजा एकरूपा बहुरूपा,
अकथ चरित्रा शक्ति अनूपा ॥

कलकत्ता के दक्षिण द्वारे,
मूरति तोरि महेशि अपारे ॥

कादम्बरी पानरत श्यामा,
जय माँतगी काम के धामा ॥ २८ ॥

कमलासन वासिनी कमलायनि,
जय श्यामा जय जय श्यामायनि ॥

मातंगी जय जयति प्रकृति हे,
जयति भक्ति उर कुमति सुमति हे ॥

कोटि ब्रह्म शिव विष्णु कामदा,
जयति अहिंसा धर्म जन्मदा ॥

जलथल नभ मण्डल में व्यापिनी,
सौदामिनी मध्य आलापिनि ॥ ३२ ॥

झननन तच्छु मरिरिन नादिनी,
जय सरस्वती वीणा वादिनी ॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे,
कलित कण्ठ शोभित नरमुण्डा ॥

जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता,
कामाख्या और काली माता ॥

हिंगलाज विन्ध्याचल वासिनी,
अटठहासिनि अरु अघन नाशिनी ॥ ३६ ॥

कितनी स्तुति करूँ अखण्डे,
तू ब्रह्माण्डे शक्तिजित चण्डे ॥

करहु कृपा सब पे जगदम्बा,
रहहिं निशंक तोर अवलम्बा ॥

चतुर्भुजी काली तुम श्यामा,
रूप तुम्हार महा अभिरामा ॥

खड्ग और खप्पर कर सोहत,
सुर नर मुनि सबको मन मोहत ॥ ४० ॥

तुम्हारी कृपा पावे जो कोई,
रोग शोक नहिं ताकहँ होई ॥

जो यह पाठ करै चालीसा,
तापर कृपा करहिं गौरीशा ॥

॥ दोहा ॥
जय कपालिनी जय शिवा,
जय जय जय जगदम्ब,
सदा भक्तजन केरि दुःख हरहु,
मातु अविलम्ब ॥


 October 26, 2021 

इंद्र रचित लक्ष्मी स्त्रोत

किसी भी शुक्रवार या दीपावली मे इस इंद्र रचित लक्ष्मी स्त्रोत का ५ पाठ कर लिया जाय तो व्यक्ति का महा धनवान बनने का रास्ता प्रशस्त होने लगता है

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।1।। 

इन्द्र बोले, श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महादेवी। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है। 

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।2।।

 गरुड़ पर आरुढ़ हो असुरो को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है। 

सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।3।। 

सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों का नाश करने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है। 

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।4।। 

सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें सदा प्रणाम है। 

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।5।। 

हे देवी! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ति! हे महेश्वरी! हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।

 स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।6।।

 हे देवी! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवी महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है। 

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।7।। 

हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवी! हे परमेश्वरी! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।

 श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।8।। 

हे देवी तुम श्वेत एवं लाल वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है। 

स्तोत्र पाठ का फल महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।9।। 

जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इसका सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राजवैभव को प्राप्त कर सकता है। 

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।10।। 

जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है। 

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।11।। 

जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।

 October 1, 2021 

दुर्गा चालीसा पाठ

नवरात्रि मे या किसी भी मंगलवार को दुर्गा चालीसा का पाठ करने से सुख समृद्धि के साथ सभी मनोकामना की पुर्ति होती है.

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥ 

निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ 

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ 

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ 

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ 

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥ 

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

 लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥ 

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥ 

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥ 

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ 

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ 

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ 

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥ 

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ 

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

शंकर आचारज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥ 

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ 

शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ 

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥ 

आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥ 

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥ 

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

 September 29, 2021 

पितृ चालिसा (पितर चालिसा)

श्राद्ध मे या किसी भी अमावस्या को ये पितृ चालिसा का ३ या ५ पाठ करना चाहिये इससे आर्थिक व वंश परंपरा मे आने वाली अडचने नष्ट होने लगती है.

।। दोहा ।।

हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद।
चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ।
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी।
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी।।

।। चौपाई ।।

पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।
मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे।
जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं।

चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का।
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।
झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।

प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी।
तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।

छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी।
भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे।
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।

सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।
शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते।
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई।

हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।
गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।
बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।

जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है।
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।
निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।

तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई।
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।
नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।

सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।
तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।

सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई।
मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।
अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।

।। दोहा ।।

पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम।
झुंझनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।।
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम।
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।

।। इति पितर चालीसा समाप्त ।।

 September 24, 2021 

पितृस्तोत्र पाठ

इस पितृस्तोत्र का पाठ किसी भी पितृ पक्ष मे, अमावस्या या ग्रहन मे किया जा सकता है यह पितृस्तोत्र मनुष्य की सभी मनोकामना की पुर्ति कर पूरे परिवार की आर्थिक, पारिवारिक व भौतिक समस्या को नष्ट करता है.

।। अथ पितृस्तोत्र ।।

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय: ।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस: ।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।


हिन्दी अर्थ– 

जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ ।

जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ ।

नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ 

जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ ।

चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है ।

जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ । उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हों मेरे पूरे परिवार को सुख-समृद्धि व वंश बढोतरी का आशिर्वाद दे.

।। इति पितृ स्त्रोत समाप्त ।।