Divyayogashop Blog

 January 27, 2014 

तांत्रिक प्रयोग से छुटकारा पाने का साबर मंत्र

tantrik prayog


तेली की खोपड़ी चाट-चाट के मैदान,
ऊपर चड़ा मुहम्मद सुल्तान,
मुहम्मद सुल्तान किसका बेटा,
फातिमा का बेटा, सूअर खे हलाल करे,
पै दे पाँव वज्र की कील काट,
तो माता का दूध को हराम करे ॥

किसी भी दिन सुबह के समय या पुर्णिमा की रात्री को पूरी रात भर इस मंत्र का जाप करते रहने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है । तत्पश्चात किसी भी मंत्र की काट करने के लिए इस मंत्र का प्रगोय करने से पूर्व मे किसी के भी द्वारा किए गए तांत्रिक-मांत्रिक प्रयोग से छुटकारा मिल जाता है।

 January 27, 2014 

मुसीबत दूर करने का साबर मंत्र

spell troubles remoing mantraइलाहि बहुर्मत सईद मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत शेख़ मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत गौस मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत ख्वाजा मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत गरीब मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत मसकीन मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत लेख मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत कुतुब मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत मखदूम मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत दरवेश मही अलदीन ।
इलाहि बहुर्मत वाली मही अलदीन ।


अचानक आई मुसीबतों को दूर करने के लिए यह एक सर्वश्रेष्ठ मंत्र है । इस मंत्र के द्वारा समस्त परेशानियों से सरलता पूर्वक छुटकारा पाया जा सकता है । किसी भी पुर्णिमा से नियमित इस मंत्र का जाप आरंभ कर दे और जब तक परेशानिया दूर न हो जाए तब तक प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का अधिकाधिक जाप करते रहे । निश्चय ही साधक को फायदा होगा । यह एक अनुभूत मंत्र है ।

 January 26, 2014 

धन-संपद प्राप्त करने के लिये श्री सूक्त


इस श्री सूक्त का पाठ रोज ११ बार सुबह के समय पाठ करे। इस पाठ से घर मे सुख-समृद्धि बनी रहती है।

ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।

तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।

 January 20, 2014 

ईच्छा पूर्णकर्ता गणेश साधना

माता पार्वती पुत्र भगवान् श्री गणेश सर्व विघ्न नाशक है। इनका अन्य नाम विनायक, गजानन, लम्बोदर, एकदंत, गणपती भी है। इनके स्मरण मात्र से सभी इच्छाए पूर्ण हो जाती है,वह इच्छा चाहे लौकीक हो या पारलौकिक। भगवान् गणेश जी की पूजा के बिना किसी भी देवता की पूजा सफल नहीं होत। गणेश जी के बारह नामो के स्मरण से धन धान्य की प्राप्ति होती है और कर्ज से मुक्ति मिलती है यदि गणेश चतुर्थी पर भगवान् गणेश की एकदंत वाली मूर्ति का पूजन किया जाए और ऐसा १० दिन करने के पश्चात ११वे दिन उस मूर्ति को गहनों के साथ सजाकर जल में प्रवाहित कर दिया जाए तो सभी कार्यों में सफलता मिलती है।

नीम की जड़ के गणेश जी बनाकर कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन यदि गणेश जी का पूजन कर विशेष मंत्रो के साथ हवन किया जाए, ऐसा अमावस्या तक किया जाए तो भगवान् गणेश जी की सिद्धि प्राप्त होती है।

यदि सफेद आक (श्वेतार्क) की जड़ के गणपति बनाकर उनकी पूजा की जाए और एक विशेष अनुष्ठान किया जाए तो कर्ज से मुक्ति मिलती है। इसी प्रकार यदि कुम्हार के घर की मिटटी से गणेश जी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाए और ७ दिन तक लगातार एक विशेष मन्त्र का जाप किया जाए तो व्यक्ति रिद्धि सिद्धि का स्वामी बनता है।

वस्तुतः भगवान् गणेश के अनेको प्रयोग है,जिसमे ना यन्त्र की आवश्यकता हो और ना ही किसी विशेष प्रकार की माला की। हम नहीं चाहते कि आप ऐसा सोचे कि हम जानबूझ कर आपको कठिन साधनाएँ दे रहे है इसलिए जो साधना हम दे रहे है यह बहुत ही सरल है और किसी विशेष विधि विधान की भी आवश्यकता नहीं।

गणेश शाबर मन्त्र

ॐ गणपति वशे मशान, जो फल मांगु देवे आन,
पांच लड्डू सेर सिन्धुर, भर आना आता आनंद,
भरपूर नद्वेतीमान, फूले फलत जागे मर लियावे,
एक फूले हाथी जो तू मोहन रहे,
सूबा बात साथ करो जाऊं तो मुट्ठी करो ।।

गणेश शाबर साधना विधि

इस मंत्र को किसी भी बुधवार से शुरू करे । एक देसी घी की ज्योत जलाये और गुरु पूजन करे। अपने गुरु से आज्ञा लेकर भगवान श्री गणेश जी का पूजन करे और दो लड्डू का भोग लगाये। फिर पांच माला इस मंत्र की जपे। ऐसा इक्कीस दिन करे, आपके कार्यो में आने वाले विघ्नों का नाश होगा।

 January 16, 2014 

नागेश्वर तंत्र लक्ष्मी साधना

nagkeshar tantraनागकेशर को ही प्रचिलित भाषा मे नागेश्वर’ कहा जाता है। यह काली मिर्च के दाने के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पान की दूकान मे आसानी से प्राप्त हो जाती है। यह शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है।

किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर घर ले आये। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए । गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ । आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान म, नदी, तालाब मे छोड़ दें।

किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।

२१ सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना  देती है।

पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें । इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी,भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।

कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें :-

किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें । यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दं । अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें ।

जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए । ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी । आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेग । इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा -अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।

 January 10, 2014 

हर प्रकार के तंत्र बाधा निवारण मंत्र- सियार सिंघी

बाए हाथ मे सियार सिंघी रखकर  दाहिने हाथ से काली हकीक की माला से ये मंत्र का जाप करे ।

मंत्र :- ॐ भ्रम भ्रम क्रीम हलीं फट ॥

चलते फिरते साधक इस मंत्र का जाप कर सकता है । या तो सियार सिंघी हो या फिर काली हकीक माला हो । दोनों हो तो सबसे अच्छा है । सिर्फ सियार सिंघी हो तो उसे हाथ मे पकड़ के मानसिक मंत्र जाप करे । अगर सिर्फ काली हकीक की माला हो तो उससे मंत्र का जाप करे ।

 December 26, 2013 

घर में क्लेश मुक्ति शांती के लिए

भगवान दत्तात्रेय का चित्र स्थापित करे। दत्तात्रेय चित्र के समुख एक पानीवाला नारियल मिट्टी के घड़े के ऊपर रखकर चारो तरफ पत्ते लगाकर कलश स्थापित करे और चार मुख वाला दीपक उसके सामने प्रज्वलित करे। स्वयं पीले वस्त्र धारण करे और दत्तात्रेय भगवान को भी पीले वस्त्र अर्पित करे। पीले रंग का आसन का प्रयोग करे और निचे दिए गए मंत्र की चन्दन के माला पर 7 माला जप करे। जप पूरा होनेके बाद कन्या को भोजन या मीठा प्रसाद, सिंगार का सामान, दक्षिणा अर्पित करके मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते है।

मंत्र :- ॥ ॐ उं झं ‍‌द्रां विपुलमुर्तेये नमः स्वाहा ॥

Mantra:- OM UM JHAM DRAAM VIPULMURTIYE NAMAHA SVAAHAA

 November 29, 2013 

Bhagawan Dattatreya

shree datta jayantiGuru Datta is also accepted as Dattatreya. Bhagwan Dattateraya (दत्तात्रेय) is combinition of divine trinity,Brahma, Vishnu,Mahesh. It is alleged some time ago divine consorts of the trinity envied splendor and pious conduct of Maa Anusuya. She was wife of famous sage , Atri.

They asked their husbands to assess purity of this divine woman. The divine trinity assumed type of sages and asked Anusuya for a favour.
They asked her to give them alms in naked form. Anusuya replied to them that for that they've to become babies,because a mother is never ashamed of any thing before her kid. And shortly the divine trinity turned a child. The pious couple raised the infant while their own.

The path of Dattatreya (दत्तात्रेय) embraces all religious paths and is the source of all other traditions. He who treads the path of Reality, regardless of what religion he belongs to, is treading the path of Bhagwan dattatreya (दत्तात्रेय). Seeing as an incarnation of God, Datta came down to spread the universality of true religion. Anyone can be his follower, regardless of cast, creed, status, be they student, householder, recluse or renunciate. No matter what sect or religion the true seeker follows, eventually he comes under the guidance of Lord Dattatreya, the Eternal Spiritual Guide of all mankind.

Datta's presence is not limited to anyone country or sphere, given that He is the Guru of all Gurus, the all-seeing, all-powerful, ever-present link between God and Man. However, special places of worship (Datta Peethas) have grown up around sacred areas, where His presence is generally strongly felt by the sincere seeker of Datta. These places include Suchindram, Senthamangalam, Mount Girnar, Nagalapuram in Andhra, Prayag, Datta Guha in the Himalayas, Gulbarga -Ganagapura, Narasimhavadi in Maharastra, Quthambara near Poona, Avadumbara, Somapuram, Chandradronagiri and Datta Peetha at Sri Ganapathi Sachchidananda Ashrama, Mysore.

One notable aspect of these Datta Peethas is their indefinable but inseparable relationship with worship of God seeing as Mother, the Supreme Energy -Shakti. (Hence, Sri Swamiji's fierce aspect while Mother Chamunda.) Parasurama (eighth incarnation of Lord Vishnu), approached Lord Dattatreya and was initiated into the intricacies of tips to worship the Mother (Shreevidya Upaasana), before undertaking intense penance to have the grace of the Divine Mother.

The Saandilya Upanishad declares very clearly that Lord Dattatreya (दत्तात्रेय) is the Supreme Reality and is the cause of everything that is certainly created. It states, "The Supreme Brahman performed penance which was of the nature of knowledge (jnyana), and desiring to become numerous, assumed the form of Dattatreya. From that form came out the three letters A, U, M; the three mystical names Bhuh, Bhuvah and Svah; the three-lined Gayatri; the three Vedas Rig, Yajur and Sama; the three Gods Brahma, Vishnu and Maheswara; the three castes Brahmana, Kshatriya and Vysya; and the three fires Gaarhapatya, Ashavaneeya and Dakshina."

"The lord is endowed with all wealth. He is all pervading and resides in the hearts of all beings. He is the great Maayavi, sporting with His own Maaya. He is Brahma. His Vishnu, He is Rudra. He is Indra and He is also all the gods of heaven and all other beings. He is East, He is West, He is North, He is South, He is below and He is above. He is everything. This is the glory of the form of Dattatreya."

Lord Dattatreya (दत्तात्रेय) came as the Supreme Philosopher (Avadhoota) so that the true meaning and purpose of Sacrifice (Tyaaga) can be revealed to mankind. Atri, His father, symbolizes penance (tapas) since described in the scriptures, and Anasooya represents freedom from jealousy. When penance and non-jealous nature unite in a single person, the highest truth emerges seeing as Lord Dattatreya. Seeing as ultimate self-sacrifice, the Supreme God gave Himself since Datta to Atri and Anasooya. Hence, "Datta" means not only "that which is given", but also seeing as the ideal of "giving" without desire for reward, i.e. selfless giving. The whole life of Dattatreya shows us that this "giving" selflessly is the true renunciation/sacrifice. The significance of this sacrifice is stated in the Dattatreya Upanishad where the Lord says, "Not by action, not by progeny, nor even by self, but by renunciation (tyaaga) alone is immortality attained. "Real renunciation is the giving up of "I" and mine, not the mere abandoning of duties. Living a selfless life require giving up one's ego. That is certainly what Lord Dattatreya describes given that true sacrifice.

Seeing as a Yoga-Avatar, Lord Dattatreya (दत्तात्रेय) teaches us to perform all our duties skillfully and diligently. Yoga does not require outside aids, nor does it demand great physical effort. All we have to do is change our outlook and transform our attitude to life. This "change" consist of giving up the idea or feeling of "doership", "enjoyership" and the resultant anxiety (and attachment ) for the fruits of our actions. By performing all our duties with this changed outlook, our mind will be freed from agitation and attain the restful state called "equanimity", or the state where there is no "mind". This is the state of Bliss that every soul ultimately aspires to. This is the state of Datta - the ultimate Gift of God.

Anusuya smiled to herself and reflected thus, "I am totally purified by the long association with the Holy Sage Atri. What harm can the God of lust ever do to me? So, I do fear nothing. While they sought food from my hand, I look upon them given that my children and not strangers and grown up men!" Her thoughts - the thoughts of a pious and chaste person - instantly became reality; the elderly guests became babies!

Sage Atri, on his return to the hermitage, saw his wife Anusuya fondling three babies. Anusuya said, "These children are the gift of God to us, who are childess so far". Sage Atri was overjoyed and named them Datta, which implies 'given'. At this, the three Gods reverted to their real forms and disclosed the truth. They extolled the power of chastity and purity of Anusuya, which vanquished the combined and colossal powers of all the three of them. Sage Atri and Anusuya prayed that they must remain given that their sons. They consented and the three Gods merged into one body. It is how Lord Dattatreya (दत्तात्रेय) incarnated.

 September 28, 2013 

माता कात्यायनी पूजा

20th oct.2013, 8am to 2pm Ghatkoper E

 

माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक कामन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंतमहत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों मेंअपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहजभाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।

माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे।उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षिकात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षोंतक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप मेंजन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवीको उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यहकात्यायनी कहलाईं।

ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुईथीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्लसप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी कोमहिषासुर का वध किया था।
शास्त्रों के मुताबिक जो भक्त दुर्गा मां की छठी विभूति कात्यायनी की आराधना करतेहैं मां की कृपा उन पर सैदव बनी रहती है। ऐसी मान्यता है कि कात्यायनी माता का व्रतऔर उनकी पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आने वाली बाधा दूर होती है। 
माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज कीगोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल कीअधिष्ठात्री देवी के रूप मेंभीप्रतिष्ठित हैं।

माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजीका दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईंतरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनकावाहन सिंह है।

माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेजऔर प्रभाव से युक्त हो जाता है।

नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुतशक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनकाध्यानप्रातःकालमें करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण केलिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसेकंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिनया हर दिनइसका जाप करनाचाहिए।

'या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यैनमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेराबार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो,उन्हेइस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर कीप्राप्ति होती है।

देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध केबाईसवें अध्याय में उल्लेख किया है-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥

हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे देवि!नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं। दुर्गासप्तशती में देवी के अवतरित होने का उल्लेख इस प्रकार मिलता है-

नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा। मैं नन्द गोप के घर में यशोदा के गर्भ से अवतारलूंगी। श्रीमद् भावगत में भगवती कात्यायनी के पूजन द्वारा भगवान श्री कृष्ण कोप्राप्त करने के साधन का सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है। यह व्रत पूरे मार्गशीर्ष (अगहन) के मास में होता है। भगवान श्री कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रजांगनाओं नेअपने हृदय की लालसा पूर्ण करने हेतु यमुना नदी के किनारे से घिरे हुए राधाबाग़ नामकस्थान पर श्री कात्यायनी देवी का पूजन किया।

विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र-- ॐ कात्यायनी महामायेमहायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।

माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक
,
संताप, भय
आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँकी शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।

मां कात्यायनी को पसंद है शहद

मां कात्यायनी ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर महिषासुर से युद्ध किया। महिसासुर सेयुद्ध करते हुए मां जब थक गई तब उन्होंने शहद युक्त पान खाया। शहद युक्त पान खानेसे मां कात्यायनी की थकान दूर हो गयी और महिषासुर का वध कर दिया। कात्यायनी कीसाधना एवं भक्ति करने वालों को मां की प्रसन्नता के लिएऔर मन-पसंदवर की प्राप्ति के लियेशहद युक्त पान अर्पित करना चाहिए। 

पांच प्रकार की मिठाई

मां कात्यायनी की साधना का समय गोधूली काल है। मान्यता है कि इस समय में धूप, दीप, गुग्गुल से मां की पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है। जो भक्त माता कोपांच तरह की मिठाईयों का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं में प्रसाद बांटते हैं माताउनकी आय में आने वाली बाधा को दूर करती हैं और व्यक्ति अपनी मेहनत और योग्यता केअनुसार धन अर्जित करने में सफल होता है।

देवी कात्यायनी द्वारा सुरक्षा घेरा हटाने पर रावण मारा गया

देवी पुराण में उल्लेख मिलता है कि रावण भगवान शिव के साथ ही आदि शक्ति देवीकात्यायनी का भक्त था। रावण की भक्ति के कारण देवी अपनी योगनियों के साथ लंका मेंवास करती थीं जिससे रावण अजेय हो गया था।
देवी कात्यायनी की सुरक्षा प्राप्त होने के कारण रावण देवाताओं को कष्ट पहुंचानेलगा। देवताओं ने भगवान विष्णु से रावण से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। भगवानविष्णु सोच में पड़ गये कि देवी कात्यायनी से सुरक्षा प्राप्त होने के कारण रावण कोमारना उनके लिए कठिन है। इस समस्या का हल निकालने के लिए भगवान विष्णु देवीकात्यायनी के पास गये। भगवान विष्णु ने कात्यायनी से कहा कि आपसे सुरक्षा प्राप्तहोने के कारण रावण निर्भय होकर अत्याचार कर रहा है। इसका अंत करना आवश्यक है इसलिएआप अपनी सुरक्षा हटा लीजिए। भगवान विष्णु की प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी ने कहाकि आप रामावतार लीजिए, इस अवतार में देवी लक्ष्मी सीता रूप में आपकी सहायता करेंगी।देवी लक्ष्मी मेरा ही स्वरूप हैं। जब रावण सीता का हरण करेगा तो वह मेरा अपमान होगाजिससे मैं अपनी सुरक्षा हटा लूंगी और आप रावण का वध करने में सफल होंगे। भगवान रामने रावण से युद्घ करने के पहले देवी कात्यायनी की आराधना की और देवी से रावण को दीगयी सुरक्षा हटाने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु को दिये गये वचन के अनुसार देवीलंका त्याग कर अपने लोक में चली गयी और भगवान राम रावण का वध करने में सफल हुए।मान्यता यह भी है कि भगवान राम ने जिस वाण से रावण का वध किया था वह वाण राम कोदेवी कात्यायनी द्वारा प्रदान किया गया था।

देवी कात्यायनी का ध्यान-

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

देवी कात्यायनी का स्तोत्र पाठ -

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

देवी कात्यायनी का कवच-

कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥

माँ कत्यानी की आरती-

जै अम्बे जै जै कात्यायनी~
जै जगदाता जग की महारानी~~

बैजनाथ स्थान तुम्हारा~
वहां वरदाती नाम पुकारा~~

कई नाम है कई धाम है~
यह स्थान भी तो सुखधामहै~~

हर मंदिर में जोत तुम्हारी~
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी~~

हर जगह उत्सव होते रहते~
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Call for shivir- 91 8652439844

 September 28, 2013 

 KANAKDHARA AND KUMBHA VIVAH SHIVAH SHIVIR

RASIK RANJANI SABHA HALL, PLOT– 194A, SHANTI PATH, NEXT TO ORBIT TOWER, GARODIA NAGAR, GHATKOPER E MUMBAI

 

कनकधारा और कुम्भ विवाह शिविर

सुबहः ८.१५        कात्यायनी माता और कुंभ विवाह मे अंतर और लाभ के बारे मे गुरुदेव द्वारा जानकारी.

सुबहः ८.३५ गणेश आवाहन तथा माता का आवाहन और पूजन तैयारी.

सुबहः ९.०० माता का विशिष्ठ मंत्रो द्वारा शहद से पूजन (मन-पसंद वर की प्राप्ती के लिये या मनोकामना पूर्ती के लिये)

सुबहः १०.०० माता को विशिष्ठ मंत्रो द्वारा श्रंगार.

सुबहः १०.३० पति-पत्नी के लिये विशिष्ठ पूजन. (सुखी दांपत्य जीवन के लिये)

सुबहः ११.०० नवग्रह समिधा से माता का हवन और कुम्भ पूजा.

सुबहः ११.३० मांगलिक दोष, विवाह प्रतिबंध दोष, विवाह बाधा दोष निवारण हवन.

दोपहरः १२.०० कुम्भ विवाह (इसमे स्त्री-पुरुष कोई भी भाग ले सकता है)

कात्यायनी-दुर्गा दिक्षा

Call 91 8652439844

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इस शिविर मे क्यो भाग लेना चाहेंगे?

विवाह होने मे अडचन आ रही है तो...

उम्र बढने के साथ विवाह होने की आशा कम हो गयी हो तो..

मांगलिक योग, विवाह बाधा दोष हो तो..

पति-पत्नी मे अनबन हो तो..

विवाह टूटने की कगार पर हो तो..

मन-पसंद वर की चाह हो तो..

सुखी दांपत्य जीवन की प्राप्ती के लिये..

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